प्रयागराज (राजेश सिंह). प्रतापगढ़ में एसडीएम लालगंज समेत अन्य कर्मचारियों की पिटाई से नायब नाजिर की माैत का मामला प्रदेश भर में सुर्खियों में है। संवेदना का ज्वार भी है और गम-गुस्से का गुबार भी। आंदोलन भी शुरू हो गया है। सुनील का परिवार बेसहारा हो गया है, लेकिन ऐसा क्या हो गया था कि एसडीएम ने उनको पीट दिया था, वह भी इस कदर बेरहमी से पीटा गया, यह एक बड़ा सवाल पुलिस के सामने है। इस घटना को लेकर जितने मुंह, उतनी बातें हैं। दो-चार पर यकीन करें तो पता चलता है कि तहसील कर्मी को अचानक नहीं पीट दिया गया। छह हजार ईंट नहीं देने की नाराजगी तो थी ही, लेकिन कारण और भी थे। महीनों की दोस्ती व हमदर्दी की कहानी है, जो बाद में ट्विस्ट होकर हत्या में बदल गई। सनसनीखेज घटना की रिपोर्ट दर्ज हो गई है, दागी दामन वाले एसडीएम को शासन ने सस्पेंड भी कर दिया तो इस कांड से जुड़ी बातें तैरने लगी हैं। कर्मचारी भी अपनों के बारे में बताने लगे हैं, भले ही दबी जुबान। इस कांड में हमप्याला व हम निवाला वाला याराना भी सुनने को मिल रहा है। पिटाई के शिकार हुए नायब और तहसील के कुछ चर्चित कर्मी साहब की किचन कैबिनेट के सदस्य के रूप में रहे। शाम को यह लोग अक्सर मिलते भी थे। जब मिलते तो वह शाम यादगार हो जाती थी। खान-पान व हास-परिहास से थकान और गम छू मंतर हो जाती थी। घटना के दिन भी कुछ ऐसा ही होना बताया जा रहा है। साहब, नायब नाजिर और साहब की जी-हुजूरी में शामिल रहने वाले तहसील के कुछ कर्मचारी भी साथ थे। इसी बीच मुंहलगा होने से नायब से कोई गुस्ताखी हो गई। यह बात उस दिन साहब को बर्दाश्त नहीं हुई। उन्होंने उसे सबक सिखाना शुरू किया ही था कि उनके चहेते कर्मियों ने भी कमान संभाल ली। इसके बाद नायब सुनील के साथ क्या हुआ यह उनकी पीठ के निशान बताने लगे। चोट देख एडीएम को भी मेडिकल कराने का आदेश देना पड़ा। अगर केवल साहब ही सबक सिखाते तो शायद यह पूरा प्रकरण इतना भयावह न होता, लेकिन साहब को खुश करने को जब चापलूस कर्मचारियों ने भी जब डंडे चलाए तो सुनील की सांसें उनके जख्मी शरीर का अधिक साथ नहीं दे सकीं। यही वजह है कि उनके बेटे सुधीर की तहरीर में वही तीन लोग मुकदमे में अज्ञात के रूप में हैं, जो इसे पूरे फिल्म में साइड विलेन की भूमिका में थे। जांच में उनका नाम प्रकाश में आ सकता है, इसको लेकर उनकी धड़कन बढ़ी है। वह बचाव का जतन कर रहे हैं।