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आजादी के बाद का राग रागदरबारी का मूल हैः प्रो. मुश्ताक अली

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प्रयागराज (राजेश सिंह)। राजभाषा अनुभाग इविवि द्वारा आयोजित जन्मशती स्मरण राष्ट्रीय संगोष्ठी के चौथे दिन के पहले सत्र में श्रीलाल शुक्ल को याद किया गया। इस सत्र की अध्यक्षता प्रो. मुश्ताक़ अली ने की। उन्होंने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि आज हर जगह शिवपालगंज है। उन्होंने बताया कि राग दरबारी को तीखी आलोचनाओं से भी गुजरना पड़ा। प्रो.मुश्ताक़ अली ने कहा कि आजादी के बाद का राग रागदरबारी का मूल है। उन्होंने नेमिचंद जैन, मुद्राराक्षस आदि आलोचकों की समीक्षा प्रस्तुत की।

जेएनयू से आए वरिष्ठ आलोचक प्रो. रामचंद्र ने कहा प्रशासनिक जीवन में रहने वाला व्यक्ति व्यवस्थाजन्य त्रासदियों के परिणति से कैसे रचना में विघटित होता है यह श्रीलाल शुक्ल जी की सारी रचनाओं में दिखाई देता। श्रीलाल शुक्ल व्यंग्य इसलिए लिखते है कि व्यंग्य पढ़कर मुस्कराने के बाद सोच ले वह मुस्कराया क्यों?

उन्होंने कहा कि मकान, घेराव तथा बिसरते लोग जैसी कृतियों में श्रीलाल शुक्ल निरंतर चेहरे की परतों को सामने ले आते। श्रीलाल शुक्ल राष्ट्र के बीच की दूरियों को दिखाने की कोशिश करते है। रागदरबारी समाज की विडंबना एवं विकृतियों का रेखांकन करती।

प्रो. राकेश सिंह ने कहा, राग दरबारी आधुनिक समाज के विघटन के तीनों स्तरों पर व्यंग्य है। विश्व साहित्य में राग दरबारी अत्यंत समादृत है और एक बड़ा सटायर है। उन्होंने अंग्रेजी में व्यंग लेखकों को संदर्भित करते हुए श्रीलाल शुक्ल के व्यंग्य की प्रासंगिकता पर बात की। उन्होंने व्यंग्य की अनुवाद परंपरा में होने वाली विसंगतियों की ओर इंगित किया। प्रो. राकेश सिंह ने गिलियन राइट द्वारा अंग्रेजी में अनूदित किताब का मूल रागदरबारी से तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया।

रज्जू भय्या राज्य विश्वविद्यालय से आए प्रो.आशुतोष सिंह ने कहा कि आज का शिवपालगंज 70 के दशक से अधिक खतरनाक और संवेदनाशून्य है। शिवपालगंज एक भूखंड नहीं बल्कि एक प्रवृत्ति है। रागदरबारी को हिन्दी विषय के अलावा अन्य विषयों के छात्रों और शिक्षकों की बीच इसकी प्रासंगिक बनी हुई है। प्रो. आशुतोष सिंह ने रागदरबारी के बहाने शिक्षा व्यवस्था की खामियों पर जरूरी और महत्वपूर्ण बात रखी।

श्रीलाल शुक्ल के पारिवारिक सदस्य डॉ.श्रीरंजन शुक्ला ने निजी जीवन के संस्मरणों के हवाले से बात रखी। उन्होंने इलाहाबाद प्रवास, इलाहाबाद विश्वविद्यालय तथा यहां की साहित्यिक माहौल के दिनों को याद किया। इस सत्र का संचालन डॉ दीनानाथ एवं आभार ज्ञापन डॉ. गाजुला राजू ने किया।

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