Ads Area

Aaradhya beauty parlour Publish Your Ad Here Shambhavi Mobile

मांगी नाव न केवट आना, कहइ तुम्हार मरमु ..

 

sv news

मेजा, प्रयागराज (विमल पाण्डेय)। श्री सर्वेश्वर नाथ मंदिर रामचंद्र का पूरा में चल रही श्री रामकथा  के सातवें दिन कथा वाचक आचार्य डाक्टर सुनील कुमार शास्त्री ने प्रभु श्रीराम के चित्रकूट निवास एवं दशरथ परमधाम गमन की कथा का विस्तार से वर्णन किया। महाराज ने कहा श्रीराम, मां जानकी, भाई लक्ष्मण के साथ जब वन में पहुंचते हैं तो वहां उनकी मुलाकात निषाद राज से होती है। निषादराज प्रभु से श्रृंगवेरपुर चलने की बात कहते हैं लेकिन प्रभु कहते हैं कि पिता की आज्ञा कुछ और है। इसके बाद प्रभु वहीं जंगल में विश्राम करते हैं और लक्ष्मण प्रभु के सोने के बाद पहरा देने लगते हैं। प्रभु ने सुमंत्र को समझाकर वापस भेज दिया और खुद गंगा के किनारे पहुंचे और केवट से पार जाने के लिए नाव मांगते है, लेकिन केवट नाव लेकर नहीं आता है और कहता है हमें आप का भेद मालूम है। केवट कहता है..

मांगी नाव न केवट आना। कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना।।

चरन कमल रज कहुं सब कहई। मानुष करनि मूर कछु अहई।।

छुअत सिला भइ नारि सुहाई। पाहन तें न काठ कठिनाई।

तरिनिउ मुनि घरिनि होई जाई। बाट परइ मोरि नाव उड़ाई।।

जिसके छूते ही पत्थर की शिला स्त्री बन गई, मेरी नाव तो काठ की है वह भी कहीं स्त्री बन गई, तो फिर मैं तो लुट जाऊंगा, मेरी रोजी रोटी खत्म हो जाएगी।

ए¨ह प्रतिपालउं सबु परिवारू। न¨ह जानउं कछु अउर कबारू।

जौं प्रभु पार अवसि गा चहहू। मोहि पद पदमु पखारन कहहू।।

इसी नाव से मैं अपने परिवार का पालन पोषण करता हूं, दूसरा कोई काम मुझे नहीं आता है। हे प्रभु, यदि पार जाना चाहते हो तो मुझे चरण कमल पखारने को दो।

कथावाचक ने कहा कहा कि आखिर जिस प्रभु का भेद पूरे जगत में किसी को नहीं पता है आखिर इस केवट को प्रभु का भेद कैसे पता चल गया। उन्होंने बताया कि एक बार प्रभु क्षीरसागर में सो रहे थे और एक कछुआ श्रीहरि का पैर छूना चाह रहा था मगर शेषनाग और लक्ष्मीजी ने प्रभु का पैर नहीं छूने दिया और उसे फेंक दिया, जिससे वह कछुआ मर गया और बाद में केवट बना। महाराज ने कहा कि मृत्यु के समय आप जो सोचते हैं अगले जन्म में उसे वह जरूर मिलता है। वही कछुआ केवट बना था और शेषनाग लक्ष्मण, लक्ष्मी जी सीता और विष्णु भगवान ने राम के रूप में अवतार लिया। ऐसे में निषादराज से प्रभु के सो जाने के बाद बताया था कि प्रभु जो शो रहे हैं वह परमब्रह्मा है, जिसे केवट ने सुन लिया था। यही कारण है कि उस दिन उसने गंगा किनारे से राजा से कहकर सभी नाव को हटवा दिया था। गंगा किनारे केवल एक ही नाव केवट की थी। महाराज ने विस्तार पूर्वक बताया कि केवट ने प्रभु के पैर पखारकर न सिर्फ खुद का उद्धार किया बल्कि अपने सभी पुरखों का उद्धार कर दिया।

पद पखारि जलु पान करि आपु सहित परिवार।

पितर पारु करि प्रभुहि पुनि मुदित गयउ लेइ पार।।

इसके बाद गंगा जी पार करने के बाद प्रभु प्रयाग पहुंचे और वहां पर स्नान पूजा करने के बाद भरद्वाज के आश्रम पहुंचे। रात्रि विश्राम करने के बाद वहां से चित्रकूट पहुंचे, जहां पर बाल्मिकी मुनि से मिले। 

कथा आयोजक राघव राम मिश्रा सहयोग करता में कमलेश मिश्रा, राधेश्याम मिश्रा, धीरज शुक्ला, अमित कुमार मिश्रा, जयशंकर शुक्ला, आशू मिश्रा, राज मिश्रा और गांव के सभी गणमान्य भक्तगण उपस्थित रहे।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

Top Post Ad