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इस बार दीवाली के छठें नहीं, सातवें दिन है डाला छठ

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27 को डूबते व 28 को उगते सूर्य की करें उपासना, कारण जानें

प्रयागराज (राजेश शुक्ल/राजेश सिंह)। सूर्याेपासना का पर्व डाला छठ इस बार एक दिन आगे बढ़ गया है। दीपावली के छठें दिन यानी कार्तिक शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला पर्व इस बार सातवें दिन मनेगा। इसके पीछे अमावस्या तिथि का संचरण है, जिससे पर्वों का तालमेल बिगड़ गया है। दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा नहीं होगी, बल्कि स्नान-दान की अमावस्या मनाई जाएगी। सनातन धर्मावलंबी इसमें पवित्र नदियों में स्नान करके पितरों के निमित्त तर्पण, श्राद्ध कर सकते हैं।

अमावस्या तिथि 21 अक्टूबर की शाम तक

ज्योतिषाचार्य पंडित कमला शंकर उपाध्याय के अनुसार अमावस्या तिथि 20 अक्टूबर की दोपहर 2.56 बजे लगकर मंगलवार (21 अक्टूबर) की शाम 4.26 बजे तक रहेगी। सूर्याेदय के समय अमावस्या होने के कारण उसका प्रभाव दिनभर माना जाएगा। इसकी वजह से मंगलवार को स्नान-दान व श्राद्ध की अमावस्या मानी जाएगी।

कार्तिक शुक्लपक्ष की प्रतिप्रदा तिथि मंगलवार की शाम 4.26 लगेगी। वह बुधवार (22 अक्टूबर) की शाम 6.18 बजे तक रहेगी। ऐसे में गोवर्धन पूजा बुधवार यानी 22 अक्टूबर को होगी। इसमें गाय के गोबर का पर्वत बनाकर 56 प्रकार के व्यंजन अर्पित करके विधि-विधान से पूजा होती है। पूजा का उपयुक्त समय सुबह 8.16 बजे से दोपहर 12.39 बजे तक है। उक्त समयावधि में वृश्चिक व धनु की लग्न रहेगी। साथ ही स्वाति नक्षत्र और प्रीति योग रहेगा।

27 अक्टूबर को सूर्य षष्ठीः आचार्य विद्याकांत 

कार्तिक शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि 27 अक्टूबर को होगी। इसी में डाला छठ का व्रत रखने वाले श्रद्धालु डूबते सूर्य को अर्घ्य देंगे। पाराशर ज्योतिष संस्थान के निदेशक आचार्य विद्याकांत पांडेय के अनुसार 26 अक्टूबर की रात 2.30 बजे षष्ठी तिथि लग जाएगी। जो अगले दिन (27/28 अक्टूबर) की भोर 3.35 बजे तक रहेगी। अर्थात सोमवार को (27 अक्टूबर) दिनभर षष्ठी तिथि का प्रभाव रहेगा। सूर्यास्त के समय भी षष्ठी तिथि रहेगी। उसी दिन (सोमवार को) शाम को अस्ताचलगामी (डूबते सूर्य को) अर्घ्य देकर पूजन किया जाएगा। सप्तमी तिथि पर 28 अक्टूबर की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रती महिलाएं जल ग्रहण करेंगी। 

25 अक्टूबर को नहाय खाय से डाला व्रत की शुरूआत 

ब्ीींजी च्नरं 2025 कार्तिक शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि पर 25 अक्टूबर को नहाय खाय से व्रत की शुरुआत होती है। व्रती महिलाएं स्नान करके नए वस्त्र धारण करेंगी हैं। नए गुड़ से मिश्रित नए चावल से बनी खीर अथवा लौकी की खीर ग्रहण करेंगी। परिवार के अन्य सदस्य भी उसे प्रसार स्वरूप ग्रहण करेंगे।

खरना 26 अक्टूबर से 36 घंटे का शुरू होगा निर्जला व्रत 

26 अक्टूबर को कार्तिक शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि पर खरना मनाया जाएगा। व्रती महिलाएं दिनभर व्रत रहकर शाम को चावल व गुड़ मिश्रित खीर ग्रहण करेंगी। यहीं से छठी मइया का 36 घंटे का निर्जला व्रत आरंभ होगा। 

27 अक्टूबर की शाम सूर्य को अर्घ्य देंगी व्रती

27 अक्टूबर को कार्तिक शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि पर दिनभर निर्जला व्रत रखा जाएगा। शाम को नदी, तालाब में खड़ी होकर व्रती महिलाएं डूबते सूर्य को अर्घ्य देंगी। घाट पर ही रातभर जागरण किया जाएगा। 

28 अक्टूबर को उगते सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण 

28 अक्टूबर को कार्तिक शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि पर उगते सूर्य को अर्घ्य देकर ठेकुआ खाकर व्रती महिलाएं व्रत का पारण करेंगी।

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