मेजा,प्रयागराज।(हरिश्चंद्र त्रिपाठी)
भागवत यज्ञ भगवान विष्णु का ही अपना स्वरूप है।शाश्वत सुख और समृद्धि की कामना करने वाले मनुष्य को यज्ञ को अपना नित्य कर्तव्य समझ कर करना चाहिए।यज्ञ परमपिता परमेश्वर से नाता जोड़ने का अनुपम माध्यम है।उन्होंने कहा कि समस्त भुवन का नाभि केंद्र यज्ञ ही है।यज्ञ की किरणों के माध्यम से संपूर्ण वातावरण पवित्र व देवगम बनता है। जब सारे जप-तप निष्फल हो जाते हैं, तब यज्ञ ही सब प्रकार से रक्षा करता है।उक्त उद्गार आचार्य शंभु शरण महाराज ने क्षेत्र के निबैया गांव में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा के आठवें दिन हवन यज्ञ के मौके पर बतौर कथा व्यास व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि सृष्टि के आदिकाल से प्रचलित यज्ञ सबसे पुरानी पूजा पद्धति है। वेदों में अग्नि परमेश्वर के रूप में वंदनीय है। यज्ञ को श्रेष्ठतम कर्म माना गया है।
भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद्भगवत गीता में अर्जुन को उपदेश देते हुए कहा कि जो यज्ञ नहीं करते हैं, उनको परलोक तो दूर यह लोक भी प्राप्त नहीं होता है। आचार्य ने कहा जिन्हें स्वर्ग की कामना हो, जिन्हें जीवन में आगे बढ़ने की आकांक्षा हो उन्हें यज्ञ अवश्य करना चाहिए। यज्ञ कुंड से अग्नि की उठती हुई लपटें जीवन में ऊंचाई की तरह उठने की प्रेरणा देती हैं। यज्ञ में मुख्यत: अग्नि देव की पूजा का महत्व होता है।
यज्ञ करने वाले मनुष्यों को इस लोक में उनका दु:ख-दारिद्रय तो मिटता ही है, साथ ही परलोक में भी सद्गति की प्राप्ति होती है। यज्ञ में जलने वाली समिधा समस्त वातावरण को प्रदूषण मुक्त करती है। यज्ञवेदी पर गूंजने वाली वैदिक ऋचाएं अद्भुत प्रभाव डालती हैं। यज्ञ में बोले जाने वाले मंत्र व्यक्ति की मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। यज्ञ से ब्रह्मवर्चस की प्राप्ति होती है।
यज्ञ से शांति, सुख की प्राप्ति के साथ वह हर बाधा को पार कर जाते हैं। यज्ञ में बोले जाने वाले हर मंत्र में शरीर को झंकृत करने की अपार शक्ति होती है। उन्होंने कहा कि मनुस्मृति में उल्लेख है कि यज्ञ के माध्यम से मनुष्य विद्वान बनता है, लेकिन मनुष्य को स्वयं को कुछ विशेष आहार-विहार एवं गुण-कर्म में ढालना पड़ता है। ताकि इस दौरान उसका चिंतन मनन श्रेष्ठ बना रहे। यज्ञ लौकिक संपदा के साथ-साथ आध्यात्मिक संपदा की प्राप्ति का द्वार है।आचार्य ने बताया कि मुख्य यजमान (शुक्ला बंधु)लालजी शुक्ल और श्यामजी शुक्ल ने सपत्नीक श्रीमद् भागवत कथा ज्ञानामृत ज्ञान यज्ञ में भगवान के गोलोक गमन के प्रसंग पर 108 श्लोकों से आहुति दी गई।1008 बार विष्णु सहस्र नाम की आहुति, पुरू शूक्त 16 मंत्रो से आहुति, श्री सूक्त 28 मंत्रो से आहुति,गायत्री मंत्र से 108 बार आहुति,द्वादशक्षर मंत्र 108 बार आहुति,रुद्र शूक्ति से 16 मंत्र से आहुति। हनुमान चालीसा के 108 पाठ से आहुति दी। यजमान के सुपुत्र ओपी शुक्ला,विकास शुक्ला,विष्णुकांत शुक्ला,विश्वास शुक्ला के साथ परिवार के राजकुमार शुक्ल,श्यामजी शुक्ल और अशोक शुक्ला ने सपत्नीक यज्ञ में आहुति डाली।इसके अलावा यज्ञ कार्यक्रम में आए हुए समस्त महानुभावों ने आहुति डाली।
इस दौरान आचार्य हरिशचन्द्र मिश्र,माता प्रसाद तिवारी,प्रकाश चन्द्र शुक्ल,
ताराचन्द्र पाण्डेय,शिवबाबू द्विवेदी,
सुभाष पाण्डेय,शिवकेश मिश्र, सौरभ त्रिपाठी ने मंत्रोच्चारण किया।यज्ञ का समापन आरती व समस्त देवताओं के गगनभेदी जयघोष के साथ हुआ।हवन यज्ञ के बाद सुप्रसिद्ध भोजपुरी गायक राजेश परदेश ने भजन संध्या में एक से बढ़कर एक भोजपुरी गानों की "मै हूं तेरी राधा प्यारी तू मेरा किशन कन्हैया" गीत पर पूरा पंडाल झूम उठा।परदेशी के साथ आए नमामि गंगे के जिला संयोजक अमरेश तिवारी और एम एल पब्लिक स्कूल के डायरेक्टर दुर्गा प्रसाद गुप्ता ने इनका मनोबल बढ़ाया।भंडारा 16 जनवरी को स्थगित कर 21 जनवरी को होगा।आयोजक ओपी शुक्ला और विकास शुक्ल ने कार्यक्रम संपन्न कराने में सभी सहयोगियों के कार्यों की सराहना करते हुए आभार व्यक्त किया।