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धनुष यज्ञ सुनि रघुकुल नाथा। हरसि चले मुनिवर के साथा: पं. निर्मल शुक्ल

 

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मानस सम्मेलन के  पांचवें दिवस धनुष यज्ञ की कथा सुन भाव-विभोर हुए श्रोता

मेजारोड, प्रयागराज (राजेश शुक्ला)। रामायण मात्र त्रेता युग के एक राजकुमार की कथा नहीं है यह हमारे जीवन का शाश्वत सत्य है। अगर यह एक राजकुमार की कथा होती तो अब तक पुरानी पड़ गई होती किंतु यह गाथा गंगा जल जैसी नित्य नवीन रूप में दिखाई पड़ती है। गंगा जी ऐतिहासिक दृष्टि से तो त्रेतायुग में राजा भगीरथ के द्वारा लाई गई दोनों किनारे उतने ही प्राचीन है किन्तु गंगा का जल नित्य नवीन रूप में ही मिलेगा। हम आज जिस जल में स्नान कर रहे हैं कल वह सैकड़ों किलोमीटर दूर चला जाता है और दूसरे दिन नवीन जल हमें सुलभ होता है वैसे ही रामायण की घटनाएं भले ही हजारों साल पुरानी हैं किन्तु ज्यों ज्यों युग बदलता है ए नवीन रूप में समाज का पथ प्रदर्शन करती हैं। उक्त उद्गार मेजारोड मानस सम्मेलन में महाराष्ट्र वाशिम से पधारे हुए सनातन धर्म ग्रंथों के विलक्षण विद्वान मानस महारथी पं निर्मल कुमार शुक्ल ने जन समुदाय को भाव विभोर करते हुए व्यक्त किया।जनक पुर की चर्चा करते हुए आपने कहा कि राजा जनक ने यह प्रतिज्ञा किया था कि जो भगवान शिव का विशाल धनुष तोड़ देगा मैं अपनी त्रिभुवन सुंदरी कन्या सीता का विवाह उससे कर दूंगा। आज के लोग जनक की इस प्रतिज्ञा पर उंगली उठाते हुए कहते हैं बेटी कोई जड़ वस्तु नहीं है जो उसे इस प्रकार दांव पर लगा दिया जाय अगर कोई राक्षस या कुपात्र व्यक्ति धनुष तोड़ देता तो सीता का क्या होता। ऐसा कुतर्क करने वालों ने शास्त्रों का अध्ययन तो किया नहीं है। पुराणों में एक कथा आती है एक बार परम विनोदी नारद जी ने भगवान शिव और विष्णु में भयंकर युद्ध करवा दिया बहुत दिनों तक घनघोर युद्ध हुआ अंततः दोनों देवताओं ने अपने अपने धनुषों पर ब्रह्मास्त्र चढ़ाया सारे संसार में हाहाकार मच गया अंततः ब्रह्मा जी ने दोनों के धनुष जड़ कर दिया।अब इस जड़ धनुष का क्या किया जाय भगवान विष्णु ने अपना धनुष परशुराम जी को दे दिया और बोले जब त्रेता में मेरा अवतार होगा तो यह धनुष चैतन्य हो कर स्वयं मेरे पास आ जाएगा। उधर भगवान शिव ने अपना जड़ धनुष जनक पुरी के राजा देवरात को देकर कहा इस जड़ धनुष की पूजा करो। तुम्हारे वंश में एक दिन आदिशक्ति का जन्म होगा एक दिन खेल खेल में वह इस धनुष को उठा लेंगी तब समझ लेना कि धरती पर ब्रह्म का अवतार हो चुका है। कन्या का स्वयंवर रचा कर धनुष भंग की शर्त रख देना परमात्मा धरती पर जहां कहीं भी होगा अपनी शक्ति को पाने के लिए स्वयं चल कर आ जाएगा। और ऐसा ही हुआ भी राम ने सीता स्वयंवर सुनते ही । धनुष यज्ञ सुनि रघुकुल नाथा।हरसि चले मुनिवर के साथा। स्वयं चलकर धनुष भंग करने आ गये।इस प्रकार यह शंकर जी का धनुष ब्रह्म को पहचानने की कसौटी है जैसे स्वर्ण पहचानने की कसौटी होती है उसी प्रकार यह ब्रह्म को पहचानने का माध्यम है।इस उपाय से जनक ने राम को पहचान कर अपनी भक्ति रूपी सीता समर्पित कर दिया। प्रयाग राज‌‌‌ से पधारे हुए जगद्गुरु श्रीधराचार्य जी ने तथा बांदा के पं राम गोपाल तिवारी व काशी से पधारे हुए पं राम सूरत रामायणी ने मानस के अनेक प्रसंगों पर गंभीर विवेचन करके श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया। आयोजक पं नित्यानंद उपाध्याय व पं विजयानंद उपाध्याय ने क्षेत्रीय धर्म प्रेमी सज्जनों से अधिकाधिक संख्या में कथामृत पान करने का आग्रह किया है।मंच संचालन पं विजयानंद उपाध्याय ने किया। उक्त अवसर पर सिद्धांत तिवारी सहित भारी संख्या में श्रोतागण उपस्थित रहे।

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