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अपने कुकर्मों के कारण प्रेत बन गया था धुंधकारी: पं. सुरेश चंद्र शुक्ला

SV News

धुंधकारी को श्रीमद्भागवत कथा से हुई मोक्ष की प्राप्ति

मेजारोड, प्रयागराज (राजेश गौड़/श्रीकान्त यादव)। क्षेत्र के सोरांव गांव निवासी पंडित श्रीकांत उर्फ लल्लन द्विवेदी सहधर्मिणी श्रीमती विमला द्विवेदी के आवास पर श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह का शुभारंभ बुधवार को कलश पूजन से शुभारंभ हुआ।कथा के दूसरे दिन गुरुवार को कथा व्यास पंडित सुरेश चंद्र शुक्ला ज्योतिष विद भागवत मर्मज्ञ प्रयागराज द्वारा धुंधकारी व गोकर्ण की कथा सुनाई गई।व्यास पीठ पर बैठे भागवत मर्मज्ञ पंडित सुरेश चंद्र शुक्ला ने बताया कि श्रीमद्भागवत को हिंदू धर्म का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पुराण माना गया है।मनुष्य के जीवन में श्रीमद् भागवत कथा का बड़ा महत्व है।श्रीमद् भागवत कथा से मनुष्यों को ज्ञान व वैराग्य की प्राप्ति होती है।श्रीमद् भागवत कथा जीवन में उद्देश्य व दिशा को दर्शाती है,इसलिए कहते हैं कि श्रीमद् भागवत कथा सुनने मात्र से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसे ईश्वर के श्रीचरणों में स्थान मिलता है। साथ ही उन्होंने गोकर्ण व धुंधकारी की कथापान कराते हुए लोगों को बताया कि धुंधकारी ने अपने जीवन में बहुत पाप किए थे,लेकिन श्रीमद् भागवत कथा सुनकर उसका उद्धार हुआ था। 
तुंगभद्रा नदी के तट आत्मदेव नामक ब्राह्मण रहता था,जो बड़ा ही विद्वान था।आत्मदेव को सबसे बड़ा दुख यह था कि उसके कोई संतान नहीं थी।एक बार वह जंगल में गया तो उसे एक साधु मिले।उसने साधु को अपनी पीड़ा बताई।तब साधु ने उसे एक फल दिया और कहा कि इसे अपनी पत्नी धुंधली को खिला देना लेकिन, उसकी पत्नी ने ये फल खुद नहीं खाया और इसे गाय को खिला दिया।कुछ समय बाद गाय ने एक बच्चे को जन्म दिया, जो एक मनुष्य के रूप में था।उसका नाम गोकर्ण रखा गया।वहीं, धुंधली को उसकी बहन ने अपना एक पुत्र दे दिया, जिसका नाम धुंधकारी रखा गया।दोनों पुत्र में गोकर्ण तो ज्ञानी व पंडित निकला, लेकिन धुंधकारी दुष्ट व दुराचारी निकला।उसने अपने जीवन में चोरी करना शुरू कर दिया।उसने दूसरों को कष्ट पहुंचाना शुरू कर दिया।अंत में उसने अपने पिता की सारी संपत्ति नष्ट कर दी। इससे दुखी होकर पिता आत्मदेव घर छोड़कर वन में चले गए और प्रभु भक्ति में लीन हो गए।उन्होंने धर्म कथाएं सुननी शुरू कर दीं। इधर, मां धुंधली घर पर ही थी। एक दिन धुंधकारी ने मां को मारा पीटा और पूछा कि धन कहां छिपा रखा है।अपने बेटे की रोज रोज मार से तंग आकर मां धुंधली कुएं में कूद गईं।कुछ समय बाद धुंधकारी की भी मृत्यु हो गई और वह अपने कुकर्मों के कारण प्रेत बन गया।उसके भाई गोकर्ण ने उसका गयाजी में श्राद्ध व पिंडदान करवाया, ताकि उसे मोक्ष प्राप्त हो सके।लेकिन, मृत्यु के बाद धुंधकारी प्रेत बनकर अपने भाई गोकर्ण को रात में अलग—अलग रूप में नजर आता।एक दिन वह अपने भाई के सामने प्रकट हुआ और रोते हुए बोला कि मैंने अपने ही दोष से अपना ब्राम्हणत्व नष्ट कर दिया।गोकर्ण आश्चर्य थे कि श्राद्ध व पिंडदान करने के बाद भी धुंधकारी प्रेत मुक्त कैसे नहीं हुआ।इसके बाद गोकर्ण ने सूर्यदेव की कठोर तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने दर्शन दिए।गोकर्ण ने सूर्यदेव से इसका कारण पूछा तब उन्होंने कहा कि धुंधकारी के कुकर्मों की गिनती नहीं की जा सकती।इसलिए हजार श्राद्ध से भी इसको मुक्ति नहीं मिलेगी।धुंधकारी को केवल श्रीमद्भागवत से मुक्ति प्राप्त होगी।इसके बाद गोकर्ण महाराज जी ने भागवत कथा का आयोजन किया।जिसे सुनकर धुंधकारी को मोक्ष की प्राप्ति हुई और प्रेत योनि से मुक्ति मिली। वहीं कथा आयोजक जितेन्द्र द्विवेदी ने बताया कि मंगलवार 21 नवंबर 2023 को कथा का समापन होगा और बुधवार 22 नवंबर 2023 को महाप्रसाद (भंडारा) का आयोजन होगा।

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