सोरांव गांव में प्रथम दिन श्रीराम कथा में गुरू और शिष्य की महिमा सुन भावविभोर हुए श्रोतागण
मेजा, प्रयागराज (राजेश शुक्ला)। महादेव महावीर मंदिर सत्संग समिति द्वारा आयोजित श्रीराम कथा का भव्य शुभारंभ शुक्रवार से हुआ। आयोध्या से पधारे प्रशिद्ध कथा वाचक बालशुक देवकृष्ण शास्त्री ने हनुमान चालीस से शुभारंभ करते हुए श्रीराम नाम का बखान किया। कथा सुनाते हुए कहा कि श्रीराम कथा का श्रवण बड़े भाग्य से होता है। कई जन्मों का पुण्य उदय होता है तभी ऐसा सुअसर प्राप्त है। श्रीराम कथा पावन है यह पुण्य प्रदान करने वाली है। चारों तरफ पाप की बरसात हो रही है ऐसे में उससे बचने के लिए श्रीराम कथा ही हमें बचा सकती है। तुलसी दास ने भी कहा कि कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा। कथा में आगे कहा कि संत कृपा हो जाती है तभी भगवान की कृपा होती है। बाल्मिकी के उपर संत कृपा हुई तभी उस पर भगवान की कृपा हो पाई। बाल्मिकी के उपर सप्तऋषियों की कृपा हुई तो वह मरा-मरा कहते हुए राम-राम कहने लगा और उस पर भगवत कृपा हो गई। बाल्मिकी कथा को विस्तार देते हुए कथा वाचक ने कहा कि बाल्मिकी ही अगले जन्म में तुलसीदास के रूप में उत्पन्न लिए और हनुमानजी के माध्यम से श्रीराम का दर्शन चित्रकूट में किया। उसके पश्चात उन्होंने रामचरित मानस काव्य की रचना की। गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान जी की प्रेरणा से रामचरित मानस की रचना किया। भगवान शिव ने सर्वप्रथम रामचरित मानस की रचना माता पार्वती के भाव से किया था। भगवान शिव गोस्वामी तुलसीदास के गुरू बनकर उनका कल्याण किया। कथा के अगले पड़ाव में कथा व्यास श्री शास्त्री ने कर्ण और परसुराम की कथा को बताते हुए कहा कि कर्ण ने परशुराम की इतनी सेवा करते हुए सारी धनुष विद्याएं हासिल कर लिया। लेकिन उसकी छल से प्राप्त विद्या किसी काम की नहीं रही। गुरू परशुराम ने ही अपने शिष्य को श्राप दे दिया था कि मुझसे छल से प्राप्त की हुई विद्या अंतिम समय में तू भूल जाएगा। महाभारत के युद्ध में कर्ण के साथ यही हुआ और वह मृत्यु को प्राप्त हुआ। कथा का संचालन कथा प्रेमी पंडित विजयानन्द उपाध्याय ने किया।
इससे पहले कथा स्थल पर भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता डाक्टर संगम मिश्र पहुंचे।
श्री मिश्र ने उपस्थित लोगों के समक्ष भगवान शिव से जुड़ी श्रीराम की कथा सुनाई। प्रथम दिन होने के कारण कथा निर्धारित समय से लगभग दो घंटे विलम्ब से शुभारंभ हुआ। उक्त अवसर पर कलट्टर शुक्ल, बालकृष्ण शुक्ला, लक्ष्मी शंकर शुक्ल, पूर्व प्रधान केशव प्रसाद शुक्ल, मीथिलेश शुक्ल, कृष्ण कुमार शुक्ल उर्फ गुरू, द्वारिका प्रसाद शुक्ल, विंध्यवासिनी शुक्ल, श्याम नारायण शुक्ल, कृष्ण कुमार शुक्ल उर्फ नागेश्वर, दिनेश शुक्ल, संतोष शुक्ल, राजू शुक्ल, संजय शुक्ल, विनय शुक्ल, विमल शुक्ल, यतीष शुक्ल, नारायण दत्त शुक्ल, आशीष शुक्ल, अवधेश शुक्ल, मोचन शुक्ल,संदीप शुक्ल, प्रदीप शुक्ल, मुकेश शुक्ल, मनीष शुक्ल, लालबहादुर कुशवाहा, फूल चंद्र कुशवाहा, हजारी लाल, पवन कुशवाहा सहित भारी संख्या में श्रोतागण उपस्थित रहे।