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देवशयनी एकादशी व्रत: जानें मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

 

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suraj varta.in
आस्था धर्म डेस्क

आज शनिवार 09 जुलाई 2022 है। आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी 10 जुलाई, रविवार को है ऐसे में आज हम आपको इस लेख में आषाढ़ महीने में पड़ने वाली देवशयनी एकादशी की तिथि, महत्व और पूजा विधि बताने वाले हैं. देवशयनी एकादशी रविवार को मनाया जाएगा, इसके शुभ मुहूर्त की शुरूआत कल से होगी.

सनातन धर्म में एकादशी के व्रत का बड़ा महत्व है. यह दिन विशेष रूप से भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित होता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक महीने दो एकादशी की तिथि आती है. इसमें से एक शुक्ल पक्ष में पड़ती है जबकि एक कृष्ण पक्ष में. अब चूंकि हिन्दू नववर्ष का नया महीना आषाढ़ शुरू हो चुका है. आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी 10 जुलाई, रविवार को है ऐसे में आज हम आपको इस लेख में आषाढ़ महीने में पड़ने वाली देवशयनी एकादशी की तिथि, महत्व और पूजा विधि बताने वाले हैं.

*देवशयनी एकादशी मुहूर्त 2022*
देवशयनी एकादशी तिथि का प्रारंभ: 09 जुलाई, दिन: शनिवार, शाम 04:39 बजे से
देवशयनी एकादशी तिथि का समापन: 10 जुलाई, दिन: रविवार, दोपहर 02:13 बजे तक
व्रत रखने का दिन: 10 जुलाई, रविवार
शुभ योग: प्रात:काल से देर रात 12:45 बजे तक
रवि योग: प्रात: 05:31 बजे से 11 जुलाई को सुबह 09:55 बजे तक
देवशयनी एकादशी व्रत का पारण समय: 11 जुलाई, दिन: सोमवार, प्रात: 05:31 बजे से प्रात: 08:17 बजे के मध्य तक

*देवशयनी एकादशी का महत्व*
सनातन धर्म में देवशयनी एकादशी को आषाढ़ी एकादशी भी कहा जाता है. इसके अलावा इस एकादशी को हरिशयनी और पद्मनाभा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इस एकादशी का नाम दो शब्दों से मिलकर बना है, ‘देव’ और ‘शयन’. यहाँ देव शब्द का भगवान विष्णु के लिए उपयोग किया गया है और शयन शब्द का अर्थ है सोना. मान्यताओं के अनुसार इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने के लिए क्षीरसागर में शयन के लिए चले जाते हैं. कहा जाता है कि जो जातक देवशयनी एकादशी का व्रत करते हैं उनके सारे दुख, दर्द दूर हो जाते हैं और उनकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं.

*देवशयनी एकादशी की पूजा विधि*
देवशयनी एकादशी का व्रत रखने वाले जातकों को इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर साफ वस्त्र धारण कर लेना चाहिए.
इसके बाद पूजा स्थल की साफ-सफाई कर के भगवान विष्णु की प्रतिमा को पीले रंग के आसन पर विराजमान कर के उनकी षोडशोपचार से पूजा करें.
इसके बाद भगवान विष्णु को पीले रंग के वस्त्र , पीले फूल और पीला चन्दन अर्पित करें.
भगवान विष्णु के हाथ में शंख, चक्र, गदा और पद्म सुशोभित करें.
भगवान विष्णु को पान और सुपारी अर्पित करें. इसके बाद उन्हें धूप और दीप दिखाकर पुष्प अर्पित करें और उनकी आरती करें.

नीचे बताए गए मंत्र का जाप करते हुए भगवान विष्णु का ध्यान करें.
‘सुप्ते त्वयि जगन्नाथ जमत्सुप्तं भवेदिदम्.

विबुद्धे त्वयि बुद्धं च जगत्सर्व चराचरम्..

इस मंत्र का अर्थ है
हे जगन्नाथ जी! आपके निद्रित हो जाने पर संपूर्ण विश्व निद्रित हो जाता है और आपके जाग जाने पर संपूर्ण विश्व तथा चराचर भी जाग्रत हो जाते हैं.

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