नैनी, प्रयागराज (के एन उर्फ घंटी शुक्ला)। शुआट्स विश्वविद्यालय में 69 पदों पर अवैध तरीके से नियुक्ति का मामला सामने आने के बाद रोजाना नए-नए खुलासे हो रहे हैं। यह बात भी सामने आई है कि अनियमितता का खेल वर्षों से चल रहा था।
शुआट्स विश्वविद्यालय में 69 पदों पर अवैध तरीके से नियुक्ति का मामला सामने आने के बाद रोजाना नए-नए खुलासे हो रहे हैं। यह बात भी सामने आई है कि अनियमितता का खेल वर्षों से चल रहा था। पूर्व में शिकायतों पर गठित प्रशासनिक कमेटी ने भी जांच के दौरान संस्थान में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियां पाई थीं। कमेटी की रिपोर्ट देखने के बाद ही तत्कालीन कमिश्नर ने शासकीय अनुदान के भुगतान से हाथ खड़े कर दिए थे।
तीन सदस्यीय यह कमेटी तत्कालीन कमिश्नर आशीष कुमार गोयल की ओर से 2017 में गठित की गई थी। कमेटी ने अपनी जांच रिपोर्ट में प्रमुख रूप से बताया था कि 2014 से 2017 तक संस्थान ने वेतन भत्ते के मद में शासन से लगभग 63 करोड़ प्राप्त किए। यह भी बताया कि शुआट्स व एक्सिस बैंक के अधिकारियों ने संस्थान के खातों से 22.29 करोड़ रुपये का गबन किया।
इसमें बैंक के चार व शुआट्स के पांच अफसरों को जेल भेजा गया, जिसमें शुआट्स के वित्त नियंत्रक व रजिस्ट्रार भी शामिल हैं। कमेटी ने रिपोर्ट में बताया था कि इन परिस्थितियों में शासन की ओर से दिए गए अनुदान के दुरुपयोग की प्रबल संभावना है। इसी आधार पर तत्कालीन कमिश्नर ने तब शासकीय अनुदान के भुगतान पर स्वीकृति देने से इन्कार कर दिया था।
निदेशक, स्थानीय लेखा परीक्षा विभाग की जांच में मिले जिन तथ्यों के आधार पर शुआट्स में नियुक्तियों में गड़बड़ियों का मामला सामने आया, वही तथ्य कमोबेश छह साल पूर्व गठित प्रशासनिक कमेटी की जांच में भी सामने आए थे। कमेटी ने बताया था कि निर्धारित भर्ती प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। प्रक्रिया के तहत प्रोफेसर, सहायक प्रोफेसर व एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति के लिए राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र के साथ ही विवि की वेबसाइट पर भी विज्ञापन दिया जाना था।
इसकी अवधि कम से कम 30 दिन होनी चाहिए। जांच में पाया गया कि राष्ट्रीय समाचार पत्र में विज्ञापन दिया ही नहीं गया। गुमनाम तरीके से दिया भी गया तो 10 या 20 दिन के लिए इसे जारी किया गया। नतीजा यह हुआ कि 20 पदों के लिए केवल एक-एक आवेदन आए। शेष 49 पदों के लिए भी बेहद कम आवेदन किए गए। उपरोक्त तथ्यों के आधार पर कमेटी इस निष्कर्ष पर पहुंची थी कि विज्ञापन की जानकारी उन्हीं लोगों को हो पाई, जिन्हें संस्था नियुक्त करना चाहती थी।
जांच रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से इंगित किया गया था कि संस्थान की ओर से जांच प्रक्रिया में सहयोग नहीं किया गया। साथ ही तथ्यों को छिपाने की भी कोशिश की गई। यह भी बताया कि जांच के संबंध में जो भी दस्तावेज प्राप्त हुए, वह तीन महीने तक पत्राचार और कई बार मौखिक रूप से कहने के बाद उपलब्ध कराए गए।
सरकारी अनुदान संबंधी वेतन वाले पदों पर अवैध नियुक्ति मामले में फरार चल रहे शुआट्स के वीसी आरबी लाल समेत नौ आरोपियों का चौथे दिन भी सुराग नहीं मिला। नैनी पुलिस के साथ ही एसटीएफ भी तलाश में लगी हुई है। सभी आरोपियों के मोबाइल नंबर भी बंद हैं और वह अपने घरों पर भी नहीं हैं। जानकारों का कहना है कि गिरफ्तारी न होने पर पुलिस उनके खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी कराने के लिए कोर्ट में अर्जी दे सकती है।