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श्रीराम कथा के चौथे दिन उमड़ा जनसैलाब,भैया जी ने श्रीराम - शबरी मिलन प्रसंग का किया वर्णन

 कथा व्यास ने श्रोताओं को श्रीराम के नवधा भक्ति के बारे में विस्तार से बताया



मेजा,प्रयागराज। (हरिश्चंद्र त्रिपाठी)

एक कुसंग..एक कुनीति ने धर्मात्म दशरथ के परिवार को छिन्न भिन्न कर दिया। लेकिन कुसंगति ने जो चाहा महात्मा भरत ने उसे होने नही दिया। महात्मा भरत ने फिर कभी भी अपनी मां को मां नहीं कहा। विधि का विधान है कि कुसंग का परिणाम बेशक कुछ देर के लिए अच्छे लगे। लेकिन अंजाम बहुत बुरा होता है। कैकयी को शायद इस बात का अहसास नहीं था। भरत ने ऐसी सजा दी..जिसे शायद ही कोई मां सहन कर सके। यह बातें क्षेत्र के जेवनिया (शंभु का पूरा)गांव में दिव्यांगोत्थान श्रीराम सेवा ट्रस्ट प्रयागराज के अध्यक्ष अधिवक्ता अभिषेक तिवारी व पूर्व प्रधान रुचि तिवारी द्वारा आयोजित वंचितों के श्रीरामकथा के चौथे दिन डॉक्टर अशोक हरिवंश भैया जी ने श्रद्धालुओं के जनसैलाब के सामने कही। भैया जी ने इस दौरान भरत कैकेयी संवाद और राम भरत मिलाप को इस तरह से प्रस्तुत किया देखते ही देखते पंडाल में बैठे हजारों हजार श्रद्धालुओं की आंखें सावन भादों हो गयी। इस दौरान भैया जी ने शबरी राम संवाद भी पेश किया। कथा को सुन श्रद्धालु भाव विभोर होकर नाचने लगे। भैया जी ने कहा कि श्रीराम के संपूर्ण वनवास काल में अरण्यकाण्ड का अतिमहत्वपूर्ण स्थान है। कहा कि चित्रकूट से आगे बढ़ते हुए जबराम,लक्ष्मण व सीताजी पंचवटी को अपना नया निवास स्थान बनाते है। इसी सोपान में सीता जी के हरण के कारण श्रीराम का सीता वियोग उनके भक्तों के लिए भी हृदयविदारक है। इसी सोपान में श्रीराम जीवन अरण्य में ज्ञान व भक्ति रस के नये-नये रूप अपने भक्तों को दिखाते हैं और स्वयं भी संतों व ऋषियों के पास पहुंचकर पाप का नाश करने के लिए उनका आशीर्वाद प्राप्त करते है।

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उन्होंने कहा कि श्रीरामचरितमानस के अरण्य सोपान के अंतिम भाग में श्रीराम-शबरी का मिलन होता है। यह भेंट भारतीय संस्कृति व सनातन धर्म में कोई साधारण मिलन नहीं है। एक भक्त का अपने भगवान के प्रति अटूट विश्वास व आस्था का सबसे बड़ा प्रतीक है। यह भक्ति के नौ रसों का घाट है। जिसे स्वयं प्रभु श्रीराम ने अपने श्रीमुख से नवधा भक्ति नाम दिया है।भैया जी के मुख से शबरी और राम संवाद को सुनकर पूरा पंडाल मंत्र मुग्ध हो गया। उन्होने बताया कि राम ने शबरी के जूठे बेर खाकर भक्त और भगवान के बीच प्रेम की पराकाष्ठा को जाहिर किया। ऊंच नीच की भावना को मिटाया। महाराज ने कहा दुर्घटनाओं का कारण खुद इंसान ही होता है। सीता ने मर्यादा तोड़ी. लालच किया, संतो से दूरी बनाया। इसी कारण माया ने उनका अपहरण किया। जबकि शबरी ने मर्यादा का पालन कर संत मिलन का इंतजार किया। और भगवान पर भरोसा रखा। शबरी को राम ने अपने चरणों में स्थान दिया।

कार्यक्रम के समापन पर प्रसाद वितरण हुआ। 

 रामकथा के दौरान पत्रकारों के अलावा क्षेत्र के गणमान्य,बुद्धिजीवी, शिक्षाविद्,राजनीतिज्ञ समेत भारी संख्या में श्रोता मौजूद रहे।

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