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इलाहाबाद सीट पर हैट्रिक की तैयारी में भाजपा

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प्रयागराज (राजेश शुक्ल)। इलाहाबाद लोकसभा सीट पर अभी बसपा ने प्रत्याशी नहीं उतारा है। पार्टी किसी ब्राह्मण चेहरे पर दांव लगाने की तैयारी में है। कांग्रेस व भाजपा ने अभी तक मोर्चेबंदी कर दी है।

भाजपा ने लगातार तीसरी बार प्रत्याशी बदलकर नए चेहरे नीरज त्रिपाठी पर दांव लगाया है। सपा ने उक्त सीट कांग्रेस के लिए छोड़ दिया है जिस पर सपा के पूर्व मंत्री रहे उज्ज्वल रमण को उतारा है। इसी फार्मूले को आजमाया है। बसपा अभी तक प्रत्याशी ही घोषित नहीं कर सकी है। फिलहाल लगातार दो चुनाव में धमाकेदार जीत हासिल करने वाली भाजपा हैट्रिक की तैयारी में है, लेकिन गठबंधन की ओर से कांग्रेस की मोर्चेबंदी पहले से कहीं ज्यादा बेहतर है। ऐसे में चुनावी समर में रोमांचक संग्राम नजर आएगा। हार-जीत काफी हद तक बसपा के रुख पर भी निर्भर करेगा।

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सपा डेढ़ दशक से अपनी खोई जमीन तलाशने में जुटी हुई है। वर्ष 2004 में पहली बार सपा के कद्दावर नेता रेवती रमण सिंह ने चुनाव जीता था। इसके बाद सपा दो दशक से चुनाव में हांफती नजर आ रही है। हालांकि सपा ने इस बार इलाहाबाद सीट को कांग्रेस के लिए छोड़ दिया है। कांग्रेस दशकों से खाई अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए सपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व विधायक रहे उज्ज्वल रमण सिंह पर दांव लगाने का मन बनाया है। इलाहाबाद से चुनाव जीतने वाले 3 नेता प्रधानमंत्री बने. इलाहाबाद लोकसभा सीट से लाल बहादुर शास्त्री, विश्वनाथ प्रताप सिंह और महान अभिनेता अमिताभ बच्चन भी सांसद रहे हैं। पहले इलाहाबाद अब प्रयागराज, को प्रदेश के बड़े जिलों में से एक माना जाता है. यह शहर गंगा, यमुना और सरस्वती (गुप्त) नदियों के संगम पर स्थित है. संगम स्थल को त्रिवेणी भी कहते हैं। हिंदुओं के लिए यह स्थल बेहद पवित्र माना जाता है. मान्यता के अनुसार, सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूरा होने के बाद अपना पहला यज्ञ यहीं पर किया था. इसी प्रथम यज्ञ के प्र और याग यानी यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना. जिस जगह पर ब्रह्मा ने सृष्टि का पहला यज्ञ किया था उसका नाम प्रयाग पड़ा। इस धार्मिक स्थली के अधिष्ठाता भगवान विष्णु खुद हैं और वे यहां माधव रूप में विराजमान हैं. विश्व प्रसिद्ध महाकुंभ की देश की चार स्थलियों में से प्रयागराज एक है, शेष तीन स्थल हैं हरिद्वार, उज्जैन और नासिक. यहां हर 12 साल में कुंभ मेला लगता है।

2019 के चुनाव में क्या रहा परिणाम-साल 1575 में इस जगह के सामरिक महत्व को देखते हुए मुगल बादशाह अकबर ने इसे ‘इलाहाबाद’ (आज प्रयागराज) कर दिया, जिसका अर्थ है ‘अल्लाह का शहर’. लंबे समय के लिए यह शहर मुगलों की प्रांतीय राजधानी हुआ करती थी लेकिन बाद में यह मराठाओं के कब्जे में आ गया. यह शहर शिक्षा नगरी के नाम से भी जाना जाता है. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी चौथा सबसे पुराना यूनिवर्सिटी है. इलाहाबाद संसदीय सीट के तहत मेजा, करछना, प्रयागराज दक्षिण, बारा और कोरांव विधानसभा सीटें आती हैं. 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन को 4 सीटों पर जीत मिली थी तो सीट सपा के खाते में गई थी. प्रयागराज दक्षिण सीट से योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री हैं।2019 के लोकसभा चुनाव में इलाहाबाद संसदीय सीट पर बीजेपी की रीता बहुगुणा जोशी को जीत मिली। रीता पहले कांग्रेस में थीं, लेकिन बाद में वह बीजेपी में आ गईं। चुनाव में 14 उम्मीदवार मैदान में थे, लेकिन मुख्य मुकाबला रीता बहुगुणा जोशी और सपा के राजेंद्र सिंह पटेल के बीच हुआ। रीता को 494,454 वोट मिले तो राजेंद्र सिंह पटेल के खाते में 310,179 वोट आए. कांग्रेस के योगेश शुक्ला को महज 31,953 वोट ही मिले।

