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आखिर क्यों दशहरा पर नीलकंठ को देखना माना जाता है शुभ?

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प्रयागराज (राजेश शुक्ल)। शारदीय नवरात्र का समापन आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को होता है। इस शुभ अवसर पर विजयादशमी एवं दशहरा मनाया जाता है। शारदीय नवरात्र आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से लेकर नवमी तिथि तक मनाया जाता है। इन नौ दिनों में ममतामयी मां दुर्गा और उनके नौ रूपों की पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त नवरात्र का व्रत रखा जाता है। इस व्रत को करने से साधक की हर मनोकामना पूरी होती है। साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है। लेकिन क्या आपको पता है कि क्यों दशहरा के शुभ अवसर पर नीलकंठ को देखा जाता है और इसका धार्मिक महत्व क्या है ? आइए जानते हैं-

धार्मिक महत्व

सनातन शास्त्रों में निहित है कि आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को भगवान श्रीराम और दशानन रावण के मध्य चल रहे युद्ध का अंत हुआ था। दशहरा के दिन पर भगवान श्रीराम ने दशानन रावण का वध किया था।  इससे पूर्व भगवान श्रीराम ने शमी पेड़ की पूजा की थी। साथ ही शमी के पत्ते को स्पर्श कर आशीर्वाद प्राप्त किया था। इस उपलक्ष्य पर अयोध्या में विजय पर्व दशहरा मनाया गया था। तत्कालीन समय से हर वर्ष शारदीय नवरात्र के अगले दिन दशहरा मनाया जाता है। इसी दिन जगत की देवी मां दुर्गा ने महिषासुर का भी वध किया था। इसके लिए आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी के दिन विजयादशमी और दशहरा मनाया जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि रावण वध के चलते भगवान राम को ब्रह्म हत्या का दोष लगा था। इस दोष से मुक्ति पाने के लिए भगवान श्रीराम ने शिवजी की कठिन तपस्या की थी। भगवान राम की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने नीलकंठ रूप में दर्शन दिए थे। उस समय भगवान श्रीराम को ब्रह्म हत्या दोष से मुक्ति मिली थी। इसके लिए दशहरा के दिन नीलकंठ का दर्शन करना शुभ माना जाता है। नीलकंठ के दर्शन मात्र से साधक के सकल मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं। साथ ही सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है।

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