प्रयागराज (राजेश सिंह)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का आदेश देने का अधिकार बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) को नहीं है। उसे केवल बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के किसी भी उल्लंघन के संबंध में किशोर न्याय बोर्ड या संबंधित पुलिस को रिपोर्ट भेजने का अधिकार है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का आदेश देने का अधिकार बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) को नहीं है। उसे केवल बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के किसी भी उल्लंघन के संबंध में किशोर न्याय बोर्ड या संबंधित पुलिस को रिपोर्ट भेजने का अधिकार है। यह टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने सीडब्ल्यूसी के एफआईआर दर्ज करने के आदेश को रद्द कर दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति चवन प्रकाश की एकलपीठ ने बदायूं निवासी याची की आपराधिक पुनरीक्षण अर्जी पर दिया है।
बदायूं निवासी याची ने थाना दातागंज में मुकदमा दर्ज कराया था। आरोप लगाया कि वह छह अप्रैल 2021 को अपनी बेटी को घर पर अकेला छोड़कर खेत गया था। इस दौरान टिंकू, सोनू, संजू और सुग्रीव ने मिलीभगत कर उसकी बेटी को नकदी, गहनों के साथ बहला-फुसला भगा ले गए। बाद में उसकी बेटी सुग्रीव के घर में बेहोशी की हालत में मिली। पुलिस ने इस मामले में आरोपियों के खिलाफ दुष्कर्म, अपहरण और पॉक्सो एक्ट में मुकदमा दर्ज किया है।
जांच के दौरान विवेचना अधिकारी ने स्कूल प्रमाण पत्र के आधार पर पाया कि पीड़िता नाबालिग है। इस पर पीड़िता को बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश किया। समिति ने मेडिकल जांच रिपोर्ट देखने के बाद पाया कि पीड़िता ने याची नंबर दो से शादी कर ली है और वह गर्भ से है। समिति ने 30 नवंबर 2021 को इसे बाल विवाह निषेध अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन माना और पुलिस को नाबालिग की शादी कराने के जिम्मेदारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने का आदेश दिया। इस फैसले को पीड़िता के पिता व पति ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।
याची अधिवक्ता ने दलील दी कि याची पिता ने अपनी बेटी की जब याची नंबर दो के साथ शादी की तब बेटी की उम्र 18 साल से अधिक थी। यह भी दलील दी कि बाल कल्याण समिति के पास पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है। इसलिए विवादित आदेश रद्द किया जाना चाहिए। वहीं, अपर शासकीय अधिवक्ता ने याची अधिवक्ता के दलीलों को विरोध किया। कोर्ट ने पक्षों को सुनने और नियमों का अवलोकन करने के बाद पाया कि सीडब्ल्यूसी की ओर से मुकदमा दर्ज करने का आदेश देना उसकी शक्तियों के बाहर है। कोर्ट ने विवादित आदेश को रद्द कर दिया।
