![]() |
| स्वामी चन्द्र प्रकाश (डब्ल्यू महाराज) |
चन्द्र प्रकाश से स्वामी विरक्तानंद जी महाराज बनने तक का सफर
प्रयागराज (राजेश सिंह)। हंडिया तहसील क्षेत्र के सैदाबाद विकासखण्ड अंतर्गत दुमदुमा गांव में 1982 में जन्में चन्द्र प्रकाश यादव (डब्ल्यू महाराज) जी बचपन से ही स्कूल से आने के बाद गांव के गंगा नदी के किनारे स्थित गोकूला कूटी आश्रम पर जाकर महाराज परमहंस स्वामी की सेवा में लगे रहते। बचपन से ही उनकी भक्ति में बहुत मन लगा रहता। पिता महानारायण यादव उन्हें बार-बार पढ़ाई-लिखाई करने के लिए प्रेरित करते थे। लेकिन उनका आश्रम व महाराज से लगाव था। ऐसे ही वह सामाजिक कार्यों के साथ-साथ महाराज के सेवा में लगे रहते।
28 साल की उम्र में नवंबर की रात घर-परिवार छोड़ लिया वैराग्य
28 साल की उम्र में चन्द्र प्रकाश (डब्ल्यू महाराज) जी ने नवंबर 2009 की रात घर-परिवार व गांव का आश्रम छोड़ वैराग्य ले लिया। सुबह जब गांव वालों को पता चला कि डब्ल्यू महाराज अपने गुरु स्वामी परमहंस महाराज का आशीर्वाद प्राप्त कर गांव के गोकुला कुटी आश्रम छोड़ वैराग्य ले लिया। तो गांव परिवार में हड़कंप सा मच गया। कुछ दिनों बाद पता चला कि डब्ल्यू महाराज फतेहपुर जिले के एक गांव के गंगा नदी के किनारे बसे एक आश्रम में शरण लेकर नारायण का भजन करने में लीन हो गए। कई बार परिवार के लोगों की कोशिशों के बावजूद वह घर नहीं लौटे, उनका कहना था कि नारायण ही सबकुछ है।
घर के किसी भी आयोजनों में नहीं आए डब्ल्यू महाराज
इसी बीच घर-परिवार में कभी शादी-विवाह का अवसर पड़ता तो उन्हें सूचना देकर कई बार बुलाने की कोशिश की जाती रही। लेकिन वह परिवार के मोह में नहीं पड़े और न कभी लौटे। कभी-कभार वह अपने जन्मस्थली गांव दुमदुमा के गंगा नदी किनारे गोकुला कुटी आश्रम पर आते और वहीं से महाराज का आशीर्वाद लेकर चले जाते। फतेहपुर गंगा किनारे ही कई सालों से अपना ठिकाना बना लिया है।
चन्द्र प्रकाश (डब्ल्यू महाराज) से बने स्वामी विरक्तानंद जी महाराज
उनके गुरु ने उनका नाम चन्द्र प्रकाश (डब्ल्यू महाराज) से उनका नाम स्वामी विरक्तानंद जी महाराज रख दिया। स्वामी विरक्तानंद जी महाराज वहीं गंगा किनारे भक्ति में लीन रहकर जीवन यापन करने लगे। उस क्षेत्र के बड़े-बड़े धार्मिक आयोजनों में शामिल होते और लोगों को भगवान की भक्ति, नारायण की सेवा का पाठ पढ़ाने लगे।
20 माह में हरिद्वार से गंगासागर तक गंगा के दोनों छोर की पैदल परिक्रमा की
स्वामी विरक्तानंद जी महाराज ने इसी बीच चार वर्ष पहले हरिद्वार से गंगासागर तक गंगा के दोनों छोर की पैदल परिक्रमा की। गंगा के दोनों किनारे-किनारे पैदल चले। उन्होंने बताया कि इस गंगा पदयात्रा में करीब 20 महीने का समय लगा। इसके बाद वह नर्मदा नदी की परिक्रमा के लिए निकल गए थे।
महाकुंभ 2025 में एक माह के लिए प्रयागराज संगम में रहे
महाकुंभ के दौरान वह एक महीने तक प्रयागराज संगम में रहकर पूरे माघ मेले में मां गंगा में आस्था की डुबकी लगाई। यहां उनके भक्तों व परिवार के लोगों का भी आना-जाना लगा रहा। सभी उनके आशीर्वाद के लिए उनके पास गए। महाकुंभ की समाप्ति के बाद वह पुनः फतेहपुर गंगा किनारे स्थित अपने आश्रम पहुंच गए।
पिताजी के निधन की सूचना पर पहुंचे गोकुला कुटी आश्रम
गांव में 11 अक्टूबर 2025 को उनके पिताजी महानारायण यादव का निधन हो गया। महाराज जी को सूचना दी गई। तेरहवीं के दिन 23 अक्टूबर को वह फतेहपुर आश्रम से अपने जन्मस्थली गांव के गोकुला कुटी आश्रम पहुंचे और पारिवारिक मोह माया से हटकर शोक संवेदना प्रकट किया। इसी दौरान परिवार के सभी लोग कई सालों बाद महाराज के दर्शन व मिलने के लिए गांव के आश्रम पर पहुंचे। सभी ने उनका आशीर्वाद लिया। उसके बाद उन्होंने फिर फतेहपुर के लिए निकल गए।

