प्रयागराज (राजेश सिंह)। अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या में रोजाना चौंकाने वाले खुलासे हो रहे हैं। नया खुलासा यह है कि देश भर में चर्चित इस हत्याकांड को अंजाम देने वाले शूटरों के पास मोबाइल तक नहीं था। पुलिस को उनके पास से कोई मोबाइल नहीं मिला है। सवाल यह है कि आखिर मोबाइल नहीं होने के बावजूद उन्हें माफिया भाइयों की लोकेशन आखिर कैसे मिली। पुलिस ने तीनों शूटरों से जो बरामदगी दिखाई है, उनमें तीन पिस्टल हैं। मोबाइल के संबंध में कोई जिक्र नहीं है। सवाल यह है कि आखिर यह कैसे हो सकता है कि कासगंज, बांदा और हमीरपुर जनपदों के रहने वाले शूटरों के पास मोबाइल न हो। वह बिना मोबाइल के प्रयागराज आए हों, इसकी भी संभावना न के बराबर है। प्रयागराज से उनका कोई कनेक्शन कभी नहीं रहा, यह बात तीनों के घरवाले भी बता चुके हैं। यह भी बताया कि तीनों कभी प्रयागराज नहीं गए। ऐसे में तीनों के यहां बिना मोबाइल के आने की बात गले नहीं उतरती। सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर उनके पास मोबाइल फोन नहीं था, तो उन्हें कैसे पता चला कि अतीक व अशरफ कॉल्विन अस्पताल पहुंचने वाले हैं। जानकारों का कहना है कि इस प्रकरण में सबसे हैरान कर देने वाला रवैया पुलिस के पास है। मौके से पकड़े जाने के बाद शूटरों से मोबाइल नहीं मिला तो आखिर पुलिस ने बरामदगी की कोशिश क्यों नहीं की। छोटे-छोटे मामलों में सबसे पहले आरोपी का मोबाइल कब्जे में लेने वाली पुलिस यहां क्यों ढीली पड़ी रही। जानकारों का कहना है कि मोबाइल बरामद होने पर आरोपियों की लोकेशन व कॉल डिटेल रिपोर्ट से अहम खुलासे हो सकते हैं। पता चल सकता है कि वारदात से पहले उनकी किससे और कितनी देर बात हुई। यह भी जानकारी मिल सकती थी कि हत्या से पहले वह कहां-कहां गए।
एक सवाल यह भी है कि अगर शूटरों के पास मोबाइल फोन नहीं था तो वह फेसबुक, इंस्टाग्राम कैसे चला रहे थे। बता दें कि शूटर लवलेश तिवारी के बारे में पता चला है कि उसने सोशल मीडिया पर प्रोफाइल बना रखी थी। जिसमें अक्सर पोस्ट भी किया करता था। वह ज्यादातर रील बनाकर अपने फेसबुक व इंस्टाग्राम अकाउंट पर पोस्ट करता था।
शूटरों से मोबाइल न बरामद होने को लेकर कई अन्य सवाल भी खड़े हो रहे हैं। एक सवाल यह है कि क्या अतीक-अशरफ की हत्या में तीन से ज्यादा लोग शामिल थे। यह वह लोग थे जो मौके पर शूटरों के साथ मौजूद थे और खुद फोन का इस्तेमाल कर उन्हें अतीक-अशरफ की लोकेशन बता रहे थे। सवाल यह भी है कि पुलिस ने सीसीटीवी कैमरों की फुटेज के जरिए यह पता लगाने की कोशिश क्यों नहीं की। क्यों नहीं पता लगाया कि मौके पर मीडियाकर्मियों के अलावा अन्य कौन-कौन लोग मौजूद थे।
सूत्रों का कहना है कि जिस जगह पर यह वारदात हुई, उसके पास ही सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं। यह कैमरे कॉल्विन अस्पताल परिसर में ही लगे हैं। इसके साथ ही अस्पताल गेट के सामने स्थित दुकानों पर भी सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। इन कैमरों की फुटेज खंगालने से भी शूटरों के बारे में अहम सुराग मिल सकते हैं। पता चल सकता है कि वह वारदात के कितनी देर पहले और कैसे अस्पताल में पहुंचे। इसके साथ ही यह भी जानकारी मिल सकती है कि उनके साथ अन्य लोग भी तो नहीं थे। हालांकि सूत्रों का कहना कि घटना के बाद न सिर्फ अस्पताल बल्कि दुकानों पर लगे डीवीआर भी पुलिस कब्जे में लेकर उठा ले गई है।
सवाल यह भी है कि आखिर शूटरों के पास कैमरा, माइक आईडी कहां से आई। बता दें कि शूटरों के पास जो माइक आईडी थी, उसमें एनसीआर न्यूज लिखा हुआ था। फिलहाल तीन दिन बाद भी पुलिस की ओर से इस संबंध में कोई बयान नहीं सामने आया है कि उन्होंने यह आईडी कहां से पाई।