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जिन्ना के विश्वासघात से बना बीएलए! बलूचिस्तान के लोग पाकिस्तान को क्यों मानते हैं अपना दुश्मन

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नई दिल्ली। पाकिस्तान के चार प्रांतों में बलूचिस्तान सबसे बड़ा प्रांत हैं लेकिन यहां कि आबादी सबसे कम है। बलूचिस्तान ने शायद ही कभी शांति देखी होगी और इतने सालों के बाद भी यहां पर विकास का कार्य नहीं हो पाया है। बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी के आतंकवादियों ने 11 मार्च को पाकिस्तान की एक ट्रेन को हाईजैक कर लिया।

अब सवाल ये उठता है कि आखिर क्यों बीएलए के विद्रोहियों ने ट्रेन को हाईजैक कर सुरक्षाकर्मी सहित 100 लोगों को बंधक बना लिया और उनके विद्रोह की मुख्य वजह क्या है? इस विद्रोह का कारण पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा बलूच के लोगों के साथ किए गए विश्वासघात को माना जाता है।

1948 से ही बलूच राष्ट्रवादी पाकिस्तानी राज्य के खिलाफ हथियार उठाते रहे हैं।

बलूचिस्तान ने 1958-59, 1962-63 और 1973-77 में हिंसक स्वतंत्रता आंदोलन के दौर देखे हैं।

सबसे ताजा आंदोलन का दौर 2003 से चल रहा है।

11 मार्च 2025 को ठस्। के उग्रवादियों ने क्वेटा-पेशावर जाफर एक्सप्रेस को रोक लिया और सैकड़ों यात्रियों को बंधक बना लिया।

बुधवार 12 मार्च को दूसरे दिन बलूच विद्रोहियों ने अभी भी 100 से अधिक लोगों को बंधक बना रखा है।

बलूचिस्तान एक सूखा क्षेत्र है, लेकिन खनिज-समृद्ध प्रांत है।

बलूच लोगों को आर्थिक रूप से प्रताड़ित किया जाता रहा है।

उनकी भूमि की खनिज संपदा को संघीय सरकार को निधि देने के लिए निकाला जाता रहा है।

बलूच लोगों में किस बात का है गुस्सा?

ग्वादर बंदरगाह की वजह से बलूच लोगों में गुस्सा है, जिसे पाकिस्तान चीन की सहायता से विकसित कर रहा है।

कई बार बलूच उग्रवादी समूहों द्वारा चीनी इंजीनियरों पर किया गया है हमला।

ग्वादर बंदरगाह चीन-पाकिस्तान गलियारे (ब्च्म्ब्) का हिस्सा है।

2006 में पाकिस्तानी सेना द्वारा प्रभावशाली बलूच आदिवासी नेता अकबर खान बुगती की हत्या के बाद से बलूच लोगों में ज्यादा गुस्सा है।

बांग्लादेश कनेक्शन और 1970 के दशक का बलूच आंदोलन

1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश का अलग होना, बलूचिस्तान में नेशनल अवामी पार्टी के नेताओं ने अधिक स्वायत्तता की मांग को जन्म दिया।

तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो द्वारा मांगों को खारिज करने के बाद बढ़े विरोध प्रदर्शन।

1973 में भुट्टो ने अकबर खान बुगती की बलूचिस्तान प्रांतीय सरकार को बर्खास्त कर दिया था।

इसके बाद साल 1977 तक बड़े पैमाने पर सशस्त्र विद्रोह हुआ था, जो चौथे बलूचिस्तान संघर्ष के रूप में जाना जाता है।

1977 में जनरल जिया-उल-हक ने सैन्य तख्तापलट में भुट्टो को हटा दिया।

आदिवासियों को माफी दिए जाने और बलूचिस्तान से सैन्य वापसी के बाद सशस्त्र संघर्ष समाप्त हो गया था।

बलूचिस्तान को कैसे धोखा देकर पाकिस्तान में मिलाया गया?

साल 1947 में जब पाकिस्तान को भारत से अलग कर दिया गया, तभी से बलूचिस्तान विद्रोह का मूल कारण शुरू हुआ था। बलूचिस्तान का क्षेत्र चार रियासतों में रूप में अस्तित्व में था- कलात, खारन, लास बेला और मकरान।

बलूचिस्तान के पास ये विकल्प था कि वो या तो भारत में मिल जाए या फिर पाकिस्तान में शामिल हो जाए या अपनी स्वतंत्रता बनाए रखे। लेकिन जिन्ना के प्रभाव से चार में से तीन राज्य पाकिस्तान में विलय हो गए। कलात ने स्वतंक्षता का विकल्प चुना था।

4 अगस्त 1947 को दिल्ली में एक बैठक में, जिसमें कलात के खान लॉर्ड माउंटबेटन और जवाहरलाल नेहरू शामिल थे, जिन्ना ने खान के स्वतंत्रता के फैसले का समर्थन किया। जिन्ना के आग्रह पर ही, खरान और लास बेला को कलात के साथ मिलाकर पूर्ण बलूचिस्तान बनाया जाना था।

कलात ने 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता की घोषणा की। स्वतंत्र संप्रभु राज्य होने के बावजूद 12 सितंबर के ब्रिटिश ज्ञापन में कहा गया कि कलात एक स्वतंत्र राज्य की अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियों को नहीं निभा सकता है।

1980 में ताज मोहम्मद ब्रेसेग लिखते हैं, श्अक्टूबर 1947 में अपनी बैठक में जिन्ना ने खान से कलात के पाकिस्तान में विलय में तेजी लाने के लिए कहा था।श् हालांकि खान ने कलात पर जिन्ना के दावे को खारिज कर दिया और भारत सहित कई देशों से मदद मांगी थी।

कहीं से भी मदद नहीं मिलने पर उन्होंने हार मान ली। 26 मार्च को पाकिस्तानी सेना बलूच तटीय क्षेत्र में चली गई और खान को जिन्ना की शर्तों पर सहमत होना पड़ा। 226 दिनों तक स्वतंत्र रहने के बाद, बलूचिस्तान को पाकिस्तान में मिला दिया गया था।

ये लोगों की इच्छा से नहीं, बल्कि जिन्ना के विश्वासघात और इस्लामाबाद की सैन्य शक्ति के कारण। बता दें, समय-समय पर बलूचिस्तान ने पाकिस्तान के खिलाफ जंग छेड़ी है।


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