प्रयागराज (राजेश सिंह)। समाजवाद के पुरोधा कहे जाने वाले डॉ.राम मनोहर लोहिया सोशलिस्ट पार्टी से 1962 के चुनाव में लड़े थे। इसमें उनके सामने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू कांग्रेस से थे। लोहिया की गिनती तब मजबूत विपक्षी नेता के रूप में होती थी, लेकिन पं.नेहरू के मुकाबले उन्हें आधे वोट भी नहीं मिल सके।
प्रयागराज की फूलपुर लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ना कतई आसान नहीं है। इस सीट पर अबतक कई दिग्गज नेताओं को हार का मुंह देखना पड़ा है। इनमें समाजवाद के पुरोधा कहे जाने वाले डॉ.राम मनोहर लोहिया से लेकर बसपा संस्थापक कांशीराम, अपना दल संस्थापक डॉ.सोनेलाल पटेल, पूर्व केंद्रीय मंत्री जनेश्वर मिश्र, अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी मो.कैफ तक के नाम शामिल हैं।
साथ ही चर्चित संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी, डॉ.रीता बहुगुणा जोशी की मां कमला बहुगुणा, पूर्व केंद्रीय मंत्री चंद्रजीत यादव, माफिया डॉन अतीक अहमद, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सलाहकार रहे जेएन मिश्र, बॉलीवुड के फिल्म निर्माता रोमेश शर्मा और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामपूजन पटेल को भी फूलपुर में शिकस्त झेलनी पड़ी।
समाजवाद के पुरोधा कहे जाने वाले डॉ.राम मनोहर लोहिया सोशलिस्ट पार्टी से 1962 के चुनाव में लड़े थे। इसमें उनके सामने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू कांग्रेस से थे। लोहिया की गिनती तब मजबूत विपक्षी नेता के रूप में होती थी, लेकिन पं.नेहरू के मुकाबले उन्हें आधे वोट भी नहीं मिल सके। चुनाव में पं.नेहरू को 1,18,931 और लोहिया को 54,360 वोट मिले थे। लोहिया तकरीबन 65 हजार मतों से चुनाव हारे।
बसपा के संस्थापक कांशीराम 1996 में अपने सियासी चेले जंग बहादुर पटेल के खिलाफ चुनाव लड़े। जंग बहादुर को मुलायम सिंह यादव ने कांशीराम की पार्टी से अपनी पार्टी में ले लिया था। कांशीराम को यह बात चुभ गई और वह चेले को सियासी पटखनी देने की नीयत से यहां से खुद चुनाव लड़ने आए। उन्होंने फूलपुर में जमकर प्रचार किया, लेकिन परिणाम आने पर कांशीराम 16 हजार वोट से हार गए। इसमें जंग बहादुर पटेल को 1,62,844 जबकि कांशीराम को 1,46,823 मत मिले।
जनेश्वर मिश्र
छोटे लोहिया के नाम से मशहूर पूर्व केंद्रीय मंत्री जनेश्वर मिश्र फूलपुर से दो बार चुनाव लड़े और दोनों बार हारे। पहला चुनाव 1967 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की बुआ विजय लक्ष्मी पंडित के खिलाफ सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर लड़े। इसमें विजय लक्ष्मी पंडित को 95,306 और जनेश्वर मिश्र को 59,123 वोट मिले। जनेश्वर 1971 में यहां से दोबारा चुनाव लड़े। इसमें पूर्व प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने करीब 90 हजार वोटों के अंतर से हराया।
डॉ.सोनेलाल पटेल
केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के पिता और अपना दल के संस्थापक डॉ.सोनेलाल पटेल ने फूलपुर में पांच बार चुनाव लड़ा, लेकिन हर बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। सोनेलाल पटेल को 1996 के चुनाव में 2426, 1998 में 42152, 1999 में 1,27,780, 2004 में 80,388 और 2009 में 76,699 वोट हासिल हुए।
संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी
गोरक्षा को लेकर देश भर में आंदोलन चलाने वाले चर्चित संत प्रभुदत्त ब्रह्मचारी ने यहां से 1952 का चुनाव लड़ा। इस चुनाव में पंडित नेहरू ने कांग्रेस के टिकट पर 2,33,571 वोट प्राप्त किए। वहीं, निर्दलीय प्रभुदत्त ब्रह्मचारी को 56,718 वोट ही मिले और वह चौथे स्थान पर रहे।
केंद्रीय मंत्री भी हारे
पूर्व केंद्रीय मंत्री चंद्रजीत यादव 1989 में फूलपुर सीट पर कांग्रेस के टिकट पर 33 हजार वोट के अंतर से हारे। पूर्व केंद्रीय मंत्री राम पूजन पटेल भले ही फूलपुर से तीन बार निर्वाचित हुए हों लेकिन उन्हें भी 1977 के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा।
कमला बहुगुणा
भाजपा सांसद डॉ.रीता बहुगुणा जोशी की मां और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की पत्नी कमला बहुगुणा को भी फूलपुर से हार का सामना करना पड़ा। कमला बहुगुणा 1977 में सांसद चुनी गईं, लेकिन 1980 में ही वह चुनाव हार गईं।
अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहिम के करीबी के तौर पर चर्चित बॉलीवुड के फिल्म निर्माता तथा लेखक रोमेश शर्मा ने 1996 में चुनाव लड़ा। प्रचार में खूब पैसा बहाने के बावजूद उन्हें एक फीसदी वोट भी नहीं मिला। उन्हें महज 3623 वोट ही मिले।
जेएन मिश्र
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सलाहकार रहे पूर्व नौकरशाह जेएन मिश्र ने 1998 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और 19,382 वोट पाकर पांचवें स्थान पर रहे। वह अपनी जमानत तक नहीं बचा सके।
मोहम्मद कैफ
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी रहे मो.कैफ ने भी फूलपुर सीट पर हाथ आजमाया। वर्ष 2014 के चुनाव में उन्हें भाजपा के केशव प्रसाद मौर्य ने हराया। कैफ की जमानत तक जब्त हो गई। केशव प्रसाद मौर्य को पांच लाख से अधिक वोट मिले, जबकि कैफ 60 हजार वोट भी नहीं बटोर सके।
अतीक अहमद
माफिया डॉन के तौर पर बदनाम पांच बार के विधायक और पूर्व सांसद अतीक अहमद को भी फूलपुर में हार का मुंह देखना पड़ा। 2018 के उपचुनाव में अतीक अहमद बतौर निर्दलीय चुनाव लड़े और उनकी जमानत तक जब्त हो गई। अतीक को पचास हजार वोट भी नहीं मिले।