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कैसा है गंगा का जल... एनजीटी की सुनवाई के दौरान सामने आई रिपोर्ट

 

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कुंभ नगर (राजेश शुक्ल)। प्रयागराज में गंगा और यमुना नदियों में सीवेज के बहाव को रोकने को लेकर चल रही एनजीटी की सुनवाई के दौरान सामने आई रिपोर्ट से जल निगम के अफसरों की बोलती बंद है। दरअसल, जल निगम की ओर से गंगा और यमुना के जल स्तर को बेहतर रखने के लिए 600 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च कर दिए लेकिन पानी में फीकल कोलीफार्म बैक्टीरिया की मात्रा बढ़ गई।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने जो रिपोर्ट जारी की है उसमें छह पैमानों पर गंगा व यमुना के पानी की जांच हुई है। इसमें पीएच यानी पानी कितना अम्लीय या क्षारीय है, फीकल कोलीफार्म, बीओडी यानी बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड, डीओ यानी डिजाल्व्ड आक्सीजन और सीओडी केमिकल ऑक्सीजन डिमांड शामिल हैं।

इन छह पैमानों पर जितनी भी जगहों से नमूने लिए गए हैं उनमें ज्यादातर में फीकल कोलीफार्म बैक्टीरिया की मात्रा मानक से अधिक पाया गया है। इसके अलावा पांच अन्य पैमानों पर पानी की गुणवत्ता मानक के अनुरूप है। जिले में सभी सैंपल प्वाइंट पर फीकल कोलीफार्म बैक्टीरिया तय मानक से अधिक नदियों के पानी में फीकल कोलीफार्म नाम का बैक्टीरिया पाया जाता है।

सामान्य स्थिति में एक मिलीलीटर पानी में 100 बैक्टीरिया होने चाहिए लेकिन अमृत स्नान के ठीक एक दिन पहले यमुना नदी के एक सैंपल में फीकल कोलीफार्म 2300 पाया गया। संगम से लिए गए सैंपल में फीकल कोलीफार्म बैक्टीरिया एक मिलीलीटर पानी में 100 की बजाय 2000 निकला है। इसी तरह टोटल फीकल कोलीफार्म 4500 है। गंगा पर बने शास्त्री ब्रिज के पास से लिए गए नमूने में फीकल कोलीफार्म बैक्टीरिया 3200 और टोटल फीकल कोलीफार्म 4700 है।

संगम से दूर वाले हिस्से में दोनों की संख्या कम है

संगम से दूर वाले हिस्से में दोनों की संख्या कम है। फाफामऊ के पास से लिए गए नमूने में फीकल कोलीफार्म बैक्टीरिया एक मिलीलीटर पानी में 100 के बजाय 790 पाया गया। इसी तरह राजापुर मेहंदौरी में यह 930 पाया गया। झूंसी में छतनाग घाट और एडीए कालोनी के पास इसकी मात्रा 920 पाई गई। नैनी में अरैल घाट के पास यह 680 था। राजापुर में यह 940 पाया गया। ऐसे में यह केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों के मुताबिक यह सी श्रेणी में आता है। इसमें पानी को बिना प्यूरिफिकेशन और डिसइंफेक्ट किए नहाने के लिए भी प्रयोग नहीं किया जा सकता है।

श्रद्धालुओं को बताएं गंगा के पानी की गुणवत्ता

राष्ट्रीय हरित अधिकरण यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उप्र सरकार को दिए निर्देश में बताया कि श्रद्धालुओं को उस पानी की गुणवत्ता को लेकर जानकारी दें, जहां वे डुबकी लगाने जा रहे हैं। एनजीटी ने दिसंबर 2024 में ही निर्देश में कहा था कि महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में गंगा जल की पर्याप्त उपलब्धता रहनी चाहिए और ये जल नहाने और पीने के लिए सही होना चाहिए।

मानक से अधिक फीकल कोलीफार्म बैक्टीरिया बीमारियों की वजह

बताते हैं कि जिस पानी में मानक से ज्यादा फीकल कोलीफार्म बैक्टीरिया होगा, वह किसी इस्तेमाल के लायक नहीं रहेगा। यह पानी अगर शरीर में गया तो बीमारियां पैदा करेगा। अगर ऐसे पानी से नहाया जाता है या इसे पिया जाता है तो यह त्वचा रोग की वजह बन सकता है।

फीकल कालीफार्म बढ़ने का कारण

शौचालयों का मानक के मुताबिक निर्माण न कराया जाना।

शौचालयों से सीधे मल नाली में डालना।

शौचालय पिट (गड्ढे) की समय से सफाई न होना।

शौचालय पिट के आसपास फर्श का न होना।

पिट की जमीन की सतह को कच्चा रखना।

ये है भविष्य का खतरा

जिस स्तर पर फीकल कोलीफार्म बढ़ा है। इसके खतरनाक पार्ट पानी के साथ भू-गर्भ जल स्तर तक पहुंच रहे हैं। कुछ दिनों में भू-गर्भ जल स्तर भी प्रदूषित हो सकता है। इससे तमाम खतरनाक बीमारियों हो सकती है। 


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