मेजा, प्रयागराज (विमल पाण्डेय)। सोरांव गांव में चल रही श्रीरामलीला मंचन के तीसरे दिन सोमवार को धनुष धनुष भंग होते ही दर्शकों ने गगनभेदी गर्जना करते हुए जय श्रीराम का नारा लगाया। धनुष भंग के पश्चात परशुराम और लक्ष्मण संवाद का दर्शकों ने जमकर आनंद लिया। इस बीच राजा जनक के दरबार में रावण पहुंचता हैं, जहां रावण और बाणासुर में तीव्र संवाद होता है। रावण के धनुष उठाने के प्रयास के दौरान आकाशवाणी होती है और रावण बिना धनुष उठाये चला जाता है। कूदर नरेश राजा पेटहवा ने दर्शकों को हसाया। धनुष को लेकर साधु राजा और दुष्टराजा में भयंकर संवाद हुआ। राजा जनक के सीता स्वयंवर के लिए रखा गया शिव धनुष को दूर-दूर से आए राजा उसे जब तिल भर भी न उठा सके तो राजा जनक जी सीता जी के विवाह की चिता में विलाप करने लगे। उसी दौरान गुरु की आज्ञा पाकर पहुंचे भगवान श्रीराम ने उस धनुष को हाथ में पकड़ते ही दो टुकड़े कर दिए और माता सीता जी ने भगवान के गले में वरमाला पहनाई। पंडाल भगवान के जयकारों से गूंज उठा। उसी दौरान विचरण कर रहे महर्षि भगवान परशुराम आते ही टूटा शिव धनुष देख क्रोधित हो गए। बोले शिव जी का धनुष किसने तोड़ा है धनुष तोड़ने वाला मेरा सबसे बड़ा शत्रु है। विनम्रता भरे शब्दों में श्रीराम ने मुनि परशुराम जी से कहा-नाथ शंभुधनि भंज निहारा होइहई कोऊ दास तुम्हारा। हे नाथ शिव धनुष तोड़ने वाला कोई और नहीं आपका ही दास होगा, लेकिन मुनि परशुराम जी का क्रोध शांत होने के बजाए और बढ़ गया। तभी लक्ष्मण जी ने मुनि परशुराम के क्रोध को समझाने के बाद और बढ़ते देख कह उन्होंने कह दिया कि मुनि महर्षि होकर के भी क्रोध करते हो परशुराम जी ने फरसा उठाकर लक्ष्मण को मारने का प्रयास किया तभी प्रभु श्रीराम की सच्चाई जानकर क्षमा याचना की और वापस लौट गए। सोमवार को
धनुष भंग मंचन में राजा जनक-राजू द्विवेदी, सतानंद-सत्यम द्विवेदी, विश्वामित्र-श्रीगणेश द्विवेदी, राम-प्रियांशू द्विवेदी, लक्ष्मण-जय, सीता-अनिक, सुनैना-रानू, रावण-राजेश द्विवेदी, बाणासुर-अखिलेश द्विवेदी, साधू राज-धीरज द्विवेदी, दुष्टराजा-राजेश तिवारी, परशुराम-दीपक द्विवेदी, बलवत व सतवंत सिंह-शिव सागर द्विवेदी, पेटहवा राजा-रामसागर वर्मा व लटकटिया-लाला के साथ ही डायरेक्टर-राम आसरे द्विवेदी, व्यास-श्यामू शुक्ल के कुशल निर्देशन व संचालन में धनुष भंग रामलीला मंचन को अगली रात्रि तक के लिए विश्राम दिया गया।