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जीत ने मजूमदार के पर लगाया मरहम, विश्व कप जीतने वाले बने भारत के तीसरे कोच

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नवी मुंबई। अमोल मजूमदार ने अपने करियर में क्या होता अगर..जैसे सवाल का बोझ वर्षों तक ढोया, लेकिन अब वह अध्याय आखिरकार बंद हो गया है।

1990 के दशक के घरेलू क्रिकेट के दिग्गजों में शुमार मजूमदार उन कुछ मुंबई खिलाड़‍ियों में रहे जिन्हें राहुल द्रविड़, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण की मौजूदगी के कारण कभी टेस्ट क्रिकेट में जगह नहीं मिल सकी।

एक समय स्कूल क्रिकेट में भी वे पैड बांधकर बैठे रह गए थे, जब सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली ने शारदाश्रम विद्यालय के लिए 664 रन की ऐतिहासिक साझेदारी की थी। लेकिन अब हरमनप्रीत कौर द्वारा नादिन डी क्लार्क का कैच पकड़ते ही जैसे उनके दिल के पुराने जख्मों पर मरहम लग गया।

यकीन नहीं हुआ

भारतीय महिला टीम के कोच मजूमदार ने कहा, उस पल के बाद मुझे समझ नहीं आया कि क्या हुआ। अगले पांच मिनट धुंधले से थे। मैं बस ऊपर देख रहा था, शायद यकीन नहीं हो रहा था। अभी तक यह अहसास पूरी तरह से बैठा नहीं है। शायद आने वाले दिनों में होगा। लेकिन यह वाकई अविश्वसनीय अनुभव है।

मजूमदार भले ही खिलाड़ी के रूप में भारत का प्रतिनिधित्व न कर पाए हों, लेकिन अब वे विश्व कप जीतने वाले गैरी क‌र्स्टन और राहुल द्रविड़ मुख्य कोचों की विशेष सूची में शामिल हो गए हैं। टीम की सफलता के पीछे खिलाड़‍ियों की एकजुटता को मजूमदार ने सबसे बड़ा कारण बताया।

इस टीम के साथ काम करना गर्व की बात

उन्होंने कहा, पिछले दो साल इस टीम के साथ शानदार रहे। सभी खिलाड़ी एक-दूसरे का साथ देते हैं, कोई पीछे नहीं छोड़ता। ऐसे प्रतिभाशाली समूह के साथ काम करना गर्व की बात है।

पुराने खडूस मुंबईकर अंदाज वाले मजूमदार ने माना कि टीम में उनका अनुशासन और मानसिक दृढ़ता झलकती है। मैं अपने अनुभव को साझा करने में कभी पीछे नहीं हटता। शायद वही मेरा असर कहलाता हो।

उन्होंने बताया कि तीन लगातार हार के बावजूद उन्होंने टीम से कहा था कि हम हारे नहीं हैं, बस फिनिशिंग लाइन पार नहीं कर पाए। उसके बाद खिलाड़‍ियों ने जो जज्‍बा दिखाया, वह अविश्वसनीय था।

एक नया सवेरा

सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया और फाइनल में दक्षिण अफ्रीका को हराकर मिली यह जीत मजूमदार के मुताबिक भारतीय महिला क्रिकेट के लिए एक नया सवेरा है।

उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, यह सिर्फ महिला क्रिकेट नहीं, बल्कि भारतीय क्रिकेट का ऐतिहासिक मोड़ है। स्टेडियम खचाखच भरा था, करोड़ों लोग टीवी पर देख रहे थे। जैसे 1983 की जीत ने एक पीढ़ी को प्रेरित किया था, वैसे ही यह जीत नई पीढ़ी के सपनों को पंख देगी।

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