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सावन पूर्णिमा के दिन किया जाता है श्रावणी उपाकर्म, जानें इसका महत्व, विधि

 

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surajvarta.in
आस्था धर्म डेस्क
आज 11 अगस्त 2022 दिन गुरुवार है। ब्राह्मण श्रावणी उपाकर्म का इंतजार उत्साह के साथ करते हैं. ब्राह्मणों के लिए यह पर्व विशेष होता है क्योंकि पूरे एक साल के बाद वे पूरे विधि-विधान के साथ ये अपना जनेऊ बदलते हैं. जानें इसका महत्व.

सावन पूर्णिमा का महत्व रक्षा बंधन के त्योहार को लेकर तो है ही साथ ही इस दिन का महत्व जनेऊ पहनने वाले ब्राह्मणों के लिए भी है. जिस तरह भाई-बहन रक्षा बंधन के इस त्योहार का इंतजार पूरे साल करते हैं और वैसे ही कुछ ब्राह्मण श्रावणी उपाकर्म का इंतजार उत्साह के साथ करते हैं. ब्राह्मणों के लिए यह पर्व विशेष होता है क्योंकि पूरे एक साल के बाद वे पूरे विधि-विधान के साथ ये अपना जनेऊ बदलते हैं. जनेऊ बदलने के लिए श्रावण पूर्णिमा का दिन अत्यंत ही शुभ और पावन माना जाता है. श्रावणी उपाकर्म आत्मशुद्धि का पर्व माना गया है. जानें श्रावण मास की पूर्णिमा पर पड़ने वाले इस पावन पर्व और पवित्र धागों से बने जनेऊ का धार्मिक महत्व क्या है.

*11और 12 अगस्त दोनों ही दिन शुभ मुहूर्त में बदलेंगे अपना जनेऊ*
श्रावण पूर्णिमा के पावन दिन जनेऊ बदलने और हाथ में रक्षासूत्र बांधने के साथ साथ किस पवित्र नदी में स्नान करने और दान, जप, तप समेत पूजा का विशेष महत्व है.इस साल श्रावण पूर्णिमा तिथि दो दिन पड़ रही है, जिसमें भद्रा का साया भी है. शुभ मुहूर्त के सीमित होने के कारण कुछ लोग श्रावणी उपाकर्म 11 अगस्त को तो कुछ लोग यह शुभ कार्य 12 अगस्त 2022 को सुबह के मुहूर्त में संपन्न करेंगे.

*श्रावणी उपाकर्म का है विशेष धार्मिक महत्व*
वैसे लोग जिनका यज्ञोपवीत संस्कार या जनेऊ संस्कार हो चुका होता है, वे अपना पुराना यज्ञोपवीत या जनेऊ बदलते हैं. इसके लिए सावन महीने की पूर्णिमा के दिन को विशेष शुभ माना जाता है. इस दिन पुराना जनेऊ उतारकर नया धारण किया जाता है. पुराने यज्ञोपवीत को बदलने की यह प्रक्रिया एक शुभ मुहूर्त पर पूरे विधि विधान के साथ संपन्न की जाती है. उत्तर भारत में इसे श्रावणी उपाकर्म जबकि दक्षिण भारत में इसे अबित्तम के नाम से जाना जाता है.

*गुरु के सान्निध्य में संपन्न किये जाते हैं श्रावणी उपाकर्म*
श्रावणी उपाकर्म किसी योग्य गुरु के सान्निध्य में संपन्न किये जाते हैं. जनेऊ बदलने की विधि में व्यक्ति गोमाता के दूध, उससे बनी दही, घी, गोबर, गोमूत्र और पवित्र कुशा से स्नान करते हैं. उसके बाद पूरे साल भर में किए गए ज्ञात-अज्ञात पापकर्मों का प्रायश्चित करते हैं. फिर ऋषिपूजन, सूर्योपस्थान एवं जनेऊ पूजन के बाद मंत्रोच्चारण के साथ उसे धारण करते हैं. जिनका यज्ञोपवीत संस्कार हो चुका होता है वहीं ये कार्य करते हैं. अंत में विधि-विधान से यज्ञ संपन्न किया जाता है.

*जनेऊ पहनने का मंत्र*
ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं, प्रजापतेयर्त्सहजं पुरस्तात्। आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं, यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।

*जनेऊ उतारने का मंत्र*
एतावद्दिन पर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया। जीर्णत्वात्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथा सुखम्।।

*क्या होता है जनेऊ*
सनातन धर्म में ‘जनेऊ’ को एक महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है, जिसे धारण करने वाले व्यक्ति को इससे जुड़े नियमों का पालन करना आवश्यक होता है. सूत से बने जनेऊ में पवित्र तीन धागे ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं. इसे सत्व, रज और तम के साथ तीन आश्रमों का भी प्रतीक माना जाता है. हिंदू धर्म इसके बगैर विवाह संस्कार संपन्न नहीं होते हैं.

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