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बांग्लादेशः हिंसक विद्रोह के एक वर्ष बाद भी राजनीतिक स्थिरता कोसों दूर

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ढाका। यूनुस सरकार ने 11 सुधार आयोग बनाए हैं, जिनमें एक राष्ट्रीय सहमति आयोग भी शामिल है जो प्रमुख राजनीतिक दलों के साथ चुनाव प्रक्रिया पर काम कर रहा है। लेकिन अब तक चुनाव की समयसीमा और प्रक्रिया पर सहमति नहीं बन सकी है। महिलाओं व अल्पसंख्यकों पर धार्मिक चरमपंथी हमले बढ़े हैं।

बांग्लादेश में पांच अगस्त को छात्रों के नेतृत्व में बड़े विद्रोह होने और पूर्व पीएम शेख हसीना के देश छोड़ने के एक साल बाद भी देश अब तक राजनीतिक स्थिरता हासिल नहीं कर पाया है। खूनी विद्रोह में हसीना का 15 साल लंबा शासन खत्म हो गया और लेकिन उनके भागकर भारत में शरण लेने के 3 दिन बाद नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस ने अंतरिम सरकार प्रमुख के रूप में कार्यभार संभाला। उन्होंने व्यवस्था बहाली के बाद नए चुनावों का वादा किया, लेकिन हालात जस के तस हैं।

न्यूयार्क आधारित मानवाधिकार समूह ‘ह्यूमन राइट्स वॉच’ की एशिया मामलों की निदेशक मीनाक्षी गांगुली ने कहा, जो हजारों लोग एक साल पहले शेख हसीना की दमनकारी सत्ता के खिलाफ हिंसा की आशंका के बावजूद सड़कों पर उतरे थे, उनकी उम्मीदें अब भी अधूरी हैं। समूह ने कहा, अंतरिम सरकार अपनी मानवाधिकार प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में नाकाम रही है।  

न चुनाव प्रक्रिया पर काम, न धार्मिक हमले कम हुए

यूनुस सरकार ने 11 सुधार आयोग बनाए हैं, जिनमें एक राष्ट्रीय सहमति आयोग भी शामिल है जो प्रमुख राजनीतिक दलों के साथ चुनाव प्रक्रिया पर काम कर रहा है। लेकिन अब तक चुनाव की समयसीमा और प्रक्रिया पर सहमति नहीं बन सकी है। महिलाओं व अल्पसंख्यकों पर धार्मिक चरमपंथी हमले बढ़े हैं। हालांकि, मानवाधिकार समूहों का कहना है कि जबरन गायब करने जैसी कुछ ज्यादतियां रुकी हैं, लेकिन अब मनमाने ढंग से हिरासत में लिए जाने के आरोप सामने आ रहे हैं।

राजनीति बांटने वाली ताकतें उभरीं

ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा, देश में राजनीतिक अस्थिरता का दौर अब भी जारी है। पूर्व पीएम खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने दिसंबर या फरवरी में चुनाव की मांग की है, जबकि यूनुस सरकार अप्रैल में चुनाव की बात कह रही है। प्रतिबंधित इस्लामी दलों को यूनुस सरकार में उभरने का मौका मिला। जमात-ए-इस्लामी भी बढ़ा, जिससे आशंका है कि कट्टरपंथी ताकतें देश की राजनीति को बांट सकती हैं।

असली आजादी अब तक नहीं

राजनीतिक विश्लेषक नजमुल अहसान कालिमुल्लाह ने कहा, इस्लामी ताकतों का उभार दिखाता है कि भविष्य में बांग्लादेश में कट्टरता की जड़ें गहराई तक जा सकती हैं। उन्होंने कहा, यूनुस सरकार से लोगों की उम्मीद थी कि वह चुनावी प्रक्रिया में सुधार को प्राथमिकता देगी, लेकिन वह अवसर चूकती नजर आ रही है। आंदोलन के वक्त अपनी खिड़की से फोन पर बात करते हुए एक गोली का शिकार बनीं मेहरुन्निसा के पिता मोशर्रफ हुसैन ने कहा, यह सिर्फ सत्ता परिवर्तन का आंदोलन नहीं था, बल्कि यह गहरी निराशा की अभिव्यक्ति था। 54 वर्षों बाद भी हमें असली आजादी नहीं मिली है।

एक वर्ष में भीड़ हिंसा से 637 मौतें

आज बांग्लादेश के मोहल्लों में भय और अविश्वास का माहौल है। सिर्फ एक साल में 637 लोगों की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई, जिनमें 41 पुलिस अधिकारी भी शामिल रहे। जहां कभी अदालतों में फैसले होते थे, अब वहां भीड़ सजा सुनाती है। बहुत-सी घटनाएं चोरी या छेड़छाड़ जैसे छोटे आरोपों से शुरू होती हैं और राजनीतिक या सांप्रदायिक नफरत में तब्दील हो जाती हैं। मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि मारे गए 70ः से ज्यादा लोग अवामी लीग से जुड़े थे। 

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