नई दिल्ली। भारत अपने तीन बेहद अहम कारोबारी साझेदारों अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के साथ विशेष कारोबारी व निवेश समझौते को इसी साल अंतिम रूप दे देगा। इन तीनों का भारत के कुल द्विपक्षीय वैश्विक कारोबार में एक तिहाई फीसद से ज्यादा का हिस्सा है।
वैश्विक स्तर पर अनिश्चितता के बावजूद भारत के शीर्ष राजनीतिक स्तर पर बड़े कारोबारी साझेदारों के साथ व्यापक व बराबरी के अवसर बनाने वाले कारोबारी समझौता करने का मन बना लिया गया है।
पिछले हफ्ते यूरोपीय आयोग की राष्ट्रपति उर्सला लेयेन और पीएम नरेंद्र मोदी के बीच हुई बैठक में उक्त दोनों नेताओं ने मुक्त व्यापार व निवेश समझौते को इसी साल करने का सीधा निर्देश अपने संबंधित अधिकारियों को दिया। ऐसा ही निर्देश ब्रिटेन और अमेरिका के साथ भी कारोबारी समझौते करने को लेकर दिया गया है।
अमेरिकी यात्रा पर उद्योग मंत्री पीयूष गोयल
सोमवार को वाणिज्य व उद्योग मंत्री पीयूष गोयल अमेरिका के साथ इस बारे में वार्ता की शुरुआत करने को लेकर वहां पहुंच रहे हैं। दूसरे देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) करने का फैसला भारत सरकार के भीतर पिछले कई महीनों के व्यापक विमर्श के बाद किया गया है। इसमें वित्त मंत्रालय, आरबीआई, वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय के साथ ही विदेश मंत्रालय के सुझावों को शामिल किया गया है।
सरकार के बीच यह सोच है कि अमेरिका की नई सरकार की तरफ से जिस तरह से कई देशों पर पारस्परिक शुल्क लगाने की बात कही जा रही है, उससे वैश्विक कारोबारी परिदृश्य में काफी उथल-पुथल आने के आसार हैं। भारत को अभी से इस हालात में अपना द्विपक्षीय कारोबार को व्यापार बनाने के लिए तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। भारत का यह भी आकलन है कि अमेरिका, यूरोपीय संघ (ईयू) और ब्रिटेन के चीन के साथ कारोबारी रिश्तों में लगातार तनाव बढ़ेगा।
तीनों देशों के साथ भारत मजबूत करेगा आर्थिक संबंध
भारत को इस स्थिति में इन तीनों देशों के साथ द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों को मजबूत करने का अवसर मिलेगा। भारत पूर्व में इन तीनों देशों के साथ कारोबारी समझौता करने को लेकर बातचीत कर चुका है लेकिन सही अवसर नहीं मिलने की वजह से भारत को कदम पीछे खींचना पड़ा है। अब ऐसा नहीं होगा। अगर आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 2023-24 में भारत का कुल वैश्विक कारोबार 778 अरब डॉलर का रहा था। इसमें अमेरिका के साथ 120 अरब डॉलर, ब्रिटेन के साथ 21 अरब डॉलर और ईयू के साथ 137 अरब डॉलर का रहा था। इसमें अमेरिका और ईयू के साथ कारोबारी संतुलन भारत के पक्ष में है।
अमेरिका के साथ व्यापारिक समझौते
वर्ष 2030 तक भारत इन तीनों के साथ अपने द्विपक्षीय कारोबार को कम से कम तीन गुणा बढ़ाने की मंशा रखता है। फरवरी, 2025 में पीएम नरेंद्र मोदी और राष्ट्पति डोनाल्ड ट्रंप ने द्विपक्षीय कारोबार को वर्ष 2030 तक 500 अरब डॉलर करने का लक्ष्य रखा है। जबकि पिछले हफ्ते भारत के दौरे से वापस लौटे ब्रिटेन के व्यवसाय व कारोबार मंत्री जोनाथन रेनाल्ड्स ने कहा है कि व्यापारिक समझौते का उद्देश्य पांच से छह वर्षों में द्विपक्षीय कारोबार को तीन गुणा करना है।
अमेरिका के साथ जीरो शुल्क ही सबसे उपयुक्त तरीका
अगर ट्रंप प्रशासन भारत पर भी पारस्परिक शुल्क लगाने का फैसला करता है तो भारत के पास उससे बचने के सबसे बेहतर उपाय क्या है। वैश्विक कारोबार पर शोध करने वाली एजेंसी जीटीआरआई ने रविवार को एक व्यापक अध्ययन रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसमें कहा है कि भारत को अमेरिका के साथ शून्य शुल्क लगाने का समझौता कर लेना चाहिए।
भारत को यह प्रस्ताव करना चाहिए कि वह अमेरिका के अधिकांश औद्योगिक उत्पादों पर शून्य टैक्स लगाएगा, ऐसे में अमेरिका को भी ऐसा ही करना चाहिए। इस बारे में अप्रैल, 2025 से पहले ही भारत को अमेरिका के समक्ष प्रस्ताव पेश कर देना चाहिए।
ट्रंप ने कई देशों पर पारस्परिक टैक्स लगाने की योजना बनाई
राष्ट्रपति ट्रंप ने भारत समेत कई देशों पर 01 अप्रैल, 2025 से पारस्परिक टैक्स लगाने की नीति बनाई है। इसके तहत जितना टैक्स भारत अमेरिकी उत्पादों पर लगाएगा, अमेरिका भी उतना ही टैक्स भारत के उत्पादों पर लगाएगा।
भारत के वाणिज्य व उद्योग मंत्री पीयूष गोयल सोमवार को छह दिवसीय यात्रा पर अमेरिका पहुंच रहे हैं जहां उनकी कारोबार से जुड़े सभी मुद्दों पर बात होने वाली है।जीटीआरआइ के मुताबिक अमेरिका के साथ मुक्त व्यापार समझौता करने के विकल्प को सबसे खराब करार दिया है। इसका कहना है कि एफटीए की आड़ में अमेरिका भारत सरकार पर सरकारी खरीद में भी अपनी कंपनियों के लिए खोलने का दबाव बना सकता है।
जीटीआरआई ने दिया सुझाव
अमेरिका अपने सेवा सेक्टर को भी प्रतिबंधित कर रहा है इससे एफटीए होने का भारत के सेवा सेक्टर को कोई फायदा नहीं होगा। जीटीआरआई ने एक अन्य सुझाव दिया है कि भारत कोई कदम नहीं उठाए। कहा है कि, जैसे शिव ने पूरा जहर पी लिया था, वैसे ही भारत को अमेरिका के कदमों पर चुप्पी साध लेनी चाहिए। क्योंकि उसी तर्ज पर कदम उठाने से कारोबारी युद्ध शुरू हो जाएगा। नुकसान भारत को ज्यादा होगा। इसे दूसरा सबसे बेहतर विकल्प बताया है।