कुंभनगर राजेश शुक्ल। सनातन की जय है। यह त्रिवेणी की विजय है। इसीलिए तो बहुत सी बातों के बीच भी अभय बोध के साथ देश-दुनिया के सनातनी महाकुंभ में खिंचे चले आ रहे हैं। त्रिवेणी स्त्रोत में आदि शंकराचार्य इसे भक्तों को अभय और सुरक्षा प्रदान करने वाली क्यों कहे, हर ओर श्रद्धालुओं का रेला देख सहज ही समझा जा सकता है। मधु के समान मीठे रस से भरी, मस्त भौरों से गुंजायमान यह त्रिवेणी सदैव विजयी है और धर्म की जय के साथ इसका जयघोष महाकुंभ से होकर अखिल विश्व में छा रहा है।
सुबह की बेला में त्रिवेणी स्वर्णिम आभा से नहाए अपने दिव्य रूप का दर्शन दे रही है। यहां अभय और सुरक्षा के बोध से भरे जन शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक तापों के नाश का तोष पा रहे हैं। देवता और मनुष्यों द्वारा समान रूप से पूजित त्रिवेणी, मानों सभी को पवित्र कर चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति का वर दे रही है।
सौभाग्य की डुबकी लगाकर जो बाहर आ रहे हैं, उनके चेहरे बता रहे हैं कि वो तीनों लोकों के ऐश्वर्य का स्त्रोत खोजकर निकले हैं। सब एक रस और एक भाव। ऊंच-नीच, बोली-भाषा, क्षेत्र-राज्य की सीमा से परे। आंध्र प्रदेश के सुमंत तभी नालंदा, बिहार के विशाल से स्टेशन का रास्ता पूछते हैं। एक-दूसरे की भाषा से अनजान दोनों के बीच भाव संवाद का माध्यम बनता है और सुमंत को उनका रास्ता मिलता है। पांटून पुल के पार अखाड़ों का अद्भुत संसार बसा है। तीनों राजसी स्नान बीतने के बाद अधिकतर अखाड़े वापस होने लगे हैं, लेकिन अब भी बहुत से साधु-संन्यासी धूना रमाए हैं। देवरहवा बाबा अखंड ज्योति के बगल में भंडारा प्रसाद बंट रहा है।
वहीं, बगल में संन्यासी जामवंत के संग मैक्सिको के फैब्लो आध्यात्मिक चर्चा में व्यस्त हैं। इसी बीच एक संन्यासी प्रसाद पाने का बुलावा देते हैं। फैब्लो संन्यासी के मृदुल व्यवहार को सराहते हुए उन्हें स्वीट बाबा कहकर आभार जताते हैं। महाकुंभ की अनुभूतियों को वह अलौकिक बताते हैं। कहते हैं कि रोज दो बार संगम स्नान के बाद मेडिटेशन का यह अवसर बड़े सौभाग्य से मिला है। फिर हर-हर गंगे और हर-हर महादेव का उद्घोष कर वह पश्चिमी सभ्यता पर चढ़ते सनातनी रंग का दर्शन करा देते हैं।
कई सेक्टर और प्लाटों का भ्रमण कर इस्कान के शिविर से कुछ दूर एक विदेशी सड़क के किनारे घास-फूस पर बैठे मिलते हैं। हिंदी-अंग्रेजी न जानने वाले रूस के मैक्सिम स्वयं संवाद का रास्ता खोल देते हैं। टैब पर अंगुलियां दौड़ाते ही ट्रांसलेटर खुलता है और धर्म-अध्यात्म से लेकर निजी जीवन से जुड़े हर प्रश्न का पूरे उत्साह से उत्तर मिलता है।
दो साल से यूक्रेन से जारी लड़ाई ने उनकी दुकान और व्यवसाय को नष्ट कर दिया है। युद्ध की त्रासदी के बीच वह जीवन की नश्वरता को जान चुके हैं। वह युद्ध को अपने देश की सबसे बड़ी समस्या मानते हैं। उनकी दृष्टि में महाकुंभ मेला को ईश्वर की प्राप्ति का रास्ता है। करोड़ों लोगों के इसी उद्देश्य से एक जगह जुटे हैं। इससे अद्भुत ऊर्जा सृजित हुई है, जो यहां के कण-कण में प्रकट हो रही है। शरीर की नश्वरता की चर्चा के बाद आत्मा के परमानंद यानी परमात्मा से मिलन की बात आती है। इसी की चाह उन्हें भारत खींच लाई है। सतोगुण, तमोगुण और रजोगुण को समझाने के साथ वह महाकुंभ के पवित्र स्नान को बुरे कर्म त्यागने का स्थान बताते हैं। फिर नशा और मांसाहार छोड़ मुक्ति के लिए सेवा का मार्ग सुझाते हैं।
वृंदावन में लेटकर की गई गोवर्धन परिक्रमा से घुटनों पर हुआ निशान दिखाते हुए वह अंतस में आए आध्यात्मिक परिवर्तन की ओर ध्यान खींचते हैं। प्रभु पाद के भक्त मैक्सिम न सिर्फ त्रिवेणी के मोक्षदायिनी स्वरूप से परिचित हैं, बल्कि उन्हें पूरा विश्वास है कि यहां नहाने के साथ सेवा कर प्रसाद पाने से श्रीविष्णु अपने चरणों में स्थान अवश्य देंगे।