मेजा,प्रयागराज। (हरिश्चंद्र त्रिपाठी)
परमात्मा ने मति (बुद्धि) सबको दी है। मति सत्संगसे जुड जाय तो वह सुमति बन जाती है, वही मति यदि कुसंग से जुड़ जाय तो वही मति कुमति बन जाती है । सुमति कुमति सबके उर रहही। काशी से पधारे मानस मराल रामसूरत रामायणी ने गुरुवार को मेजारोड के पांती गांव स्थित श्री सिद्ध हनुमान मंदिर में नौ दिवसीय विराट मानस सत्संग के 56 वे समारोह के मौके पर तुलसी कृत रामचरित मानस की चौपाई "जहाँ सुमति तंह सम्पति नाना । जहाँ कुमति तांह विपदि निधाना।" की व्याख्या करते हुए भक्तों को भक्ति में बांधने का प्रयास किया।उन्होंने कहा कि मति जब तक सत्संग से जुड़ी रहेगी, तब तक सुमति बनी रहेगी और यदि यह कुसंग से जुड़ जाएगी तो कुमति बन जाती है। वहीं अगर यह मति निर्मल भक्ति से जुड़ जाय तो यह सदैव निर्मल ही रहेगी। जिसमें राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त महात्मा एवं मूर्धन्य मानस बक्ता अपने मधुर वाणी से भक्तों को श्री राम का रसपान कराएंगे।26 अक्तूबर से 3 नवंबर तक चलने वाले इस कार्यक्रम में जगद्गुरु रामानन्दाचार्य कामगिरि पीठाधीश्वर स्वामी रामस्वरूपाचार्य जी महाराज चित्रकूट धाम,
जगद्गुरु रामानुजाचार्य प्रयाग पीठाधीश्वर स्वामी
श्रीधराचार्य जी महाराज, अलोपी बाग प्रयागराज,
पं. निर्मल कुमार शुक्ल, 'मानस महारथी, महाराष्ट्र, पं० रामगोपाल तिवारी जी 'मानस रत्न', बाँदा,
श्रीमती नीलम शास्त्री जी वाराणसी और डा० रामसूरत रामायणी जी वाराणसी से आगमन हो रहा है।कार्यक्रम के आयोजक श्री हनुमान मानस प्रचार सेवा संस्थान द्वारा संचालित - मानस प्रचारिणी समिति,
श्री सिद्ध हनुमान मानस मन्दिर ने भगवत् प्रेमियों से उक्त अवसर का लाभ उठाते हुए श्रद्धापूर्वक श्रीरामकथामृत का रसास्वादन कर अपने जीवन को कृतार्थ करने की अपील की है।