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महारास के माध्यम से जीव ब्रह्म के महा मिलन की रात है शरद पूर्णिमा: पं.निर्मल शुक्ल

 

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मेजा, प्रयागराज (विमल पाण्डेय)। श्री सिद्ध हनुमान मंदिर में चल रहे मानस सम्मेलन के आज रासलीला प्रसंग की मार्मिक व्याख्या करते हुए महाराष्ट्र से पधारे हुए सनातन संस्कृति के विलक्षण व्याख्या कार मानस महारथी पं निर्मल कुमार शुक्ल ने कहा कि रास लीला केवल एक गोप बालक और गोप बालिकाओं का नृत्य मात्र नहीं है यह साधना की चरम अवस्था है।ए गोपियां साधारण गोप कन्याएं नहीं हैं अपितु ए पूर्व जन्म मे कठोर साधना करके गोपी बन कर आई हैं। संस्कृत रामायणों में वर्णन है जब भगवान श्री राम दंडकारण्य में विचरण कर रहे थे तो वहां रहने वाले बृद्ध महात्माओं ने जब भगवान राम की कोटि कोटि कामदेवों से भी सुंदर छवि देखा तो वो सब प्रेम के वशीभूत हो गये और सोचने लगे आगर ए मिल जाते तो हम इनका आलिंगन करते इनका मुख चुंबन करते। वस्तुतः श्री राम हैं ही इतने सुन्दर कि सर्पिणी और बिच्छू भी इनके सौंदर्य को देख कर अपना जहर नीचे उड़ेल देते हैं। महात्माओं के मनोभाव जानकर श्रीराम मुस्कुराते हुए मन ही मन कहने लगे इस जन्म में तो मैं मर्यादा पुरुषोत्तम बन कर आया हूं अगले जन्म में मेरा कृष्ण के रूप में प्रेमावतार होगा तब आप लोग गोपी बन कर आएंगे और मेरा आलिंगन कर के धन्य हो जाएंगे। दूसरी कथा आती है जब राम जनक पुर में गये धनुष यज्ञ के समय मिथिला की स्त्रियों ने उन्हें देखा मानों साक्षात कामदेव ही खड़े हों ।उन स्त्रियों ने मन-ही-मन विचार किया यदि ए मिल जाते तो हम इन्हें अपना प्रियतम बना लेते अंतर्यामी भगवान श्री राम ने उन्हें भी अगले जन्म में गोपी होने का वरदान दिया।इस प्रकार ए गोपियां परम सिद्ध हैं आज रास लीला के माध्यम से श्री कृष्ण ने उनके पूर्व जन्मार्जित पुण्य का फल प्रदान किया।महारास के लिए शरद पूर्णिमा की तिथि का ही चयन क्यों किया गया उसका कारण ए है कि चंद्रमा रस तत्व का और मन का स्वामी है। पूर्णिमा की तिथि को जड़ समुद्र में भी ज्वार आता है समुद्र का जल स्तर बढ जाता है। सागर समस्त जलाशयों का स्वामी है इस लिए संसार के समस्त जलाशयों में जल वृद्धि होती है तो हमारा शरीर भी एक जलाशय ही है शरीर में 75 प्रतिशत से अधिक जल तत्व है अतः शरीर भी आंदोलित होता है पूर्णिमा को। चंद्र देवता की किरणें अबाध गति से धरती का स्पर्श करती है।उन किरणों में अन्य पूर्णिमाओं की अपेक्षा अमृत कण की बहुतायत होती है।आज भी लोग शरद पूर्णिमा की रात को छत पर या खुले आकाश के नीचे खीर रखते हैं इस कामना से कि उसमें पौष्टिक तत्व सम्मिलित हो जाता है। प्रयाग पीठाधीश्वर स्वामी श्रीधराचार्य जी ने रामायण के नवाह्न पारायण के अनुसार आज श्री सीताराम विवाह की मार्मिक व्याख्या करते हुए मानस के अनेक प्रसंग उद्धृत किए। बांदा से आये हुए पं राम गोपाल जी तिवारी ने भरत और भरद्वाज मिलन की आध्यात्मिक व्याख्या करते हुए भरद्वाज के शिष्यों की गरिमा का विवेचन किया। वाराणसी से पधारे हुए पं डॉ राम सूरत जी रामायणी ने भी सीता राम विवाह की भाव पूर्ण व्याख्या करते हुए श्रोता समाज को मंत्रमुग्ध कर दिया।मंच संचालन पं विजयानंद जी उपाध्याय ने किया तथा आपने सभी वक्ताओं का पुष्प हार डालकर स्वागत किया। कार्यक्रम के आयोजक पं नित्यानंद उपाध्याय ने बताया कि यह भव्य आयोजन विगत 57 वर्षों से अनवरत चल रहा है आपने सभी धर्म प्रेमी सज्जनों देवियों से अधिकाधिक संख्या में उपस्थित होकर कथामृत पान करने का आग्रह किया है।।

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