श्रीकृष्ण - रुक्मिणी विवाह प्रसंग में श्रोताओं ने बरसाया फूल
निबैया में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिन नीलम करवरिया ने महारास,श्रीकृष्ण -रुक्मिणी विवाह की कथा में बनी श्रोता
मेजा,प्रयागराज।(हरिश्चंद्र त्रिपाठी)
मेजा के निबैया गांव में चल रही श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिन शुक्रवार को श्रीकृष्ण - रुक्मणी विवाह का आयोजन हुआ। श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिन कथा व्यास शंभु शरण जी महाराज ने रास पंच अध्याय का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि महारास में पांच अध्याय हैं। उनमें गाए जाने वाले पंच गीत भागवत के पंच प्राण हैं। जो भी ठाकुरजी के इन पांच गीतों को भाव से गाता है, वह भव पार हो जाता है। उन्हें वृंदावन की भक्ति सहज प्राप्त हो जाती है।
कथा में भगवान का मथुरा प्रस्थान, कंस का वध, महर्षि संदीपनी के आश्रम में विद्या ग्रहण करना, कल्यवान का वध, उद्धव गोपी संवाद, ऊद्धव द्वारा गोपियों को अपना गुरु बनाना, द्वारका की स्थापना एवं रुक्मणी - विवाह के प्रसंग का संगीतमय कथा का श्रवण कराया गया।कथा व्यास ने कहा कि महारास में भगवान श्रीकृष्ण ने बांसुरी बजाकर गोपियों का आह्वान किया और महारास लीला द्वारा ही जीवात्मा का परमात्मा से मिलन हुआ। गोपियों को दिए गए वचन को पूरा करते हुए श्री कृष्ण ने महारास रचाते हुए जितनी गोपियां उतने ही कृष्ण का साक्षात दर्शन हुआ।इस तरह सभी गोपियों की मनोकामना को लीला बिहारी ने पूरा किया। भगवान श्रीकृष्ण - रुक्मणी के विवाह की झांकी ने सभी को खूब आनंदित किया। रुक्मणी विवाह के मौके पर पूर्व विधायिका नीलम करवरिया ने महिलाओं के साथ नृत्य कर दर्शकों का मन मोह लिया। इस दौरान कथा मंडप में विवाह का प्रसंग आते ही चारों तरफ से श्रीकृष्ण-रुक्मणी पर जमकर फूलों की बरसात हुई।
कथा व्यास ने भागवत कथा के महत्व को बताते हुए कहा कि जो भक्त प्रेमी कृष्ण-रुक्मणी के विवाह उत्सव में शामिल होते हैं उनकी वैवाहिक समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है।उन्होंने कहा कि जीव परमात्मा का अंश है। इसलिए जीव के अंदर अपार शक्ति रहती है। यदि कोई कमी रहती है, तो वह मात्र संकल्प की होती है। संकल्प एवं कपट रहित होने से प्रभु उसे निश्चित रूप से पूरा करेंगे। कार्यक्रम में एक ओर जहां मथुरा वृदावन से आए रासबिहारी सुमित अग्निहोत्री,बाबू शर्मा ने दर्शकों का मन मोहा,वहीं कृष्ण के रूप में खुशी शुक्ला और रुक्मिणी के रूप में तृप्ति पांडेय ने अभिनय कर श्रोताओं को अनादित किया।कथा के अंत में मुख्य यजमान लालजी शुक्ल व श्यामजी शुक्ल सपत्नीक ने आरती किया तत्पश्चात प्रसाद वितरण किया गया।कथा का आयोजन ओ पी शुक्ला व विकास शुक्ला द्वारा किया जा रहा है।
इस मौके प्रमुख रूप से संपादक राजेश शुक्ल,राजेश गौड़,दीपक शुक्ला,योगेश गुप्ता, बंटी सिंह,अनूप चंद्र मिश्र, रइस चंद्र शुक्ल,मुकेश मिश्र,गौरव करवरिया,रामबाबू मिश्र,दिनकर मिश्र,अनूप पांडेय,पवन मिश्र,बाबा ओझा,मनीष तिवारी,नितेश तिवारी,आशीष शुक्ल,राजकुमार शुक्ल, श्याम कुमार शुक्ल,अशोक शुक्ला,विष्णुकांत शुक्ल,विश्वास शुक्ला आदि भारी संख्या में श्रोतागण कथा का रसपान किया।