राहुल गांधी ने यह भी धमकी दी है कि चुनाव आयोग में ऊपर से नीचे तक जो भी इस काम में शामिल है, वह उन्हें नहीं बख्शेंगे। उनके अनुसार, चुनाव आयोग देशद्रोह कर रहा है। इसमें कहा गया है कि उन्होंने सार्वजनिक रूप से धमकी दी है कि अगर मुख्य चुनाव आयुक्त/चुनाव आयुक्त रिटायर हुए, तो वह उन्हें परेशान करेंगे...
खिसयानी बिल्ली खंभा नौचे। बिहार चुनाव में भीषण पराजय के बाद कांग्रेस की यही हालत हो गई है। चुनावी जीत के लिए भ्रष्टाचार और जंगलराज से समझौता करने वाली कांग्रेस हार की खीझ चुनाव आयोग पर निकाल रही है। यह पहला मौका नहीं है कि जब कांग्रेस ने अपनी गिरेंबां में झांकने के बजाए चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं पर अपनी हार का ठीकरा फोड़ने का प्रयास किया है। संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने की कांग्रेस की इस हरकत के लिए देश के प्रबुद्ध जनों ने फटकारा है। देश के 272 प्रतिष्ठित नागरिकों ने एक पत्र लिखकर राहुल गांधी की आलोचना की है। यह पत्र लिखने वालों में 16 जज, 123 रिटायर नौकरशाह (जिनमें 14 राजदूत शामिल हैं) और 133 रिटायर सशस्त्र बल अधिकारी शामिल हैं। सभी ने एक खुला पत्र लिखकर विपक्ष के नेता और कांग्रेस पार्टी द्वारा भारत के चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं को बदनाम करने के प्रयासों की निंदा की है।
इस पत्र में लिखा है कि हम, नागरिक समाज के वरिष्ठ नागरिक इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त करते हैं कि भारत के लोकतंत्र पर बल प्रयोग से नहीं, बल्कि इसकी आधारभूत संस्थाओं के विरुद्ध जहरीली बयानबाजी की बढ़ती लहर से हमला हो रहा है। कुछ राजनीतिक नेता, वास्तविक नीतिगत विकल्प प्रस्तुत करने के बजाय, अपनी नाटकीय राजनीतिक रणनीति के तहत भड़काऊ लेकिन निराधार आरोपों का सहारा ले रहे हैं। पत्र में आगे कहा गया है कि लोकसभा में विपक्ष के नेता ने बार-बार चुनाव आयोग पर हमला करते हुए कहा है कि उनके पास इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि चुनाव आयोग वोट चोरी में शामिल है और उन्होंने दावा किया कि उनके पास 100 प्रतिशत सबूत हैं। अविश्वसनीय रूप से असभ्य बयानबाजी करते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें जो मिला है वह एक परमाणु बम है और जब यह फटेगा, तो चुनाव आयोग के पास छिपने की कोई जगह नहीं होगी।
राहुल गांधी ने यह भी धमकी दी है कि चुनाव आयोग में ऊपर से नीचे तक जो भी इस काम में शामिल है, वह उन्हें नहीं बख्शेंगे। उनके अनुसार, चुनाव आयोग देशद्रोह कर रहा है। इसमें कहा गया है कि उन्होंने (राहुल गांधी) सार्वजनिक रूप से धमकी दी है कि अगर मुख्य चुनाव आयुक्त/चुनाव आयुक्त रिटायर हुए, तो वह उन्हें परेशान करेंगे। फिर भी, इतने तीखे आरोपों के बावजूद उन्होंने निराधार आरोप लगाने और लोक सेवकों को उनके कर्तव्य पालन के दौरान धमकाने की अपनी जवाबदेही से बचने के लिए निर्धारित शपथ पत्र के साथ कोई औपचारिक शिकायत दर्ज नहीं की है। कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों के कई वरिष्ठ नेता और वामपंथी एसआईआर के खिलाफ इसी तरह की तीखी बयानबाजी में शामिल हो गए हैं, यहां तक कि यह भी घोषित कर दिया है कि आयोग श्भाजपा की बी-टीमश् की तरह काम करके पूरी तरह से बेशर्मी पर उतर आया है।
गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने विभिन्न राजनीतिक दलों को आमंत्रित करके उनके साथ बैठक करने की कई बार कवायद की है ताकि उनकी समस्याओं और संदेहों का निदान कर सके। आयोग ने कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को भी आमंत्रित किया लेकिन वे आयोग के दफ्तर नहीं गए। चुनाव आयोग ने जनता दल (सेक्युलर) के प्रतिनिधियों से मिलकर उनकी बातें सुनीं और सुझाव लिए। आयोग ने अब तक पांच राष्ट्रीय पार्टियों और 16 राज्य पार्टियों के साथ बैठकें की हैं। कांग्रेस एक मात्र राष्ट्रीय पार्टी है जिसने अभी तक चुनाव आयोग के साथ बैठक नहीं की है। राहुल गांधी ने पहले कर्नाटक में वोटरों के पंजीकरण में बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया था और बिहार में श्वोट चोरीश् का दावा करते हुए श्वोटर अधिकार यात्राश् निकाली। आयोग ने पारदर्शिता बढ़ाने के लिए कई सुधार किए हैं, जैसे ईवीएम माइक्रो-कंट्रोलर की जांच और डब्ल्यूपीएटी पर्ची की गिनती अनिवार्य करना। आयोग ने 334 निष्क्रिय पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को हटा दिया है और 476 अन्य के खिलाफ कार्रवाई शुरू की।
