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59 साल के मुख्तार अंसारी पर दर्ज हैं 59 मुकदमे, दहशत में कटती है मुख्तार अंसारी की एक-एक रात

SV News

लखनऊ (राजेश सिंह)। एक ऐसा नाम जिसे सुन के बड़े-बड़े सूरमाओं की भी घिघ्घी बन जाती थी। लोग उसे डान के नाम से जानते थे। अपने समय में वह जरायम की दुनिया का अकेला डॉन था। वही डॉन अब सलाखों के पीछे दहशत भरी जिंदगी गुजार रहा है। मौत के डर से चार साल तक पंजाब में पनाह लेने के बाद जब से वह यूपी लौटा है, उसकी हर एक रात दहशत में कटती है। नाम है मुख्तार अंसारी। मुख्तार को हाल ही में किसी भी मामले में पहली सजा हुई है। सजा भी सात साल की। 59 साल के मुख्तार पर कुल 46 मुकदमे दर्ज हैं। इसमें आधे मुकदमे (23) गाजीपुर जिले में दर्ज हैं। 9 मुकदमे मऊ और 9 मुकदमे वाराणसी में दर्ज है। राजधानी लखनऊ में भी 7 मामले दर्ज हैं। आलम बाग में दर्ज मामले में ही उसे 7 साल की सजा हुई है। मुख्तार अंसारी के नाम की दहशत कभी सिर्फ पूर्वांचल में ही नहीं बल्कि पूरे प्रदेश में रहती थी। हर सनसनीखेज वारदात के बाद उसी के नाम की चर्चा होती थी। पूर्वांचल के ठेके पट्टों में उसका साम्राज्य था। जिस क्षेत्र में वह या उसके लोग काम करते थे, वहां किसी और गिरोह के जाने की हिम्मत नहीं होती थी। क्या अधिकारी, क्या नेता सब उसके नाम से डरते थे। नाम ज्यादा हुआ तो वह राजनीति में आ गया। 1996 में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत गया। 2017 तक लगातार पांच बार विधायक रहा। 2022 में वह खुद राजनीति से दूर हो गया और अपनी जगह बेटे के सुपुर्द कर दी। मुख्तार का अपराध की दुनिया में पहली बार 1988 में मंडी परिषद की ठेकेदारी को लेकर स्थानीय ठेकेदार सच्चिदानंद राय की हत्या के मामले में नाम आया। फिर त्रिभुवन सिंह के भाई कांस्टेबल राजेंद्र सिंह की हत्या का आरोप भी उन पर लगा। पहली बार मुख्तार 1991 में पुलिस की गिरफ्त में आया। पुलिस जब उसे लेकर जा रही थी तब वह फरार हो गया। इस दौरान दो पुलिस कर्मी मारे गए। इनकी हत्या का आरोप भी मुख्तार पर लगा। इसके बाद मुख्तार का नाम सरकारी ठेकों, शराब के ठेकों, कोयला के काले कारोबार में आने लगा। उस पर 1996 में एएसपी उदय शंकर पर जानलेवा हमले का भी आरोप लगा। मुख्तार पर मकोका (महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट) और गैंगस्टर एक्ट के तहत भी मुकदमे दर्ज हुए। मुख्तार पर 1997 में पूर्वांचल के बड़े कोयला व्यवसायी रुंगटा के अपहरण का आरोप लगा। इसी बीच भाजपा नेता कृष्णानंद राय राजनीतिक शख्सियत बनकर उभरने लगे। भाजपा ने उन्हें 2002 में गाजीपुर की मोहम्मदाबाद सीट से चुनाव लड़ाया। वह जीत गए। उन्होंने 1985 से अंसारी परिवार के पास रही गाजीपुर की मोहम्मदाबाद विधानसभा सीट को 17 साल बाद उनके परिवार से छीन लिया। मुख्तार के बड़े भाई अफजाल चुनाव हार गए। पर कृष्णानंद राय विधायक के तौर पर अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। तीन साल बाद उनकी हत्या कर दी गई। क्रिकेट मैच का उद्घाटन करके वापस लौट रहे कृष्णानंद राय की गाड़ी को घेरकर अंधाधुंध फायरिंग की गई। राय के साथ गाड़ी में मौजूद सभी लोग मारे गए। 

1996 में काले कारनामों को ढकने के लिए बन गया सफेदपोश

मुख्तार अंसारी वर्ष 1996 में बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर जीतकर पहली बार विधानसभा पहुंचा। मुख्तार ने 2002 व 2007 में निर्दल प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीता। 2012 में कौमी एकता दल बनाया और उसके टिकट पर चुनाव लड़ा और दो सीट हासिल की। 2017 में मुख्तार अपने सहयोगियों के साथ सपा की चौखट तक आए लेकिन अखिलेश यादव के विरोध के चलते वह पार्टी में शामिल नहीं हो सके। 2017 में वापस अपने दल कौमी एकता दल से चुनाव लड़ कर जीत हासिल की। 2022 के चुनाव में मुख्तार ने खुद को राजनीति से दूर कर लिया और अपने बेटे अब्बास अंसारी को सुभासपा के टिकट पर चुनाव लड़ाया, जहां उसे जीत हासिल हुई। मुख्तार से पहले उसके परिवार में आपराधिक पृष्ठभूमि का कोई नहीं था। उसके परिवार की गिनती बड़े राजनैतिक घराने के रूप में होती थी। अतीत के पन्नों पर नजर डालें तो ताज्जुब होता है कि इतने बड़े परिवार के सदस्य की इतनी कुख्यात छवि। मुख्तार के दादा डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। वह गांधी जी के साथ हमेशा खड़े रहे और 1926-27 में कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। मुख्तार अंसारी के नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को 1947-48 की लड़ाई में मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। गाजीपुर में साफ. सुथरी छवि रखने वाले और कम्युनिस्ट बैकग्राउंड से आने वाले मुख्तार के पिता सुब्हानउल्ला अंसारी स्थनीय राजनीति में प्रभावी और प्रतिष्ठित नाम थे। 

पांच साल में सरकार ने कमर तोड़ी

मुख्तार अंसारी के दुर्दिन की शुरुआत 2017 में हुई जब प्रदेश में भाजपा सत्ता में आई और योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। उसके बाद से मुख्तार की मुश्किलें बढ़ती चली गईं। मुख्तार पर सख्तियां बढ़ीं तो उसने यूपी छोड़कर पंजाब के जेल में शरण लेली। न्यायालय के आदेश के बाद पंजाब सरकार को मुख्तार को यूपी को सौंपना पड़ा। पिछले साल उसे वापस यूपी लाया गया, तब से वह बांदा जेल में बंद है। मुख्तार की मऊ, गाजीपुर और लखनऊ में लगभग पौने चार सौ करोड़ रुपये की संपत्ति या तो जब्त की जा चुकी है या ध्वस्त की जा चुकी है।

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