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भर गये सदियों के घाव, आस्था का हो रहा विजयगान, केसरिया ध्वज लहराते ही नया युग शुरू

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ध्वजारोहण का आयोजन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं रहा; यह उन अनेकों साधना-यात्रियों, संतों, पुरोहितों, शिल्पकारों, वास्तुकारों, अनुगामियों, श्रमिकों और दानदाताओं की कहानियों का संगम रहा जिनकी तपस्या और त्याग भारत के इतिहास में विशेष स्थान रखते हैं...

आज अयोध्या की धरती पर एक ऐसा क्षण उत्पन्न हुआ जो केवल ईंट-पत्थर और वास्तुकला का नहीं, बल्कि पीढ़ियों की आस्था, अनवरत संकल्प और सामूहिक स्मृति का साक्षी बना। जब केसरिया धर्मध्वज गर्व से श्रीराम जन्मभूमि के शिखर पर लहरा उठा, तो वह केवल एक ध्वज नहीं थाकृ वह सैकड़ों वर्ष के अरसे से बँधी हुई वेदना का, अटूट विश्वास का और उन अनगिनत लोगों के संघर्ष का प्रतीक बन गया जो इस पवित्र भूमि को पुनः उसकी गरिमा प्रदान करने के लिये अग्रसर थे।

विवाह पंचमी के अभिजीत मुहूर्त पर, वैदिक मंत्रों की गूँज और ‘जय श्रीराम’ के उद्घोष के बीच जो आराधना हुई, वह व्यक्तिगत श्रद्धा से ऊपर उठकर राष्ट्र के सांस्कृतिक स्मरण का साझा अनुष्ठान बन गई। मंदिर के चारों ओर निर्मित परकोटे की शिल्पकला, मुख्य मंदिर की दीवारों पर उकेरे गए 87 प्रसंग और कॉपर-शिल्प की 79 समृद्ध झांकियाँ, यह सब केवल स्थापत्य कौशल का प्रदर्शन नहीं, बल्कि रामकथा के विविध आयामों का मूर्त रूप हैं जो हमारी परंपरा की बहुरंगी विविधता को दर्शाते हैं।

यह आयोजन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं रहा; यह उन अनेकों साधना-यात्रियों, संतों, पुरोहितों, शिल्पकारों, वास्तुकारों, अनुगामियों, श्रमिकों और दानदाताओं की कहानियों का संगम रहा जिनकी तपस्या और त्याग भारत के इतिहास में विशेष स्थान रखते हैं। जिन लोगों ने वर्षों, दशकों तक अपनी ऊर्जा समर्पित की, वह आज जहां भी रहे हों, उनके मन में आज निश्चित रूप से आत्म-संतोष का भाव रहा होगा। साधु-संतों की भक्ति-भाषाएँ, श्रद्धालुओं की भीड़ और नगरवासियों की आतिथ्य-भावना ने भी यह प्रमाणित किया कि आस्था और सामूहिक विश्वास किस तरह किसी स्थान की आत्मा को पुनर्जीवित कर सकते हैं।

नया ध्वजारोहण केवल अतीत का जश्न नहीं है; यह भविष्य की दिशा का संकेत भी है। आज की अयोध्या, जहाँ प्राचीन रामकथा और आधुनिक योजनाओं का अप्रत्याशित संगम दिख रहा है, वह इस बात का उदाहरण है कि विरासत और विकास साथ-साथ फल-फूल सकते हैं। महर्षि वाल्मीकि हवाई अड्डे से लेकर आधुनिकीकरण किए गए रेलवे टर्मिनलों, रामपथ और भक्ति-पथ तक, ये सब उस दृष्टि का हिस्सा हैं जो तीर्थ को वैश्विक रूप से सुलभ, सुरक्षित और आदर्श-आधारित बनाने की कल्पना करती है।

इस पवित्र क्षण पर, हमें उन अनगिनत नामरहित कर्मयोगियों को भी याद करना चाहिए जिनका श्रम बिना किसी प्रचार-प्रसार के मंदिर निर्माण को साकार करने में सहायक रहा। वे श्रमिक जिनके हाथों ने पत्थरों को संवारा; वे शिल्पकार जिनकी कला ने कथानक को जीवन दिया; वे पुरोहित, संत और पंडित जिनके अनुष्ठानिक ज्ञान ने मार्ग दिखाया; और वे स्वयं सेवक व आयोजक जिनकी रात-दिन की मेहनत ने समुचित व्यवस्था सुनिश्चित की, इन सबका आभार केवल शब्दों में सीमित नहीं किया जा सकता। इसके साथ ही राम मंदिर आंदोलन के नेतृत्वकर्ताओं, भागीदारों तथा श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के संकल्प को सिद्ध करने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रतिबद्धता के बिना आज के इस दिन की कल्पना करना संभव नहीं था।

आज, उन समुदायों और परिवारों का भी अभिवादन आवश्यक है जो शांतिपूर्ण और संयत भाव से इस ऐतिहासिक आयोजन का हिस्सा बने रहे। भीड़ के उत्साह में जो संयम और अनुशासन दिखा, वह सामाजिक सहिष्णुता और साझा गर्व का प्रतीक था। संतों के भावपूर्ण शब्दों ने इस क्षण को दैवीयता का अनुभाव बना दिया और भक्तों की आशा-आभा ने यह संकेत दिया कि यह भूमि अब एक नए अध्याय में प्रवेश कर रही हैकृ जहाँ आध्यात्मिकता और सामाजिक विकास साथ-साथ आगे बढ़ने का वादा करते हैं। आज का दिन हमें यह भी संदेश देता है कि किसी भी महान लक्ष्य की पूर्ति के लिये संकल्प, सहनशीलता और सामूहिक भागीदारी अनिवार्य हैं।

बहरहाल, जब केसरिया ध्वज आकाश में लहरा रहा था, तब उसके साथ एक नयी आशा भी ऊँची हुई कि यह स्थान उन मूल्यों का प्रसार भी करेगा जो व्यक्ति को नैतिक, दयालु और समाज-प्रेरित बनाते हैं। अयोध्या की यह गाथा निश्चित रूप से आने वाली पीढ़ियों को श्रद्धा, सेवा, समर्पण और साझा-सपनों के लिये प्रेरित करेगी। जय श्रीराम।

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