मिर्जापुर (राजेश सिंह)। मिर्जापुर जिले में सीखड़ गांव के सामने गंगा नदी में तैरते मिले पत्थर का सच सामने आ गया है। जिसको लोग अलौकिक और त्रेता युग का पत्थर मानकर पूज रहे थे वह छह करोड़ वर्ष पुराना है। इसका खुलासा रविवार को सीखड़ पहुंचे बीएचयू के वैज्ञानिकों ने जांच पड़ताल के बाद किया।
सीखड़ स्थित बावन जी मंदिर में पूजा के लिए रखे पत्थर की जांच कर बीएचयू के प्रो. प्रदीप कुमार सिंह व प्रो. डॉ. बीपी सिंह ने अनुमान लगाया है कि यह पत्थर लगभग छह करोड़ वर्ष पुराना है। यह पत्थर ज्वालामुखी फटने के बाद लावा से बना प्रतीत हो रहा है। जो हिमालय से आया होगा। वैज्ञानिकों ने बताया कि हो सकता है कि किसी ने इसे गंगा नदी में लाकर फेंक दिया हो और फिर यह बाढ़ के पानी में बहकर यहां आ गया होगा। उन्होंने बताया कि रामसेतु में जो पत्थर लगाए गए थे और इस पत्थर में अंतर है। ज्ञात हो, सीखड़ के हीलालपुर गांव निवासी बचाऊ शर्मा शनिवार को सुबह गंगा में स्नान करने गए थे। उसी दौरान उन्हें नदी में बहता हुआ पत्थर दिखाई दिया। जिसको गांव के लोगों ने नदी से निकाल कर बार-बार पानी में डुबोने का प्रयास किया, लेकिन पत्थर पानी में उतराता रहा। जिससे कुछ लोगों ने इसे त्रेता युग में बने रामसेतु का पत्थर मान कर पूजा-पाठ शुरू कर दी।