जन चौपाल की जगह जन पंचायत लागू करने की उठी मांग
मेजा,प्रयागराज।(हरिश्चंद्र त्रिपाठी)
जागरूकता विषयक कार्यक्रम में उपस्थित ग्रामीणों द्वारा शासन की संचालित योजनाओं का मूल्यांकन किया गया। जिसमें गरीबों तक राशन वितरण, प्रधानमंत्री आवास, शौचालय की उपलब्धता,गैरसंचारीरोगनियंत्रण की उपलब्धता, कुपोषण से बचाव, मच्छर अवरोधी दवा का छिड़काव,स्वच्छ पेयजल की सुगमता, प्राथमिक विद्यालय तक वंचित परिवारों के नौनिहालों की उपस्थिति, जैविक खेती में किसानों की रुचि, तालाबों में पानी की सुलभता, नशामुक्त समाज,योग की उपयोगिता, पर्यावरण संरक्षण सहित विभिन्न विकास मापी विषयों पर खुलकर चर्चा हुई , एवं समस्त विषयों पर बनाई गई दो सौ विन्दुओं की विकास मापी सूचकांक की प्रश्नावली को ग्रामीणों की दस प्रमुख जनसमस्याओं सहित लिखते हुए प्रशासन तक प्रेषित करने की बात कही गयी।
संवाद के दौरान शासन द्वारा जारी आदेश जिसमें ग्रामीणों की समस्या निवारण हेतु ग्राम चौपाल लगाने की बात कही गई है,पर भी विस्तार से चर्चा हुई उपस्थित ग्रामीणों में प्रभुनाथ, भीमसेन, हरिशंकर, विवेक सिंह ,दया शंकर, दिनेश कुमार का कहना है कि वैसे तो जनहित में शासन द्वारा तहसील दिवस, मुख्यमंत्री शिकायत प्रकोष्ठ आदि क ई प्लेटफार्म बनाये गये हैं किन्तु प्रशासनिक अधिकारियों की उदासीनता के कारण शिकायतें मनगढ़ंत रिपोर्ट में ही निस्तारित की जाती हैं, जबकि सच्चाई यह है कि शिकायत कर्ता बार-बार कार्यालयों का चक्कर काटता रहता है।
जबकि रत्यौरा-करपिया के कलवन्तीदेवी,शिवराजी, बिनीता,केवली, सविता,सरोज, ममता,बिटोला, अनीता, फूलचंद, अशोक, प्रभुलाल, रामविलास,प्रेमबहादुर, हीरालाल, आदि ग्रामीणों ने बताया कि जनसुनवाई2016 अभियान के तहत जनपंचायत में उपस्थित समस्त ग्रामीण , ग्राम प्रधान,सप्लाई इन्स्पेक्टर, ग्रामपंचायत अधिकारी, सहित संबंधित विभागीय अधिकारियों की मौजूदगी में त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित किये जाने का ही परिणाम है कि जिन वंचित ग्रामीणों को सरकारी सस्ता राशन बार-बार प्रयास करने के बाद भी नहीं मिलता था एक दिन की जनपंचायत में समस्या का निराकरण हो गया साथ ही अपात्र होने के बावजूद राशन प्राप्त करने वाले लोगों को चिन्हित कर सूची से हटाने की कार्यवाही सुनिश्चित की गई, यदि इस तरह की जनसुनवाई अभियान की जनपंचायत अनवरत चलती रहे तो ग्रामीणों को भी सहूलियत हो सकेगी।
जनसुनवाई अभियान के प्रदेश प्रभारी अधिवक्ता कमलेश मिश्र ने बताया कि फाउंडेशन के जनपंचायत कार्यक्रम को जिला प्रशासन ने वर्ष 2016 में जिला स्तर पर लागू किया था। एडीएम वित्त और आपूर्ति को इसका जिला नोडल अधिकारी नियुक्त किया गया और सभी एसडीएम तहसील के नोडल अधिकारी बनाए गए। निर्धारित गांवों में संस्था और प्रशासन के संयुक्त मंच पर जनपंचायत आयोजित की जाती रहीं। संबंधित सभी विभागों के स्थानीय शासकीय कर्मचारियों की उपस्थिति इनमें अनिवार्य कर दी गई। संस्था द्वारा प्रयास होता कि उक्त ग्राम पंचायत के अधिकाधिक निवासियों की उपस्थिति सुनिश्चित की जाए। तब प्रधान और वार्ड सदस्यों की मौजूदगी में जनता से पूछकर 175 बिंदुओं वाले विकासमापी सर्वेक्षण को पूरा करते हुए जनशिकायतों और विकास में बाधक खामियों का दस्तावेजीकरण किया जाता। इस दस्तावेज पर उपस्थित ग्रामीणों का नाम, आधार क्रमांक, मोबाइल नंबर और हस्ताक्षर लिए जाते, साथ ही ग्राम सचिवालय की मोहर, विभागीय अधिकारियों और प्रधान के हस्ताक्षर लेकर दस्तावेज की एक-एक कापी एसडीएम और एडीएम को सौंपी जाती। जहां से इसे त्वरित कार्रवाई हेतु संबंधित विभागों को आदेशित किया जाता। समय पर निराकरण न होने पर संस्था द्वारा रिमाइंडर दिया जाता। इस प्रकार 2016 से 2019 तक सैकड़ों गांवों में जनपंचायत कार्यक्रम आयोजित हुआ और सुशासन गांव-गुरबे के गरीब के द्वार तक पहुंचते दिखा। जमीनी स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार को इस अभियान ने सीधी चुनौती दी। स्थानीय छुटभैयों की राजनीति और दलाली की दुकानों पर ताला लगता देख एक पूरा भ्रष्ट तंत्र इस जनकल्याणकारी अभियान की राह में रोड़े अटकाने में जुट गया। अंततः जनशिकायतों पर लीपापोती शुरू कर दी गई। मजबूरन दौ सौ गांवों में जनता को ग्राम सत्याग्रह पर उतरना पड़ा। कोरोनाकाल में राशन की भरपूर आपूर्ति तो हुई, लेकिन आपूर्ति प्रणाली में व्याप्त विसंगतियां अब भी बरकरार हैं। यही हाल अन्य योजनाओं में है। पात्र परिवारों को दलालों से मुक्ति नहीं मिली है। अधिसंख्य वंचित वर्ग अजागरूकता और अशिक्षा के कारण अपने हक के लिए दलालों पर निर्भर है। जनसुनवाई फाउंडेशन का यह अभियान इसी खामी को दूर करने का सबसे कारगर उपाय साबित हुआ है। प्रदेश प्रभारी कमलेश मिश्र ने उप्र शासन से मांग की है कि शासन का जन चौपाल कार्यक्रम तब तक निरर्थक और कागजी ही बना रहेगा जब तक कि इसे जनपंचायत कार्यक्रम के माडल की तरह लागू नहीं कर दिया जाता। संस्था इसमें पूरा सहयोग करने को कटिबद्ध है। 2019 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इस हेतु प्रतिवेदन सौंपा भी गया था।