आयोग ने टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए 3 लाख डुप्लिकेट वोटर कार्ड नंबर भी रद्द किए हैं। आयोग ने अब तक पांच राष्ट्रीय पार्टियों और 16 राज्य पार्टियों के साथ मीटिंग की है। इन मीटिंग में आयोग सबसे सुझाव लेता है कि चुनाव को और कैसे अच्छा बनाया जा सकता है। लेकिन कांग्रेस पार्टी ने अभी तक आयोग के साथ कोई मीटिंग नहीं की है। चुनाव आयोग ने कांग्रेस को 15 मई को मीटिंग के लिए बुलाया था, लेकिन कांग्रेस ने उस दिन मीटिंग करने से मना कर दिया। कांग्रेस ने अभी तक आयोग को कोई नई तारीख नहीं बताई है कि वे कब मीटिंग कर सकते हैं। राहुल गांधी ने एक अखबार में लिख गए लेख में कहा था कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में वोटर लिस्ट में गलत नाम जोड़े गए और सवाल उठाया था कि शाम 5 बजे के बाद वोटिंग अचानक बढ़ गई। इसके बाद चुनाव आयोग ने 12 जून को राहुल गांधी को चिट्ठी लिखकर कहा कि वे आएं और अपनी चिंताओं के बारे में सीधे बात करें। लेकिन राहुल गांधी ने आयोग की चिट्ठी का कोई जवाब नहीं दिया।
मतदाता सूची के पुनर्निरीक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। विपक्षी दलों के नेताओं और कुछ गैर सरकारी संगठनों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कुछ निर्देशों के साथ इस पर रोक लगाने से साफ इंकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग (ईसीआई) से आग्रह किया कि वह आगामी विधानसभा चुनावों से पहले बिहार में किए जा रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) में मतदाताओं की पहचान साबित करने के लिए आधार, राशन कार्ड और मतदाता फोटो पहचान पत्र (ईपीआईसी कार्ड) को स्वीकार्य दस्तावेजों के रूप में अनुमति देने पर विचार करे। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने एसआईआर प्रक्रिया पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।
पीठ ने एसआईआर प्रक्रिया पर रोक लगाने संबंधी कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया, लेकिन चुनाव आयोग से कहा कि यदि वह मतदाताओं द्वारा अपनी पहचान साबित करने के लिए दिए जाने वाले दस्तावेजों की सूची में आधार, राशन कार्ड और ईपीआईसी को शामिल नहीं करने का निर्णय लेता है, तो वह इस पर स्पष्टीकरण दे। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, ष्दस्तावेजों का अध्ययन करने के बाद, चुनाव आयोग ने बताया है कि मतदाताओं के सत्यापन के लिए दस्तावेजों की सूची में 11 दस्तावेज शामिल हैं और यह संपूर्ण नहीं है। इसलिए, हमारी राय में, यह न्याय के हित में होगा यदि आधार कार्ड, ईपीआईसी कार्ड और राशन कार्ड को भी इसमें शामिल किया जाए। यह चुनाव आयोग पर निर्भर है कि वह दस्तावेज लेना चाहता है या नहीं। यदि वह दस्तावेज नहीं लेता है, तो उसे इसके लिए कारण बताना होगा और इससे याचिकाकर्ताओं को संतुष्ट होना होगा।
विपक्षी दलों का सबसे बड़ा आरोप यह है कि एसआईआर को जानबूझकर टारगेट वर्गों (मुस्लिम, दलित, आदिवासी) के नाम मतदाता सूची से हटाने के लिए एक “साजिश” के रूप में डिज़ाइन किया गया है। विपक्ष इसे “वोट चोरी” बता रहा है। एसआईआर के विरोध की असली वजह बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमान हैं। ये कांग्रेस और विपक्षी दलों के वोट बैंक हैं, हालांकि बिहार में मुस्लिम मतदाताओं ने कांग्रेस के बजाए असुदृदीन औवसी की पार्टी पर ज्यादा भरोसा किया। कांग्रेस और विपक्षी दलों को न चुनाव आयोग पर भरोसा है और न ही सुप्रीम कोर्ट पर, यदि ऐसा होता तो आयोग की कार्रवाई में हिस्सा लेने से पीछे नहीं हटते। यह निश्चित है कि हार का दोष चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाओं पर मढ़ने से कांग्रेस भ्रष्टाचार, राजनीति का अपराधीकरण, जातिवाद और मुस्लिम तुष्टिकरण जैसे चुनावी हार के कारणों से मुंह नहीं मोड़ सकती। कांग्रेस के लिए अब देश के मतदाताओं को इन मुदृदों पर बरगलाना आसान नहीं है। कांग्रेस के लिए बेहतर है कि पुरानी गलतियों से सबक सीखे और दलगत राजनीति से उूपर उठकर सोचे, तभी कांग्रेस मतदाताओं में खोया हुआ विश्ववास फिर से हासिल कर पाएगी।