यहां पर चुनाव एकतरफा ही रहा. रीता बहुगुणा जोशी ने 184,275 मतों के अंतर से जीत हासिल की। इलाहाबाद सीट पर तब के चुनाव में कुल 16,79,883 वोटर्स थे जिसमें पुरुष वोटर्स की संख्या 9,22,284 थी तो महिला वोटर्स की संख्या 7,57,417 थी. इसमें से कुल 8,89,056 (53.4ः) वोटर्स ने वोट डाले. चुनाव में नोटा के पक्ष में 7,625 वोट पड़े थे।

इलाहाबाद संसदीय सीट का इतिहास

इलाहाबाद संसदीय सीट के राजनीतिक इतिहास की बात करें तो यहां से कई बड़े चेहरे चुनाव लड़ चुके हैं. शुरुआत में यह कांग्रेस के बेजोड़ गढ़ हुआ करता था। 1952 में कांग्रेस को यहां पर जीत मिली थी. फिर तब हुए उपचुनाव में पुरुषोत्तम दास टंडन को जीत मिली थी. 1957 और 1962 में लाल बहादुर शास्त्री यहां से चुनाव मैदान में उतरे तथा विजयी रहे. 1962 के चुनाव के बाद वह 1964 में जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद शास्त्र ही देश के प्रधानमंत्री बने। 1971 में दिग्गज नेता हेमवती नंदन बहुगुणा भी यहां से चुनाव जीते. वह 1974 में बहुगुणा यूपी के सीएम बन गए। देश में इमरजेंसी के बाद 1977 में कराए गए चुनाव में लोकदल के जनेश्वर मिश्रा को जीत मिली. इस चुनाव में जनेश्वर मिश्र ने मांडा के राजा और कांग्रेस के उम्मीदवार विश्वनाथ प्रताप सिंह को हराया था। चुनाव में बड़ी जीत हासिल करने वाले जनेश्वर केंद्र में मंत्री बनाए गए। 1980 में इलाहाबाद सीट से वीपी सिंह चुनाव जीते थे। लेकिन 1981 में यह पर कराए गए उपचुनाव में कांग्रेस के केपी तिवारी को जीत मिली थी।

अमिताभ बच्चन यहीं से बने सांसद

1984 में इस सीट पर फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन ने हेमवती नंदन बहुगुणा को हराकर जीत हासिल की थी। बाद में अमिताभ ने यह सीट छोड़ दी और 1988 के उपचुनाव में वीपी सिंह बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीत गए। इस उपचुनाव में कांग्रेस के सुनील शास्त्री दूसरे और बसपा संस्थापक कांशीराम तीसरे नंबर पर रहे थे. 1989 के चुनाव में जनता दल के टिकट पर जनेश्वर मिश्र फिर से सांसद चुने गए।

90 के दशक के बाद देश में राम लहर चली और बीजेपी को इसका फायदा उत्तर प्रदेश में मिला. हालांकि चुनाव में यहां से जनता दल की सरोज दुबे को जीत मिली थी। बीजेपी के उम्मीदवार श्यामाचरण गुप्त को एक लाख से अधिक वोट मिले थे. लेकिन 1996 में बीजेपी को यहां से जीत का स्वाद मिला. 1996 से लेकर 2004 तक मुरली मनोहर जोशी यहां से सांसद (1996, 1998 और 1999) चुने जाते रहे।

वह अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री भी रहे. हालांकि 2004 के चुनाव में बीजेपी की जीत का रथ थम गया। समाजवादी पार्टी के टिकट पर कुंवर रेवती रमण सिंह ने तब जीत हासिल की थी. उन्होंने 2004 के चुनाव में मुरली मनोहर जोशी को कड़े मुकाबले में 29 हजार वोट से हराया था. वह 2009 में भी विजयी हुए थे।

इलाहाबाद सीट का जातिगत समीकरण

2014 के चुनाव में देश में मोदी लहर का असर दिखा और यह सीट 10 साल बाद फिर बीजेपी के कब्जे में आ गई। बीजेपी के टिकट पर बिजनेसमैन श्यामाचरण गुप्ता ने सपा के सांसद कुंवर रेवती रमण सिंह को 62,009 मतों से हरा दिया. यहां पर चुनाव में 4 प्रत्याशियों को एक लाख से अधिक से वोट मिले थे. 2019 के चुनाव में बीजेपी के टिकट पर रीता बहुगुणा जोशी को 1,84,275 मतों के अंतर पर बड़ी जीत हासिल हुई थी।

प्रदेश की सियासत में हाई प्रोफाइल सीटों में शुमार इलाहाबाद सीट पर कभी किसी दल का लंबे समय तक गढ़ नहीं रहा है। यहां पर चुनाव में कायस्थ के साथ-साथ ब्राह्मण, राजपूत और पिछड़ी जातियों के वोटर्स अहम भूमिका निभाते हैं. यादव और मुसलमान वोटर्स की भी अच्छी संख्या है. इलाहाबाद संसदीय सीट पर कुर्मी और ब्राह्मण वोटर्स की संख्या 2 लाख से अधिक, ढाई लाख से अधिक दलित वोटर्स भी हैं. सवा लाख यादव वोटर्स, ढाई लाख दलित और 2 लाख मुस्लिम वोटर्स भी अपनी अहम भूमिका निभाता है। इस बार इलाहाबाद सीट पर चुनाव कड़ा हो सकता है. कांग्रेस और सपा के मिलकर चुनाव लड़ने से यहां पर चुनावी परिणाम पर कुछ असर पड़ सकता है।

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