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जब भगवान की कृपा होती है, तभी कथा सुन पाते हैं: आस्था दुबे

 

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मेजा, प्रयागराज (राजेश शुक्ल)। नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं सीतासमारोपितवामभागम।

पाणौ महासायकचारूचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम॥

जबलपुर, मध्य प्रदेश से पधारी मानस पियूषा दीदी आस्था दुबे ने आरती श्लोक के साथ कथा वाचन का शुभारंभ किया-सीताराम सीताराम सीताराम कहिए, जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए।

बाबा भोलेनाथ राम कथा पार्वती को सुना रहे हैं।

रामकथा मुनिबर्ज बखानी। सुनी महेस परम सुखु मानी॥ रिषि पूछी हरिभगति सुहाई। कही संभु अधिकारी पाई॥

मुनिवर अगस्त्य ने रामकथा विस्तार से कही, जिसको महेश्वर ने परम सुख मानकर सुना। फिर ऋषि ने शिव से सुंदर हरिभक्ति पूछी और शिव ने उनको अधिकारी पाकर (रहस्य सहित) भक्ति का निरूपण किया।

बाबा तुलसीदास ने रामकथा कथा किसे सुनानी चाहिए, श्रोताओं को बताया जिसके मन में अभिमानी, कामी, क्रोधी और लोभी हो उसे कथा नहीं सुनाना चाहिए। श्री रामचरितमानस की तुलना आम से की है। 

रामकथा के तेइ अधिकारी। जिन्ह कें सत संगति अति प्यारी। 

कुंज ऋषि के आश्रम में श्री राम कथा को सुनने गई सती को अभिमान था का वृत्तांत सुनाया। सीता के रावण द्वारा हरण और श्रीराम के वन में विलाप करते..हे खंड मृग से मधुकर श्रेनी तुमने देखी सीता मृगनयनी..। सीता का रूप धारण कर सती द्वारा श्री राम की परीक्षा लेने की लोमहर्षक कथा सुनाया तो श्रोता श्री राम कथा में गोता लगाते दिखे। जब सती जी प्रभु श्रीराम की परीक्षा लेने पहुंचीं तो श्री राम ने माया रची जिसके अनुसार श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण जी के साथ जाते हुए दिखे, सती ने पीछे मुड़ कर देखा तो भी यही दृश्य दिखाई दिया, अब तो सती का कौतुहल और भी बढ़ गया और वह जिधर भी देखती, ये तीनों सुंदर वेश में नजर आते. वह तो आश्चर्यचकित रह गईं जब देखा कि भांति भांति के वेश धारण किए देवता श्रीराम चंद्र जी की वंदना और सेवा कर रहे हैं, दरअसल श्री राम चाहते थे कि सती जी उनका सच्चिदानंद रूप देख लें और उन्होंने वियोग तथा दुख की जो कल्पना की है, उसे हटा कर वे सामान्य हो जाएं. लेकिन हुआ इसका उलटा, इस दृश्य को देखकर सती जी बहुत डर गईं और उनका हृदय कांपने लगा, उनकी सुधबुध जाती रही और वे आंख बंद कर रास्ते में ही बैठ गईं. कुछ क्षण के बाद आंखें खोलीं तो दक्ष कुमारी सती जी को कुछ भी न दिखा, वे श्री राम के चरणों में सिर नवा कर चली गई जहां पर शिव जी पेड़ के नीचे उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे।

सती जी जब शिव जी के पास पहुंचीं तो उन्होंने हंस कर कुशलक्षेम के साथ प्रश्न किया कि तुमने श्री राम की किस तरह परीक्षा ली, सारी बात सच सच बताओ। सती जी ने श्री रघुनाथ जी प्रभाव को समझ कर डर के मारे शिव जी से सारा घटनाक्रम छिपा लिया और कहा, हे स्वामी मैने कोई परीक्षा ही नहीं ली और वहां जाकर आपकी तरह प्रणाम किया, उन्होंने आगे कहा कि आपने जो कहा वह झूठ नहीं हो सकता है. मेरे मन में यह पूरा विश्वास है। इस पर शिव जी ने ध्यान लगा कर सब कुछ जान लिया कि सती ने वहां जाकर क्या किया और उन्होंने क्या देखा। इसके बाद तो शिव जी ने श्री राम की माया को प्रणाम किया जिससे प्रेरित होकर सती के मुंह से भी झूठ कहला दिया।

सती ने सीता जी का वेश धारण किया था, यह जानकर शिव जी का हृदय बहुत दुखी हुआ, उन्होंने सोचा कि यदि अब वे सती से प्रीति करते हैं तो भक्ति मार्ग लुप्त हो जाएगा और इस तरह बड़ा अन्याय हो जाएगा. सती परम पवित्र हैं इसलिए इन्हें छोड़ना भी ठीक नहीं है और प्रेम करने में भी बड़ा पाप है, शिव जी यह सारी बातें मन ही मन सोच कर दुखी हो गए किंतु मुख से एक भी शब्द नहीं निकाला. 

सीताराम सीताराम सीताराम कहिए जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए..

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इससे पहले महादेव महावीर सत्संग समिति द्वारा आयोजित श्री रामकथा के प्रथम दिन (शनिवार) वेद मंत्रों से अभिमंत्रित पूजन कर शुभारंभ किया गया। 

प्रयागराज से पधारे पंडित भोलानाथ पाण्डेय ने देवाधिदेव महादेव-माता पार्वती और पतित पावनी माता गंगा के बीच हुए संवाद की कथा सुनाया।कथावाचक ने माता गंगा के पृथ्वी अवतरण की कथा का बोध कराया।माता पार्वती के श्री राम के नर लीला की कथा का श्रवण पान कराया। 

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इसके पश्चात अयोध्या से पधारे कथावाचक पंडित अजय शास्त्री ने राम नाम की महिमा का बखान करते हुए सत्संग में जाने से होने वाले लाभ के बारे में विस्तार से कथा का श्रवण कराया। बताया कि श्री राम कथा में हनुमानजी कथा श्रवण करने अवश्य पहुंचते हैं-एक तू ना मिला, सारी दुनिया मिली... संगीतमय कथा श्रवण कर श्रोता भावविभोर होते रहे।

कथा संचालन श्री रामचरितमानस के मर्मज्ञ पंडित विजयानंद उपाध्याय ने किया। कथा में भारी संख्या में मानसप्रेमी महिला व पुरुष उपस्थित रहे।


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