आगरा। वायुसेना स्टेशन में विमानों का जमावाड़ा होने जा रहा है। अप्रैल में आगरा के आसमान में फाइटर जेट गरजेंगे। दो सप्ताह तक चलने वाले अभ्यास में पहली बार भारतीय वायुसेना का नया विमान सी-295 भी शामिल होगा। इसके अलावा मालवाहक विमान भी शामिल होंगे। भारतीय वायुसेना द्वारा नियमित अंतराल में किसी न किसी स्टेशन या एयरबेस में अभ्यास का आयोजन किया जाता है। इसमें लड़ाकू विमानों की कार्य कुशलता की जांच होती है।
आगरा मालवाहक विमान एएन-32, सी-295, सी-130जे, आइएल-76 और 78 विमानों का गढ़ है। सी-17 ग्लोबमास्टर विमान भी अधिकांश समय रहता है। पिछले वर्ष नवंबर में विमानों का अभ्यास हुआ था। इस वर्ष अप्रैल में भारतीय वायुसेना का अभ्यास आगरा में होगा। इसमें विमान विभिन्न करतब भी दिखाएंगे। खासकर किस तरीके से दुश्मनों को चकमा दिया जा सकता है।
14 दिनों तक चलेगा अभ्यास
फाइटर जेट के साथ मालवाहक विमान भी उड़ान भरेंगे। यह अभ्यास 14 दिनों तक चलेगा। इस अवधि में अभ्यास में जगुआर, सुखोई-30, मिराज-2000, तेजस, मिग-29 सहित अन्य विमान शामिल हो सकते हैं। इस विमान का आगरा में स्क्वाड्रन है। एक विमान आ चुका है। जल्द ही पांच और विमान इस साल तक आएंगे। अभ्यास सुबह और शाम को होगा।
आत्मनिर्भर भारत की दिशा और रक्षा के क्षेत्र में देश सशक्त हो रहा है। कारगिल युद्ध में जिस रडार की कमी महसूस की जा रही थी, अब वह दूर हो गई है। भारतीय सेना को हथियार पता लगाने वाला स्वाति रडार मिल गया है। भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड (बीईएल) ने रडार को समय से पहले तैयार कर लिया है। मंगलवार को भारतीय सेना की 49वीं यूनिट (मैदानी क्षेत्र) को यह रडार मिल गया है।
सेना को छह माह पूर्व पहाड़ी श्रेणी का रडार मिला था
इसकी खासियत यह है कि यह दुश्मन की तोपों और हथियारों की फायरिंग स्थल का न सिर्फ पता लगाता है, बल्कि उस पर राकेट और गोलियों की बौछार भी करता है। इससे पलक झपकते ही दुश्मन का खात्मा हो जाएगा। सेना को छह माह पूर्व पहाड़ी श्रेणी का रडार मिला था। इन दोनों रडार की तैनाती पाकिस्तान, चीन सहित अन्य बार्डर पर की जाएगी। बीईएल द्वारा स्वाति हथियार रडार विकसित किया गया। वर्ष 2018 में गणतंत्र दिवस की परेड में इस रडार का प्रदर्शन किया गया था। अभी तक इस श्रेणी के रडार को अमेरिका से खरीदा जाता था।
मैदानी क्षेत्र में रडार दिया गया
यह रडार न सिर्फ महंगे पड़ते थे बल्कि मरम्मत खर्च भी अधिक आता था। इस पर बीईएल ने पहाड़ी और मैदानी क्षेत्र वाले हथियार का पता लगाने वाले स्वाति रडार विकसित किए। छह माह पूर्व पहाड़ी क्षेत्र को रडार दिया गया। मंगलवार को मैदानी क्षेत्र में रडार दिया गया। भारतीय सेना ने बीईएल को मार्च 2023 में 12 रडार का आर्डर दिया था। निर्धारित समय से पहले बीईएल ने स्वदेशी रडार तैयार कर सेना को दिए गए। मंगलवार को सेंट्रल आर्डिनेंस डिपो (सीओडी) परिसर में विशेष कार्यक्रम हुआ।
सीओडी के ब्रिगेडियर आरआर यादव को इस रडार की चाबी बीईएल बेंगलुरु की महाप्रबंधक सैन्य रडार हेमलता बीजे ने दी। मेजर जनरल और अतिरिक्त महानिदेशक आर्डिनेंस सर्विसेज-बी विक्रम तनेजा, निदेशक रजनीश शर्मा के अलावा 509 आर्मीबेस वर्कशाप के अधिकारी मौजूद रहे। इसमें रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरओडी) और इलेक्ट्रानिक्स और रडार विकास प्रतिष्ठान (एलआरडीई) का भी योगदान रहा।
स्वाति रडार दुश्मनों के तोप और टैंक, हथियारों का पता लगाता है। आखिर गोली या फिर बम किधर से आ रहा है। पता लगाने के तुरंत बाद जवाबी हमला करता है। इसमें गोली से लेकर बम व अन्य हथियार शामिल हैं। यह रडार ऊंचाई वाले इलाकों के साथ मैदानी क्षेत्र में बखूबी काम करता है।
बीईएल द्वारा तैयार किए गए रडार अहम हैं। स्वाति रडार के विभिन्न परीक्षण किए गए। हर परीक्षण में यह खरा उतरा। यह रडार 85 प्रतिशत से अधिक स्वदेशी सामग्री से तैयार किया गया है। बीईएल द्वारा इस तरीके के रडार का निर्यात विभिन्न देशों को किया गया है। इसलिए खास है रडार कारगिल युद्ध वर्ष 1999 में हुआ था। इसके बाद से नवीन रडार प्रणाली को हासिल करने के प्रयास तेज हो गए थे। पाकिस्तानी सेना द्वारा ऊंची चोटियों के पीछे से गोलियों और बमों की बरसात की जा रही थी। उस दौरान भारत के पास सिम्बेलान मोर्टार डिटेक्टिंग रडार थे। पाकिस्तान के पास एएन/टीपीक्यू 36 फायर फाइंडर रडार था।