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गुलामी के लंबे कालखंड के बावजूद खुसरो ने अतीत से जोड़े रखाः पीएम मोदी

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नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि गुलामी के लंबे काल खंड के बाद भी आज हम अतीत से परिचित हैं, तो इसमें हजरत खुसरो की रचनाओं की बड़ी भूमिका है। इस विरासत को समृद्ध करते रहना है। अमीर खुसरो ने हिंदुस्तान की तुलना जन्नत से की थी। हमारा हिंदुस्तान जन्नत का वो बगीचा है जहां तहजीब का हर रंग फला-फूला है। यहां की मिट्टी के मिजाज में ही कुछ खास है। शायद इसलिए जब सूफी परंपरा हिंदुस्तान आई, तो उसे भी लगा जैसे वो अपनी ही जमीन से जुड़ गई हो।

प्रधानमंत्री मोदी शुक्रवार को सुंदर नर्सरी में आयोजित जहान-ए-खुसरो कार्यक्रम में शामिल हुए। उन्होंने रूमी फाउंडेशन, मुजफ्फर अली और मीरा अली को शुभकामना दी, साथ ही देशवासियों को रमजान की मुबारकबाद भी दी।

भारत में सूफी परंपरा ने अपनी एक अलग पहचान बनाई- पीएम

मोदी ने कहा कि सूफी संगीत ऐसी साझी विरासत है जिसको हम सब मिल-जुलकर जीते आए हैं। बाबा फरीद की रुहानी बातों ने दिलों को सुकून दिया, हजरत निजामुद्दीन की महफिलों ने मोहब्बत के दीये जलाए, हजरत अमीर खुसरो की बोलियों ने नए मोती पिरोए और जो नतीजा निकला, वो हजरत अमीर खुसरो की इन मशहूर पंक्तियों में व्यक्त हुआ- बन के पंछी भए बावरे, ऐसी बीन बजाई सांवरे। तार तार की तान निराली, झूम रही सब बन की डारी।

आगे कहा कि भारत में सूफी परंपरा ने अपनी एक अलग पहचान बनाई। सूफी-संतों ने खुद को महज मस्जिदों या खानकाहों तक सीमित नहीं रखा। उन्होंने पवित्र कुरान के हर्फ पढ़े, तो वेदों के स्वर भी सुने। अजान की सदा में भक्ति के गीतों की मिठास भी जोड़ी। मुझे खुशी है कि आज जहान-ए-खुसरो सूफी परंपरा की आधुनिक पहचान बन गया है।

प्रधानमंत्री ने कहा- हजरत खुसरो कहते थे, भारत के संगीत में एक सम्मोहन है

प्रधानमंत्री ने कहा, किसी भी देश की सभ्यता, उसकी तहजीब को स्वर, गीत- संगीत से मिलते हैं। उसकी अभिव्यक्ति कला से होती है। हजरत खुसरो कहते थे, भारत के संगीत में एक सम्मोहन है। जब सूफी संगीत और शास्त्रीय संगीत की प्राचीन धाराएं एक-दूसरे से जुड़ीं, तो हमें प्रेम और भक्ति की नई कल-कल सुनने को मिली। यही हमें हजरत खुसरो की कव्वाली में मिली, बाबा फरीद के दोहे में मिली। बुल्ले शाह के स्वर मिले, यहां हमे कबीर भी मिले, रहीम भी मिले और रसखान भी मिले।

सूफी परंपरा ने ना केवल इंसान की रुहानी दूरियों को खत्म किया- पीएम

आगे कहा कि इन संतों और औलियो ने भक्ति को नया आयाम दिया। आप चाहें सूरदास को पढ़ें या रहीम और रसखान को, या आप आंख बंद करके हजरत खुसरो को सुनें। जब आप गहराई में उतरते हैं, तो उसी एक जगह पहुंचते हैं, वो जगह है आध्यात्मिक प्रेम की वो ऊंचाई जहां इंसानी बंदिशें टूट जाती हैं। इंसान और ईश्वर का मिलन महसूस होता है।

सूफी परंपरा ने ना केवल इंसान की रुहानी दूरियों को खत्म किया, बल्कि दुनिया की दूरियों को भी कम किया है। मुझे संतोष है कि जहां-ए-खुसरो जैसे प्रयास इस दायित्व को बखूबी निभा रहे हैं।

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