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भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा एक जुलाई को, भगवान गए एकांतवास में

 

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suraj varta.in
आस्था धर्म डेस्क

आज शनिवार 18 जून 2022 है। 14 जून को ज्येष्ठ पूर्णिमा के अवसर पर जगन्नाथ जी, बलभद्र जी और सुभद्रा जी को 108 घड़ों के जल से स्नान कराया गया, इसे सहस्त्रधारा स्नान कहते हैं. इस स्नान की वजह से वे तीनों बीमार हो गए हैं, तो वे 14 दिनों तक एकांतवास में रहेंगे और 15वें दिन दर्शन देंगे.

14 जून की नौ बजे रात्रि को भगवान का कपाट बंद कर दिया गया है. भगवान एकांतवास में चले गए हैं। 30 जून की नौ बजे रात्रि को कपाट खोल दिया जाएगा। एक जुलाई को अपना दर्शन अपने भक्तों को देगें. 14 जून को ज्येष्ठ पूर्णिमा के अवसर पर जगन्नाथ जी, बलभद्र जी और सुभद्रा जी को 108 घड़ों के जल से स्नान कराया गया, इसे सहस्त्रधारा स्नान कहते हैं. इस स्नान की वजह से वे तीनों बीमार हो गए हैं, तो वे 14 दिनों तक एकांतवास में रहेंगे और 15वें दिन दर्शन देंगे.

*जगन्नाथ रथ यात्रा 2022*
पंचांग के अनुसार, जगन्नाथ रथ यात्रा का प्रारंभ आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से होता है. इस वर्ष आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि का प्रारंभ 30 जून को सुबह 10 बजकर 49 मिनट से हो रहा है, जिसका समापन 01 जुलाई को दोपहर 01 बजकर 09 मिनट पर होगा. ऐसे में इस वर्ष जगन्नाथ रथ यात्रा 01 जुलाई दिन शुक्रवार को प्रारंभ होगी.

*यात्रा का महत्व*
हिन्दू धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा का बहुत बड़ा महत्व है. आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रथयात्रा निकालकर भगवान जगन्नाथ को प्रसिद्ध गुंडिचा माता के मंदिर पहुंचाया जाता हैं, जहां भगवान 7 दिनों तक विश्राम करते हैं. इसके बाद भगवान जगन्नाथ की वापसी की यात्रा शुरु होती है. भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा पूरे भारत में एक त्योहार की तरह मनाई जाती है.
यात्रा में भाग लेने वाले को मिलता है ये पुण्य
भगवान जगन्नाथ (भगवान श्रीकृष्ण) उनके भाई बलराम (बलभद्र) और बहन सुभद्रा रथयात्रा के मुख्य आराध्य होते हैं. जो भक्त इस रथ यात्रा में शामिल होकर भगवान के रथ को खींचते है तो उन्हें 100 यज्ञ करने का फल प्राप्त हो जाता हैं.

कहा जाता है कि इस यात्रा में शामिल होने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. यात्रा में शामिल होने के लिए देश भर से श्रद्धालु यहां पहुंचे हैं. स्कंदपुराण में वर्णन है कि आषाढ़ मास में पुरी तीर्थ में स्नान करने से सभी तीर्थों के दर्शन का पुण्य फल प्राप्त होता है और भक्त को शिवलोक की प्राप्ति होती है.
हिंदू पंचाग अनुसार आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को रथ यात्रा का पर्व मनाया जाता है. इस पर्व की उत्पत्ति को लेकर कई सारी पौराणिक और ऐतहासिक मान्यताएं तथा कथाएं प्रचलित है. एक कहानी के अनुसार राजा इंद्रद्युम्न अपने परिवार सहित नीलांचल सागर (वर्तमान में उड़ीसा क्षेत्र) के पास रहते थे.
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