प्रयागराज (राजेश सिंह)। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में आयोजित पुरा छात्र सम्मेलन के दौरान रविवार को कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इसमें जाने माने कवि कुमार विश्वास पहुंचे। उन्होंने अपने चिर परचित अंदाज में गीत और गजल प्रस्तुत कर लोगों को झूमने के लिए मजबूर कर दिया।
ये दिल बर्बाद करके इसमें क्यों आबाद रहते हो, कोई कल कह रहा था तुम इलाहाबाद रहते हो। ये कैसी शोहरतें मुझको अता कर दीं मेरे मौला, मैं सबकुछ भूल जाता हूं, मगर तुम याद रहते हो।’ इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पुरा छात्र सम्मेलन के दौरान रविवार को आयोजित कवि सम्मेलन में कुमार विश्वास ने जैसे ही ये पंक्तियां पढ़ीं, परिसर तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
कुमार विश्वास अपने चिर परिचित अंदाज में श्रोताओं को गुदगुदाते रहे और बीच-बीच में उन्होंने खिलखिलाकर हंसने को मजबूर भी किया। उन्होंने ‘तुमको सूचित हो’ शीर्षक से कविता पढ़ी, जिसे खूब वाहवाही मिली। दीक्षांत ग्राउंड पर श्रोताओं की तालियों का शोर थमने का नाम नहीं ले रहा था। उन्होंने सुनाया, यशस्वी सूर्य अंबर चढ़ रहा है तुम को सूचित हो, विजय का रथ सुपथ पर बढ़ रहा है तुमको सूचित हो, अवाचित पत्र मेरे जो तुमने कभी खोले नहीं तुमने, समूचा विश्व उनको पढ़ रहा है तुमको सूचित हो।’
इसके साथ ही उन्होंने अपनी कई मशहूर कविताएं सुनाईं। इसे पूर्व कहा कि जब इविवि परिसर में उन्होंने प्रवेश किया तो उन्हें अलग स्पंदन हुआ। विश्वास नहीं हुआ कि कभी इसी परिसर में फिराक घूमते रहे होंगे, हरिवंश घूमते रहे होंगे, मालवीय पढ़ने आए होंगे। कहा, भारत में पहले पांच सांस्कृतिक शहर ढूंढ़े जाएं तो इलाहाबाद भी इसमें आता है। यह मेरा और आपका सौभाग्य है।
कुमार विश्वास के अलावा कई अन्य कवियों ने भी अपनी कविताएं पढ़ीं। इटावा से आए कवि राजीव राज ने पंक्तियां पढ़ीं, ‘दीप चाहत की समाधि पर जलाने आया, दर्द के गांव में रोतों को हंसाने आया, इससे पहले कि मेरी सांस की वीणा टूटे, जिंदगी आ तुझे मैं गीत बनाने आया, सिर्फ एक फूल के मानिंद के जिंदगानी है, चार-छह रोज से ज्यादा कहानी नहीं है, गीत मकरंद है महकेंगे हमेशा यारों, साज की पाखुरी सूख कर झर जानी है।’
हास्य-व्यंग के कवि सुदीप भोला ने अपनी पंक्तियों से श्रोताओं को भावुक कर दिया। बेटियों के दर्द पर आधारित कविता सुनाई, ‘गौरया ने अब बागों में आना छोड़ दिया, कोयलिया ने भी दहशत में गाना छोड़ दिया है, वहशी बनकर घूम रहे हैं आज चमन में भंवरे, डरके मारे कलियों ने मुसकाना छोड़ दिया है।’
बड़ी संख्या में लोगों ने लिया हिस्सा
आगे पंक्तियां पढ़ीं, ‘मीराबाई ने सुनकर एक तारा तोड़ दिया है, बांसुरिया ने भी सांसों से रिश्ता तोड़ लिया है। तनहाई में फफक रही बिसमिल्ला की शहनाई, बिटिया को पैजनियां मां ने डरकर नहीं दिलाई, टूट गए विश्वास डराती अपनों की परछाई, जो जन्मी नहीं अब तक वो बिटिया घबराई, कैसी बेहयाई आई, कैसी बेहयाई।’
कविता तिवारी ने पंक्तियां पढ़ीं, ‘सारी धरा तुम्हारे ही गीत गा रही है, लगा तू मधुरम वीणा बजा रही है, आ जाओ मंच पर भी आसन यहीं लगा लो, देवी सरस्वती मां तुम्हें बुला रही है।’ वहीं, राजनीति पर कटाक्ष करते हुए गजेंद्र प्रियांशु ने सुनाया, इतने निर्मोही कैसे सजन हो गए, किसकी बाहों में जाकर मगन हो गए, लौटकर के न फिर आए परदेस से, आदमी न हुए कालाधन हो गए।
आगे पढ़ा, ‘ऋतु चली जाएगी फिर से आनी नहीं, यह जवानी रहेगी जवानी नही, सब्र की एक सीमा होती पिया, धैर्य की एक सीमा भी होती पिया, हर किसी का तो दिल आडवाणी नहीं।’ इससे पूर्व इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली, उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, कुलपति प्रो. संगीता श्रीवास्तव, पुराछात्र एसोसिएशन के सचिव डॉ. कुमार वीरेंद्र ने दीप प्रज्ज्वलित कर कवि सम्मेलन का उद्घाटन किया। मंच का संचालन कर रहे कवि श्लेष गौतम को सम्मानित किया गया।