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होलिका की अग्नि जलते हुए शरीर की मानक-आचार्य विशाला पाण्डेय

 

Svnews

मेजा,प्रयागराज।(हरिश्चंद्र त्रिपाठी) 

होलिका की अग्नि में लावा या नारियल फेंककर अपने और परिवार के लिए सुख, शांति और समृद्धि के लिए प्रार्थना की तो वहीं कुुछ लोग होलिका की अग्नि में जौ फेंककर सभी नकारात्मक चीजों से छुटकारा पाने के लिए भी ऊपरवाले से गुहार लगाई। दरअसल होली केवल प्रेम, उल्लास का त्योहार नहीं है बल्कि ये बुराई पर अच्‍छाई की जीत का पर्व भी है। आचार्य राकेश पांडे बताते हैं कि इस बार को होलिका दहन बहुत ज्यादा खास है क्योंकि आज के दिन चार खास योग जैसे मृत योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, वृद्धि योग, ध्रुव योग और गुर्वादित्‍य योग बन रहे हैं।उन्होंने बताया कि होलिका की राख माथे पर लगाने से इंसान को आर्थिक कष्ट से मुक्ति मिलती है तो वहीं उसकी तरक्की होती है और वो बहुत सारे निगेटिव चीजों से दूर रहता है।कुछ लोग उपवास भी रखते हैं।यही नहीं होलिका की भस्म को घर में छिड़कने से भी इंसान के घर में सुख, शांति और समृद्दि का माहौल रहता है। आचार्य विशाला पाण्डेय बताते हैं किहोलिका की अग्नि जलते हुए शरीर की मानक है।इसी कारण नवविवाहिता को होलिका की अग्नि को देखने से रोका जाता है, क्योंकि होलिका की अग्नि जलते हुए शरीर की मानक है इसलिए नई नवेली दुल्हन को इस अग्नि से दूर रखने का प्रयास किया जाता इसे अशुभ मानते हैं और कहा जाता है कि अग्नि देखने से लोगों के वौवाहिक जीवन में दिक्कतें शुरू हो सकती हैं।होलिका दहन के बारे में

धार्मिक मान्यता है कि हिरण्यकश्यप का बेटा प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था लेकिन ये बात उसके पिता को अच्छी नहीं लगती थी इसलिए उसने प्रहलाद को बहुत सारे कष्ट दिए थे और कहा कि तुम मेरी पूजा करो लेकिन जब वो नहीं माना तो उसने उसे अपनी बहन होलिका की गोद में बैठाकर जिंदा जलाने की कोशिश की थी क्योंकि होलिका को ना जलने का वरदान मिला हुआ था, लेकिन अग्नि में जाते ही वो जलकर भस्म हो गई और प्रहलाद जिंदा वापस निकल आया था। उस दिन फाल्गुन मास की पूर्णिमा थी, तभी से होलिका दहन किया जाता है। होलिका के साथ ऐसा उसके गलत इरादों की वजह से हुआ था। इसी कारण इस पर्व को बुराई पर अच्‍छाई की जीत के रूप में मनाते हैं। आपको बता दें कि भगवान विष्णु ने बाद में नरसिंह का रूप धरकर हिरण्यकश्यप का वध किया था।

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