मेजा,प्रयागराज। (हरिश्चंद्र त्रिपाठी)
विकास खंड मेजा के ग्राम पंचायत भइयां तालाबों का गांव कहा जाता है।लेकिन अधिकांश तालाबों में अतिक्रमण है। जो तालाब किसी तरह बचे हुए हैं,उन पर बेखौफ जे.सी.बी चलाकर पुराने भीटे को ध्वस्त किया जा रहा है। और मिट्टी को ग्राम प्रधान द्वारा बेंच दिए जाने का आरोप भी है। बता दें कि एक तरफ देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट द्वारा पर्यावरण संरक्षण हित में तालाबों को कब्जा मुक्त कराने हेतु आदेश जारी करते हुए कहा है कि सन् 1952के पहले की स्थिति बहाल की जाय। दूसरी तरफ प्रशासन की उदासीनता के कारण तालाबों पर दिन-प्रतिदिन अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है। जिसका जीता -जागता उदाहरण भइयां,भोजपुरवा,हड़गड़,हरदिहा,सिलौधी, जैसे दर्जनों गांव के कई ऐसे तालाब हैं जिन पर हल्का लेखपाल और राजस्व विभाग की उदासीनता के कारण दिन-प्रतिदिन अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है। ग्राम विकास की मुहिम पर काम करने वाली राष्ट्रीय स्तरीय समाजसेवी संस्था जनसुनवाई फाउंडेशन के जनपद प्रभारी अधिवक्ता विवेक सिंह का कहना है कि विगत पांच वर्षों में ज्यादातर तालाबों पर प्रधानमंत्री आवास का निर्माण हुआ है।बार-बार प्रशासन को संस्था द्वारा लिखित रूप में अवगत कराते हुए वंचित वर्ग के ऐसे लाभार्थियों की सूची भी उपलब्ध कराई गई, जिनके पास आवासीय भूखण्ड का पट्टा नहीं है। तालाब पर रहने को मजबूर हैं, किन्तु ग्राम प्रधानों की राजनीतिक स्वार्थ व लेखपालों की उदासीनता का परिणाम रहा कि पात्र लाभार्थियों को आवासीय भूखण्ड का पट्टा नहीं दिया गया और प्रधानमंत्री आवास स्वीकृत होने पर लोगों ने तालाबों पर ही निर्माण कार्य कर लिया है। शासन स्तर पर तालाबों के स्तित्व को बचाने के लिए कई योजनाएं संचालित हैं, किन्तु करोड़ों रुपए खर्च होने के बावजूद शासन की मंशा मुताबिक परिणाम दिखाई नहीं देने का सबसे बड़ा कारण प्रशासन की उदासीनता है। यद्यपि भइयां गांव के लेखपाल गौरीशंकर का कहना है कि तालाबों पर प्रधानमंत्री आवास बनाने वाले लाभार्थियों के खिलाफ मुकदमा भी पंजीकृत कराया गया है।इसके बावजूद इसके भी लाभार्थियों द्बारा तालाबों पर प्रधानमंत्री आवास का निर्माण कर लिया गया है।ग्रामीणों ने प्रधान द्वारा तालाब के भीट की खुदाई तत्काल प्रभाव से रोकने की मांग की है।