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बाल अपचारी की दोषसिद्धि सरकारी नौकरी में बाधक नहींः हाईकोर्ट

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प्रयागराज (राजेश सिंह)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि बाल अपचारी की दोषसिद्धि सरकारी नौकरी में बाधक नहीं हो सकती। नौकरी पाने के बाद दाखिल हलफनामे में बाल अपराध की सच्चाई छिपाने के आधार पर उसे सेवा से बर्खास्त नहीं किया जा सकता।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि बाल अपचारी की दोषसिद्धि सरकारी नौकरी में बाधक नहीं हो सकती। नौकरी पाने के बाद दाखिल हलफनामे में बाल अपराध की सच्चाई छिपाने के आधार पर उसे सेवा से बर्खास्त नहीं किया जा सकता। क्योंकि, बाल अपराध का खुलासा करने का दबाव बनाना उसकी गोपनीयता और प्रतिष्ठा के खिलाफ है। इस टिप्पणी संग मुख्य न्यायधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति शैलेन्द्र क्षितिज की खंडपीठ ने केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) इलाहाबाद के आदेश को निरस्त कर दिया। साथ ही याची शिक्षक को समस्त लाभों सहित सेवा में बहाल करने का आदेश दिया है। 2019 में पीजीटी परीक्षा में चयनित याची की नियुक्ति अमेठी के गौरीगंज स्थित जवाहर नवोदय विद्यालय में शिक्षक के पद पर हुई थी।

नियुक्ति के दो माह बाद उसके खिलाफ अपराधिक इतिहास छिपाने का आरोप लगाते हुए शिकायत की गई। इस पर हुई विभागीय जांच के बाद उसे सेवा से हटा दिया गया। सेवा समाप्ति के खिलाफ याची ने कैट का दरवाजा खटखटाया। जहां उसकी अर्जी सुप्रीम कोर्ट की ओर से अवतार सिंह के मामले ने निर्धारित विधि व्यवस्था के आलोक में स्वीकार कर ली गई। साथ ही विभाग को नए सिरे से जांच का आदेश दिया गया।कैट के इस फैसले के खिलाफ याची और विभाग दोनों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।द बाल अपराधी को सरकारी सेवा से वंचित नहीं किया जा सकता।

याची शिक्षक ने दलील दी कि अपराध के वक्त वह नाबालिग था। किशोर न्याय अधिनियम के तहत बाल अपराध सरकारी सेवा में बाधक नहीं हो सकता। वहीं, विभाग ने कैट के आदेश को इस आधार पर चुनौती दी कि याची ने हलफनामे में अपने अपराधिक इतिहास को छिपाया है। लिहाजा, याची नियुक्ति पाने का हकदार नहीं है। क्योंकि, किशोर न्याय अधिनियम 2015 के प्रावधान 16 वर्ष की आयु के बच्चों पर लागू होगा। कोर्ट ने याची शिक्षक की याचिका स्वीकार कर ली। कहा कि अपराध वर्ष 2011 में हुआ था, जब किशोर न्याय अधिनियम, 2000 लागू था। लिहाजा, 2015 अधिनियम की धारा 24(1) का वह प्रावधान, जो 16 वर्ष से ऊपर बच्चों को अपवाद बनाता है, इस पर लागू नहीं होगा।

कोर्ट की टिप्पणी

किशोर न्याय अधिनियम, 2000 की धारा 19(1) के मुताबिक स्पष्ट रूप से कहती है कि किसी अन्य कानून की परवाह किए बिना यदि कोई अपराधी किशोर था और अधिनियम के प्रावधानों के तहत उसके मामले को निपटाया गया है तो उसको मिली सजा भविष्य में बाधक नहीं होगी।

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