जन्मदिन पर हो गई थी भावुक, आज पूरा क्षेत्र है भावुक
मेजा, प्रयागराज (विमल पाण्डेय)। मेजा ही नहीं बल्कि प्रयागराज की लोकप्रिय भाजपा नेता व पूर्व विधायक नीलम करवरिया का पिछला जन्मदिन उनके कार्यकर्ताओं द्वारा बड़े ही धूमधाम से मनाया गया था। कार्यक्रम का आयोजन मेजा विधानसभा के लखनपुर गांव में स्थित नीलम करवरिया के आवास पर ही आयोजित हुआ था। जिसमें मेजा, कोरांव, करछना और बारा समेत जिले के कई विधानसभाओं से हजारों की संख्या में लोग वहां पहुंचे थे। सभी लोगों ने फूल माला और उपहार देकर उन्हें बधाई दिया था। वहीं नीलम अपने प्रति लोगों का स्नेह देख कर नीलम करवरिया काफी भावुक हो गईं, और उनकी आंखें भी नम रहीं। इस दौरान नीलम करवरिया ने कहा कि लोगों का यह प्यार राजनिति के कारण नहीं है, बल्कि प्रयागराज की जनता से मेरा पारिवारिक नाता है। उनके ये शब्द आज उनके न रहने पर लोगों को बरबस याद दिला रहा है।
कहा गया है कि कभी कभी समय भी कड़े इंतहान लेता है। ऐसा ही कुछ नीलम करवरिया के साथ हुआ। परिस्थितियों ने ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा किया कि उन्हें भी राजनिति में उतरना पड़ा, और वर्ष २०१७ में भाजपा ने प्रयागराज की मेजा विधानसभा से नीलम उदयभान करवरिया को प्रत्याशी बनाया। चुनाव में नीलम करवरिया ने जीत दर्ज की, और पहली बार विधायक बनीं। जबकि एक समय ऐसा था कि कभी करवरिया बंधु के नाम से विख्यात कपिलमुनि करवरिया, उदयभान करवरिया और सूरजभान करवरिया एक साथ सांसद, विधायक और एमएलसी हुआ करते थे, और एक समय ऐसा आया कि अपनी राजनितिक विरासत को संभालने के लिए उदयभान करवरिया की पत्नी नीलम करवरिया को चुनावी मैदान में उतरना पड़ा।
वैसे तो राजनिति में कदम भुक्खल महराज के पिता ने ही रख दिया था, लेकिन राजनिति से न पिता को और नहीं इन्हें कुछ विशेष हांसिल हो सका था। वर्ष २००० में भुक्खल महराज के बड़े बेटे कपिलमुनि करवरिया पहली बार कौशांबी के जिला पंचायत अध्यक्ष बने थे। उसके बाद वर्ष इलाहाबाद जिले के बीजेपी के कर्णधार माने जाने वाले उदयभान करवरिया ने वर्ष २००२ में पहली बार जिले के बारा विधानसभा में कमल खिलाया और विधायक बने थे। उसके बाद वर्ष २००५ में सबसे छोटे भाई सूरजभान करवरिया ने भी राजनिति में कदम बढ़ाया और मंझनपुर के ब्लाक प्रमुख बने। इसके उपरांत २००७ में सूरजभान एमएलसी बने। वहीं २००७ में भी भाजपा ने फिर से उदयभान करवरिया को बारा से प्रत्याशी बनाया और उदयभान ने जीत दर्ज कर दोबारा विधायक बन गए। जबकि उदयभान उस चुनाव में इलाहाबाद के अकेले भाजपा विधायक थे। इसके बाद कपिलमुनि करवरिया भी फूलपुर से सांसद बन गए। उस समय जब करवरिया ब्रदर्श एक साथ विधायक, सांसद और एमएलसी थे तो इनके राजनितिक रसूख की चर्चा न सिर्फ इलाहाबाद में थी बल्कि आस पास के जिले में भी इनकी बातें होती थीं। कुछ ही समय बीतने के बाद जवाहर पंडित हत्याकांड में कुछ ऐसा हुआ कि तीनों भइयों को जेल जाना पड़ा।
करवरिया बंधुओं के जेल जाने के बाद हजारों समर्थकों और कार्यकर्ताओं में हताशा और निराशा थी, लेकिन उनसभी के विश्वास को कायम रखने के लिए उदयभान ने बड़ा फैसला लिया और अपनी पत्नी नीलम करवरिया को राजनिति में उतारा। नीलम करवरिया ने भी उन जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया और पहली बार में ही मेजा से विधायक बनीं। विधायक बनने के बाद नीलम करवरिया ने जनता के सुख दुख और जरूरतों में शामिल होकर उदयभान की राजनितिक व्यवस्था को पूरी तरह से संभाल लिया। यही कारण है कि पद न होने के बाद भी नीलम करवरिया को यमुनापार का सबसे लोकप्रिय नेता माना जाता रहा है।
हसमुख स्वभाव की नीलम करवरिया अपनी छाप मेजा में इस तरह छोड़ी की आज उनके निधन की खबर से लोगों को यकीन नहीं हो रहा है कि मेजा की भाभी मां अब हम लोगों के बीच नहीं रही हैं।