श्रीमदभागवत कथा में द्वितीय दिवस भगवान शुक की उत्पत्ति, राजा परीक्षित के मुक्ति का कराया श्रवणपान
मेजा, प्रयागराज (राजेश शुक्ल)। उरुवा विकास खंड अंतर्गत सोरांव गांव में श्रीमद् भागवत ज्ञान सप्ताह के द्वितीय दिवस अयोध्या धाम से पधारे अंतरराष्ट्रीय कथा वाचक बालशुक पंडित देव कृष्ण शास्त्री जी महाराज का मुख्य यजमान श्रीमती निर्मला देवी शुक्ला पत्नी गोलोकवासी पंडित त्रिवेणी प्रसाद शुक्ल व सुपुत्र भूपेन्द्र उर्फ पिंकू शुक्ल ने भागवत भगवान, बालशुक और पंडित बबुन्ने ओझा का तिलक व माल्यार्पण कर आरती उतरी।
पंचम वेद की उपमा से अलंकृत महर्षि वेद व्यास जी द्वारा विरचित श्रीमद भागवत महापुराण में वर्णित प्रभु श्रीकृष्ण की लीलाओ का वर्णन मानव के हृदय को परम् आनंद से भर देता है। उस पर 33 कोटि देवो और 88000 ऋषियों के आशीर्वाद से अभिसिंचित नैमिषारण्य जैसी परम् पुनीत भूमि में श्रवण अन्य तीर्थों की अपेक्षा कई गुना अधिक पुण्य प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त भागवत कथा और भगवत भक्ति का महत्व, भगवान के अवतारों का वर्णन, भगवान के यश कीर्तन की महिमा और देवर्षि नारद जी का पूर्व चरित्र, गर्भ में परीक्षित रक्षा, कुंती के द्वारा भागवत की स्तुति तथा भगवान श्रीकृष्ण की स्तुति करते हुए भीष्म का प्राण त्याग करना आदि प्रसंगों का सरस और मृदुल भाव से रसपान कराया गया। कथा व्यास बालशुक ने कहा कि सभी देवी और देवता समान होते हैं। लेकिन उनमें से किसी से कुछ भी मांगना हो तो अपने ईष्ट देव से ही मांगा जाता है। मीरा बाई ने श्रीकृष्ण से प्रेम किया लेकिन उनका अनुराग श्रीराम में रहा उन्होंने अपने अंतिम दोहे में लिखा ‘‘पायो जी मैंने तो राम रतन धन पायों।’’ अंतिम समय में राधा जी सीधे श्रीकृष्ण में समाहित हो गई थी। मुनि शुकदेव भगवान वेदव्यास के पुत्र थे. इनके जन्म के संबंध में कई कथाएं मिली हैं. कहीं इन्हें व्यास की पत्नी वाटिका तो कहीं पिता वेदव्यास के तप से मिला भगवान शंकर का वरदान कहा गया है. एक कथा के अनुसार द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण व राधाजी के अवतार के समय ये राधा के साथ खेलने वाले शुक थे। एक समय जब भगवान शिव अमर कथाएं सुना रहे थे तो पार्वती जी तो सो गईं, पर शुक उन्हें सुनकर हां करता रहा. जब भगवान शंकर ने देखा तो वे उसे पकड़ने भागे. ये देख शुक व्यासजी के आश्रम में पहुंचकर सूक्ष्म रूप से उनकी पत्नी के मुंह में समा गया. मान्यता है कि यही शुक फिर व्यासजी के अयोनिज पुत्र के रुप में प्रकट हुए। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गर्भ में ही इन्हे वेद, उपनिषद, दर्शन, पुराण आदि का ज्ञान हो गया, पर माया के डर से ये 12 वर्ष तक गर्भ में ही छिपे रहे. बाद में भगवान श्रीकृष्ण से माया के प्रभाव से मुक्त रहने का आश्वासन मिलने पर ही ये बाहर निकले। पौराणिक कथाओं के अनुसार मुनि शुकदेव जन्मते ही श्रीकृष्ण व माता-पिता को प्रणाम कर तपस्या के लिये जंगल में चले गए. व्यासजी की इच्छा थी की शुकदेव श्रीमद्भागवद् का अध्ययन करें, पर वे उन्हें मिले ही नहीं. इसके बाद श्रीव्यासजी ने भागवत का एक श्लोक बनाकर अपने शिष्यों को रटा दिया. वे उसे गाते हुए जंगल में लकडिय़ां लेने जाते थे। तभी एक समय शुकदेवजी ने भी उस श्लोक को सुन लिया. इसके बाद श्रीकृष्णलीला के आकर्षण से बंधकर वे फिर से अपने पिता श्रीव्यासजी के पास लौट आये. श्रीमद्भागवत महापुराण के अठारह हजार श्लोकों का विधिवत अध्ययन करने के बाद उन्होंने राजा परीक्षित को इसे सात दिन में सुनाया, जिसे सुन राजा परीक्षित भगवान के परमधाम पहुंचे. तब से ही साप्ताहिक भागवत सुनने का प्रचलन शुरू हुआ। इसके साथ साथ भागवत के छह प्रश्न, निष्काम भक्ति, 24 अवतार श्री नारद जी का पूर्व जन्म, परीक्षित जन्म, कुन्ती देवी के सुख के अवसर में भी विपत्ति की याचना करती है। क्यों कि दुख में ही तो गोविंद का दर्शन होता है। साथ साथ परीक्षित को श्राप कैसे लगा तथा उन्हें मुक्ति प्रदान करने के लिये भगवान कैसे प्रगट हुये इत्यादि कथाओं का भावपूर्ण वर्णन किया। साथ ही श्रीमद् भागवत तो दिव्य कल्पतरु है यह अर्थ, धर्म, काम के साथ साथ भक्ति और मुक्ति प्रदान करके जीव को परम पद प्राप्त कराता है। उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत केवल पुस्तक नही साक्षात श्रीकृष्ण स्वरुप है। इसके एक एक अक्षर में श्रीकृष्ण समाये हुये है।
उन्होंने कहा कि कथा सुनना समस्त दान, व्रत, तीर्थ, पुण्यादि कर्मों से बढ़कर है। कथा सुनकर पांडाल में उपस्थित श्रद्धालु भाव विभोर हो गए। कथा के मध्य में भजन सुनकर भक्त आत्मसात हो गये। पूर्व प्रधान केशव प्रसाद शुक्ल, पूर्व उपप्रधान कलट्टर शुक्ल, मुनेश्वर शुक्ल, श्याम नारायण शुक्ल, संतोष शुक्ल, कृष्णा कांत शुक्ल, प्रेम शंकर मिश्र, विनय शुक्ल, अवधेश शुक्ल, विजय शंकर दुबे, कृष्ण कुमार उर्फ नंघेसर शुक्ल, द्वारिका प्रसाद शुक्ल, मनोज द्विवेदी, राकेश शुक्ल उर्फ दादा, राजेश पाण्डेय, आलोक शुक्ल आशीष शुक्ल, श्लोक शुक्ल, योगेश द्विवेदी, डा. शिवचंद्र शुक्ल, शंभू प्रजापति, झल्लू राम प्रजापति सहित भारी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। कथा के दूसरे दिन विश्राम अवधि में यजमान भूपेंद्र कुमार उर्फ पिंकू शुक्ल ने सभी श्रद्धालुओं का आभार प्रकट करते हुए प्रसाद वितरण किया।