पुलिस सांकेतिक फोटो |
लाखों की वसूली का वारा-न्यारा कर रहे थानों में जमें कारखास- सूत्र
प्रयागराज (राजेश सिंह)। पुलिस की विभागीय शब्दावली में भले 'कारखास' नाम का पद न हो, लेकिन थाने इनके बिना नहीं चलते। हर थाने में वसूली के लिए किसी न किसी सिपाही या दीवान को बतौर 'कारखास' रखा जाता है। थाने से होने वाली पूरी वसूली की कमान इनके पास होती है। साहबों के लिए पैकेट तैयार करने से लेकर थाने के मद में होने वाले खर्च का ब्योरा भी कारखास ही रखता है। हालात यह हैं कि भले ही थानेदार का तबादला हो जाए, लेकिन 'कारखास' बरसों तक जमा रहता है। थानों पर चल रहे पुलिस के इस अवैध सिस्टम को पुलिसकर्मियों के बेलगाम होने की बड़ी वजह माना जा रहा है।
पिछले दिनों बलिया में पुलिसकर्मियों द्वारा की जा रही वसूली के मामले में ताबड़तोड़ कार्रवाई के बाद मिर्जापुर के पुलिस अधीक्षक ने भी सख्त रुख अख्तियार कर लिया था। पुलिस अधीक्षक ने थानों में तैनात 30 ऐसे हेड कांस्टेबल और कांस्टेबल को लाइन हाजिर कर दिया था, जिन पर थाने का कारखास होने का आरोप लगता था। लेनदेन के जो भी मामले होता था, उन्हें हैंडल करने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती थी।
आखिर क्या कारण है कि प्रयागराज जिले में थाने में जमें कारखासों पर पुलिस कमिश्नर की नज़र कब पड़ेगी। पुलिस कमिश्नर साहब.. प्रयागराज में कुछ थानों पर करीब तीन वर्षों से ज्यादा से कारखास पांव जमाए हैं। सूत्रों की मानें तो उक्त कारखास लाखों रुपए की वसूली का वारा-न्यारा कर रहे हैं। यही हाल यमुनानगर में भी है। यमुनानगर के कुछ थानों पर सालों से तैनात पुलिसकर्मियों पर नज़र कब पड़ेगी। काफी दिनों से जमें पुलिसकर्मी ट्रैक्टर-ट्राली व ट्रक चलवाने वाले ठेकेदारों से मोटी रकम वसूलने से बाज नहीं आते। इनकी गहरी सेटिंग रहती है। हर माह थाने का कारखास और ड्राइवर वसूली करता है।
मजे की बात तो यह है कि विगत कुछ महीनों पहले कोरांव थाने का कारखास का पैसा लेते हुए वीडियो वायरल होने पर कार्रवाई की गई थी। लेकिन उस कारखास की सर्किल के ही बार्डर थाने पर पुनः तैनाती दे दी गई। जबकि बलिया में हुई कार्रवाई में भी बार्डर थाना का ही मामला था। कुछ कारखास सिपाही लग्जरी वाहनों से चलते हैं। इनका रुतबा किसी साहबों से कम नहीं है। गंगानगर में भी सालों से कई सिपाही अंगद की तरह पांव जमाए हैं। आखिर इन पर नज़र कब पड़ेगी।