कुंभ नगर (राजेश सिंह/राजेश शुक्ल)। महाकुंभ केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि आध्यात्मिक परिवर्तन और सनातन धर्म के वैश्विक विस्तार का केंद्र भी बनता जा रहा है। इसी कड़ी में आयरलैंड, अमेरिका और जापान से आए तीन विदेशी शिष्यों ने शक्तिधाम आश्रम के शिविर में ब्रह्मचारी दीक्षा ग्रहण की। इसमें एक कंस्ट्रक्शन इंजीनियर, एक्यूपंचर विशेषज्ञ और आइटी प्रोफेशनल हैं।
ब्रह्मचारी दीक्षा किसी साधारण संकल्प से बढ़कर हैकृयह पूर्ण रूप से सनातन धर्म के सिद्धांतों में समर्पण का प्रतीक है, जिसमें व्यक्ति भक्ति, सेवा और साधना के मार्ग पर अग्रसर होता है। दीक्षा के बाद रेणुका मां नाम पाने वाली एक्यूपंक्चर स्पेशलिस्ट जापान के रेइको ह्योदो ने बताया कि वह प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धतियों और योग से प्रेरित थीं, जिससे उन्होंने सनातन धर्म के प्रति आस्था विकसित की। उनका कहना है, ष्मैंने महसूस किया कि जीवन केवल भौतिक सुखों तक सीमित नहीं है।
ब्रह्मचारी दीक्षा ने मुझे आत्म-साक्षात्कार के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी।ष् वहीं आइटी प्रोफेशनल अमेरिका के जान डेविड मिलर दीक्षा के बाद देवेंद्र दास बन गए हैं, वह कहते हैं कि 40 वर्षों से तकनीक के क्षेत्र में कार्यरत थे। आईटी के क्षेत्र में कार्य करते हुए मैंने भौतिक जीवन की सीमाओं को महसूस किया। अब मैं अपने अनुभवों को आध्यात्मिक शिक्षा और सेवा में लगाना चाहता हूं।
सांईं मां लक्ष्मी देवी मिश्रा ने बताया कि ब्रह्मचर्य का अर्थ ष्ब्रह्म की ओर बढ़नाष् है। जब कोई व्यक्ति ब्रह्मचारी (पुरुष) या ब्रह्मचारिणी (महिला) के रूप में दीक्षित होता है, तो वह शुद्धता, अनुशासन, गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण और आत्म-साक्षात्कार के मार्ग पर चलने का संकल्प लेता है। दीक्षा लेने वाले भले ही अपने-अपने क्षेत्रों में कार्यरत रहें, लेकिन उनका आंतरिक उद्देश्य अध्यात्म और मानव सेवा ही होता है।