नई दिल्ली। भारतीय ओलंपिक संघ की अध्यक्ष पीटी ऊषा ने लिखा है कि नई खेल नीति भारत को खेल महाशक्ति बना सकती है। पीटी ऊषा ने खेलो भारत नीति की जमकर तारीफ करते हुए कहा कि नीति की विशेषता इसकी व्यवहारिकता है। पीटी ऊषा ने दो अन्य स्कीम के बारे में उल्लेख करके सरकार के मजबूत प्लान सबके सामने प्रस्तुत किया। ‘खेलो भारत नीति’ को लागू करने का यही सबसे उपयुक्त समय है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का सपना है कि 2047 तक भारत को एक ऐसा राष्ट्र बनाया जाए, जो न केवल विकासशील हो, बल्कि शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ तथा खेलों में अग्रणी भी हो।
यदि यह नीति अपने पूर्ण स्वरूप में लागू होती है, तो इसका समावेशी दृष्टिकोण और सहभागी मॉडल भारत को वैश्विक खेल मानचित्र पर एक मजबूत पहचान दिला सकता है। आज खेल की परिभाषा केवल पदकों तक सीमित नहीं है। ‘ओलंपिज्म’ अब खेलों का मूल तत्व बन चुका है, जो न केवल प्रतिस्पर्धा, बल्कि नागरिकों में स्वास्थ्य जागरूकता, अनुशासन और आत्मविकास का मार्ग भी प्रशस्त करता है।
खेलो भारत नीति इसी सोच को सामाजिक आंदोलन का रूप देने का प्रयास है। इस नीति की विशेषता इसकी व्यवहारिकता है। यह केवल सपने नहीं दिखाती, बल्कि उन्हें साकार करने की दिशा में ठोस कदम उठाती है। खेलों को केवल पदकों से मापा नहीं जाना चाहिए, बल्कि यह देखा जाना चाहिए कि युवाओं की ऊर्जा किस दिशा में जा रही है और कैसे वह एक विकसित राष्ट्र के निर्माण में सहायक बन रही है। खेलो इंडिया और टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम जैसी पहलों ने स्पष्ट कर दिया है कि सरकार के पास एक ठोस प्रक्रिया है। अब आवश्यकता है उस प्रक्रिया को और अधिक सशक्त बनाने की। सूक्ष्म समन्वय, पारदर्शिता और सभी हितधारकों की सक्रिय सहभागिता से। इस नीति का एक बड़ा पहलू यह है कि इसे राष्ट्रीय शिक्षा नीति से जोड़ा गया है।
मैं स्वयं एक स्कूल चौंपियन थी और जानती हूं कि कैसे विद्यालय स्तर पर खेलों से जुड़ाव किसी एथलीट की नींव मजबूत करता है। नीति के अंतर्गत ब्लॉक स्तर पर खेल अवसंरचना का विकास प्रस्तावित है, ताकि दूरदराज क्षेत्रों के बच्चों को भी समान अवसर मिल सकें। इससे प्रतिभा की पहचान और पोषण दोनों में मदद मिलेगी।2036 ओलंपिक की मेजबानी की तैयारी में जुटे भारत के लिए यह नीति गेम चेंजर साबित हो सकती है। एक ओलंपिक पदक तक पहुंचने में आठ से 12 साल लगते हैं, हमारे पास समय है, लेकिन उसे गंवाने का विकल्प नहीं।
इस यात्रा में खिलाड़ी और कोच तो केंद्र में हैं ही, लेकिन प्रशासकों की भूमिका भी निर्णायक होगी। नीति निष्पक्षता, लैंगिक समानता और पारदर्शिता को प्राथमिकता देती है। साथ ही, कार्पाेरेट जगत को भी अब खिलाड़ियों के दीर्घकालिक हित में योगदान देना होगा। हर सफल ओलंपिक राष्ट्र की ताकत केवल मैदान में नहीं, बल्कि उसकी एकजुट खेल संस्था में होती है। श्खेलो भारत नीतिश् भारतीय खेल संगठनों को एक मंच पर लाने की दिशा में एक मजबूत पहल है, ताकि हर स्तर पर समन्वय बना रहे और समस्याओं का सामूहिक समाधान निकले।
यदि हम सभी एक दृष्टि और प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ें, तो भारत खेलों की दुनिया में एक नई पहचान बना सकता है। यही इस नीति का असल उद्देश्य है, भारत में खेल को एक संस्कृति बनाना।(लेखिका भारतीय ओलंपिक संघ की अध्यक्ष हैं)