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कठोर तपस्या के दौरान भगवान शिव ने यूं ली थी माता पार्वती की परीक्षा, जानिए पौराणिक कथा

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पौराणिक कथाओं के अनुसार कई लोगों ने अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए कठोर तपस्या करके भगवान को प्रसन्न किया और उन्हें अपनी कड़ी तपस्या का फल भी प्राप्त हुआ। ऐसा ही एक नाम है माता पार्वती। वह शक्ति का ही रूप हैं। सती का ही दूसरा जन्म माता पार्वती के रूप में हुआ था। आइए जानते हैं कि किस प्रकार भगवान शिव ने उनकी परीक्षा ली--

पर्वतराज हिमालय की पुत्री थीं माता पार्वती

भगवान शिव ने ली थी देवी पार्वती परीक्षा

अपनी कठोर तपस्या से महादेव को किया प्रसन्न

मेजा, प्रयागराज। हिंदू धर्म में भगवान शिव को देवों का देव महादेव कहा गया है। साथ ही उन्हें प्रसन्न करना भी आसान माना जाता है इसलिए उन्हें भोलेनाथ भी कहा जाता है। लेकिन माता सती और बाद में उनके ही दूसरे रूप माता पार्वती ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कड़ी तपस्या की थी। आइए जानते हैं कि कैसे माता पार्वती ने भगवान शिव को कड़ी तपस्या से प्रसन्न किया।

कौन हैं पहली पत्नी

माता सती भगवान शिव की पहली पत्नी हैं। वह प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं। राजा दक्ष ने अपनी तपस्या से देवी भगवती को प्रसन्न किया जिसके बाद माता भगवती ने ही सती के रूप में उनके घर में जन्म लिया। देवी भगवती का रूप होने के कारण सती दक्ष की सभी पुत्रियों में सबसे अलौकिक थीं। वह बचपन से ही भगवान शिव की भक्ति में लीन रहती थीं। सती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए सच्चे मन से उनकी आराधना की थी। उन्हें इसका फल भी प्राप्त हुआ और उन्हें शिव पति के रूप में प्राप्त हुए।

सती ने दी प्राणों की आहुति

लेकिन राजा दक्ष उन्हें अपनी बेटी के लिए एक योग्य वर नहीं मानते थे। पिता दक्ष के विरुद्ध जाकर माता सती ने भगवान शिव से विवाह किया। घृणा के कारण दक्ष ने यज्ञ में भगवान शिव और माता पार्वती को आमंत्रित नहीं किया और साथ ही भगवान शिव का अपमान भी किया जिस कारण माता सती ने यज्ञ स्थल में अपने प्राणों की आहुति दे दी।

कैसे हुआ माता पार्वती का जन्म

माता सती ने अपना शरीर का त्याग करते समय संकल्प किया था कि मैं राजा हिमालय के यहां जन्म लेकर शंकर जी की अर्धांगिनी बनूं। दूसरी ओर माता सती के प्राणों की आहुति देने के बाद भगवान शिव सदैव उन्हें स्मरण करते रहते थे। इसके बाद माता सती पर्वतराज हिमालय की पत्नी मेनका के गर्भ में जन्म लिया। पर्वतराज की पुत्री होने के कारण वे श्पार्वतीश् कहलाईं। पार्वती, भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए वन में तपस्या करने चली गईं। अनेक वर्षों तक कठोर उपवास और घोर तपस्या के बाद भगवान शिव ने उनसे विवाह करना स्वीकार किया।

इस तरह ली मां पार्वती की परीक्षा

तपस्या के दौरान भगवान शंकर ने पार्वती की परीक्षा लेनी चाही। उन्होंने परीक्षा लेने के लिए सप्तऋषियों को पार्वती के पास भेजा। उन्होंने पार्वती के पास जाकर उसे यह समझाने का प्रयास किया कि शिव जी औघड़, अमंगल वेषधारी और जटाधारी हैं और वे तुम्हारे लिए उपयुक्त वर नहीं हैं। उनके साथ विवाह करके तुम कभी सुखी नहीं रह सकती। साथ ही माता पार्वती से ध्यान छोड़ने के लिए कहा। लेकिन पार्वती अपने विचारों पर दृढ़ रहीं। उनकी दृढ़ता को देखकर सप्तऋषि अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्हें सफल मनोरथ होने का आशीर्वाद देकर शिव जी के पास लौट आए। पार्वती के दृढ़ निश्चय के कारण महादेव उन्हें पति के रूप में प्राप्त हुए

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