श्रीमद भागवत कथा में चौथे दिन बालकृष्ण की जन्म लीला,अजामिल उद्धार और नर्क की संख्या का हुआ वर्णन
मेजा,प्रयागराज।(हरिश्चंद्र त्रिपाठी) क्षेत्र के गुनई गहरपुर गांव में चल रही श्रीमद भागवत कथा के चौथे दिन पहड़ी महादेव के पुजारी बृजबिहारी दास जी महाराज ने कथा का वाचन करतें हुए बताया कि चराचर जगत में कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं है जो माया को पकड़ सके। बल्कि सभी जीवों को माया नें ही जकड़ रखा है। प्रसंग सुनाते हुए बताया कि जब वसुदेव जी भगवान श्री कृष्ण को गोकुल में छोड़ कर वहां से योग माया को लेकर आए तो कंस ने उसे पकड़ कर मारना चाहा परन्तु वह उससे छूट कर आकाश में स्थित हो गई और कंस के काल के जन्म की घोषणा की जिसे सुनकर कंस भयभीत रहने लगा। गोकुल में नन्द बाबा- जयोदा के यहां पुत्र जन्म के समाचार मिलते ही समस्त ब्रज मंडल के हर्ष और आनन्द का माहौल हो गया और नन्द भवन में भगवान का जन्म महोत्सव मनाया गया। कथा के दौरान उन्होंने बडे ही रोचक तरीके से भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन किया। यदुवंशियों के कुल पुरोहित गर्गाचार्य द्वारा भगवान श्रीकृष्ण और बलराम जी के नाम करण, माता जशोदा द्वारा भगवान श्री कृष्ण को रस्सी द्वारा उलूख में बांधने से भगवान का नाम दामोदर पड़ने और उसे उलूख से कुबेर के पुत्र जो नन्द भवन में पेड़ बन कर खड़े हुए थे अपने निज स्वरूप में आने की कथा को विस्तार से सुनाया गया। भगवान श्री कृष्ण की मथुरा लीला के प्रसंग को सुनाते हुए बताया कि भगवान के मथुरा आने पर भगवान द्वारा धोबी के अभिमान को चुर करना तथा दर्जी एवं सुदामा माली से स्वागत प्राप्त कर उन्हें धन्य करना एवं कुब्जा द्वारा चन्दन प्राप्त कर उसे सर्वांग सुन्दरी बनाने के प्रसंग को सुनाते हुए बताया कि भगवान को जो भाव से थोड़ा देता है उसे भगवान संपूर्ण एश्वर्य प्रदान कर देता है। कथा के दौरान कंस द्वारा भगवान श्री कृष्ण एवं बलराम को मारने की योजना को विफल करते हुए भगवान ने कुवलियापीड़ हाथी को खेल ही खेल में मार कर युद्ध भूमि में प्रवेश किया। कंस के सैनिक चाणुर एवं मुष्ठिक को मारकर पापी कंस को उसके किए हुए एक-एक पाप को याद कराकर उसका अन्त किया। उन्होंने बताया कि जब कभी कोई पापी के पाप अत्यधिक बढ जाते है तो भगवान उन्ही पापों को माध्यम बनाकर अपनी लीला से ही उस पाप का अन्त कर देते है। कथा वाचक ने अजामिल उद्धार की कथा को बताते हुए कहा कि श्रीमद भागवत की यह कथा बताती है कि ईश्वर का मार्ग ही मोक्ष का मार्ग है।अंततः ईश्वर के ही पास जाना है। तय करना होगा कि यमदूत हमें रस्सियों में बांधकर घसीटते हुए ले जाएं या सम्मान के साथ प्रभु शरण प्राप्त हो। ईनहाने नरक की संख्या के बारे में विस्तार से बताया।कहा कि जैसा कि हम जानते हैं कि हिंदू समाज कई जातियों और उपजातियों में बंटा हुआ है, उसी तरह हिंदुओं के नरक के भी कई उपविभाजन हैं। हिंदू धर्मग्रंथों में 4, 7, 21 और 28 प्रकार के नरकों का वर्णन है।
मनुष्य द्वारा किए गए पापों की कैटेगरी के हिसाब से नरक मिलता है।उन्होंने बताया कि को मनुष्य एकादशी व्रत को लगातार 10 वर्ष तक पूरा करे उसका अंत एकादशी के दिन ही होता है।कथा का आयोजन स्व.प्रेमसागर और स्व.करुणासागर के श्राद्ध के उपलक्ष्य में किया गया है।कथा के मुख्य यजमान श्रीमती अनार कली पत्नी स्व.प्रेमसागर दुबे, श्रीमती जय देवी पत्नी स्व.करुणासागर दुबे और विद्यासागर दुबे ने सपत्नीक द्वारा आरती की गई।तत्पश्चात प्रसाद वितरण हुआ।कथा के दौरान भजन गायक शिवम तिवारी,तबके पर पवन गर्ग और हर्ष त्रिपाठी ने संगीतमय भजन प्रस्तुत कर कथा को रोचक बना दिया।कथा के आयोजक गणों में अनिल,सुनील,कुलदीप,धीरज,शिवम,उत्सव,सत्यम तिवारी,रमेश चंद्र,शुभम,कमलाकांत और ऋषभ का योगदान सराहनीय रहा।कथा में राजेंद्र प्रसाद तिवारी,मंगला तिवारी, लालबली दुबे,बीरेंद्र यादव,रामजी तिवारी,संजय तिवारी,संजय पाठक सहित भारी संख्या में श्रोता मौजूद रहे।