नई दिल्ली। भारत के प्रभाव से निकल गया है। ये तो जाहिर सी बात है कि हमने अपने देश के बाहर कहीं बना रखा होगा तो उस देश के साथ में हमारी जो अंडरस्टैंडिंग रही होगी उस वजह से वह बना होगा। अब शायद अंडरस्टैंडिंग बिगड़ी होगी। इसीलिए अब वह हमारे देश से निकल गया है या कोई और प्रभाव रहा होगा।
दुनिया में जब किसी देश की शक्ति की बात की जाती है तो कहा जाता है कि उसके पास सेना कितनी है और उसकी सेना कितनी स्ट्रेटेजिकल जगहों पर खड़ी है। क्योंकि जब कभी युद्ध होगा तो सेना को उस देश से वहां पहुंचाने में जिससे लड़ना है वहां तक पहुंचाने में समय लग सकता है। इसीलिए पहले ही युद्ध की तैयारी में रहो। सेना कितनी तैयार है यह उसकी लोकेशन से पता चलती है। जब बात अमेरिका की हो तो अमेरिका में अमेरिकी सैनिक हैं। यह सब जानते हैं। लेकिन 80 देशों में 750 जगहों पर अमेरिकी सैनिक हैं। यह अपने आप में एक बड़ी बात है। बात चीन की करें तो चाइनीज 29 मिलिट्री बेस बनाकर बैठे हुए हैं तीन देशों में और 27 आइलैंड पर। अगर हम बात रूस की करें तो रूस ने भी 52 मिलिट्री बेससेस अपनी दुनिया भर के अंदर बनाए हुए हैं जो कि लगभग 12 देशों में स्थित हैं। जब दुनिया के शक्तिशाली देशों की बात होती है तो यह डिपेंड करता है कि कोई देश दूसरे देश को अपने यहां जगह क्यों देगा? किस तरह से दोनों के बीच स्ट्रेटेजिकल एग्रीमेंट्स हैं? क्या दोनों के बीच की अंडरस्टैंडिंग है कि वो उसे वहां पर रुकने का मौका देता है? बिल्कुल कुछ इसी तर्ज पर बात भारत की करते हैं। भारत भी दुनिया में बहुत से देशों में अपने एयर बेससेस रखता है। लेकिन खबर यह है कि भारत का एक एयरबेस या कहिए सैन्य अड्डा उसके हाथ से निकल गया है। यानी कि भारत के प्रभाव से निकल गया है। ये तो जाहिर सी बात है कि हमने अपने देश के बाहर कहीं बना रखा होगा तो उस देश के साथ में हमारी जो अंडरस्टैंडिंग रही होगी उस वजह से वह बना होगा। अब शायद अंडरस्टैंडिंग बिगड़ी होगी। इसीलिए अब वह हमारे देश से निकल गया है या कोई और प्रभाव रहा होगा।
आईनी एयरबेस ताजाकिस्तान में स्थित है। ताजाकिस्तान सेंट्रल एशिया में स्थित है। वहां पर हमारा एक एयरबेस था नाम जिसका आईनी एयरबेस था। भारत से वह निकल गया है। यानी कि अब हमारी सेना वहां पर नहीं है। जब यह बात मिनिस्टर ऑफ एक्सटर्नल अफेयर से पूछी गई तो उन्होंने अपना जवाब बिल्कुल वही ऑफिशियल तरीके से दिया और कहा कि हां देखिए दो देशों के बीच में अपनी वार्ता होती है। अब वो नहीं है। दरअसल, ताजाकिस्तान ने आईएनी एयरवेज के लिए भारत के साथ अपना कॉन्ट्रैक्ट बढ़ाने से इंकार कर दिया। जिसके बाद अब भारत को यह एयरबेस खाली करना होगा। अब यह भारत के लिए किसी झटके से कम नहीं है क्योंकि विदेश में भारत का इकलौता एयरबेस जहां से अफगानिस्तान और पाकिस्तान पर सीधी नजर रखी जा सकती है वो एयरबेस अब भारत को खाली करना होगा। यहां पर भारत की मौजूदगी पाकिस्तान और खासकर चीन की आंखों में कांटा बनकर चुभ रही थी।
रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत ने इस एयरबेस के डेवलपमेंट पर करीब 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर यानी कि लगभग 830 करोड़ खर्च किए। वहीं कई मौकों पर भारत ने यहां एसयू 30 एमकेएफ फाइटर जेट्स और हेलीकॉप्टरों की तैनाती भी की है। वहीं अगर देखें कि भारत की सुरक्षा नीति के लिए एयरबेस कितना अहम था तो अफगानिस्तान के वखान कॉरिडोर से महज यह 20 कि.मी. दूर है जो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर यानी पीओके के करीब पड़ता है। वहीं इसकी मदद से भारत पेशावर जैसे शहरों तक निगरानी रख सकता था जिससे पाकिस्तान पर दबाव बढ़ता।
रूस हमेशा सेंट्रल एशिया में अपनी पकड़ को मजबूत बनाना चाहता है। लेकिन 90 के दशक के यूएसआर के विघटन के बाद से तो चीन ने यहां पर अपने इन्वेस्टमेंट कर पैसे के दम पर कई आधारों पर अपनी पकड़ को काफी मजबूत बनाया है। जिसको लेकर रूस कहीं ना कहीं अपने आप को थोड़ा सा असहज महसूस करता है। रूस खुद चाहता है कि सेंट्रल एशियन कंट्रीज में भारत की एक्टिविटीज़ बढ़े जिससे चीन बैलेंस हो और चाइना को भारत के द्वारा एक बैलेंस किया जाए या उसको ये कहीं ना कहीं मैनेज किया जाए। रूस चाहता है कि भारत का एक्सपेंशन वहां पर हो। चाहे वो इकोनमिकली एक्सपेंशन की बात हो, मिलिट्रीली एक्सपेंशन की बात हो।
चीन फैक्टर को नजरअंदाज नहीं कर सकते
चीन ने जरूर दबाव डाला होगा। तजाकिस्तान में यह कहा जा सकता है क्योंकि कहीं ना कहीं तजाकिस्तान से पाकिस्तान पर दबाव पड़ता है और जब पाकिस्तान दबाव पड़ता है तो कहीं ना कहीं सीपक जो है क्योंकि जो सीपैक भी जा रहा है वो तजाकिस्तान से ज्यादा दूर नहीं है। तो चीन की भूमिका बढ़ी है ना कि रशिया की। आईनी एयरबेस को किसान सैन्य हवाई अड्डे के नाम से भी जाना जाता है।
