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भगवान के नाम में ही प्रभावः पं. देवकृष्ण शास्त्री

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नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की

मेजा, प्रयागराज (विमल पाण्डेय)। उरुवा विकास खंड अंतर्गत सोरांव गांव में श्रीमद् भागवत ज्ञान सप्ताह के चतुर्थ दिवस अयोध्या धाम से पधारे अंतरराष्ट्रीय कथा वाचक बालशुक पंडित देव कृष्ण शास्त्री जी महाराज का मुख्य यजमान श्रीमती निर्मला देवी शुक्ला पत्नी गोलोकवासी पंडित त्रिवेणी प्रसाद शुक्ल व सुपुत्र भूपेन्द्र उर्फ पिंकू शुक्ल ने भागवत भगवान, व्यासपीठ और पुरोहित बबुन्ने ओझा का तिलक व माल्यार्पण कर आरती उतरी। दक्ष अपनी पत्नी असिक्नी से पाँच हजार पुत्रों को जन्म दिया, जो हर्यर्श्व कहलाए। वे प्रजा बनाने ही वाले थे कि नारद उनके सामने प्रकट हुए और बोले ‘हे हर्यर्श्व, तुम तो मात्र बालक हो और इस संसार के रहस्यों से अनभिज्ञ हो। तुम प्रजा कैसे बनाओगे? मूर्खों, जब तुम ऊपर-नीचे, लंबाई-चौड़ाई में जाने की शक्ति रखते हो, तो तुम पृथ्वी के छोर का पता लगाने का प्रयास क्यों नहीं करते? नारद के वचन सुनकर वे सभी अलग-अलग दिशाओं में भाग गए और तब से वापस नहीं लौटे। इस प्रकार दक्ष ने हर्यर्श्वों को खो दिया। दक्ष ने फिर असिक्नी से हज़ार पुत्र उत्पन्न किए और वे सबलर्श्व कहलाए। यह देखकर कि वे भी प्रजा उत्पन्न करने वाले थे, नारद ने कुछ युक्तियों से उन्हें भी तितर-बितर कर दिया। सबलर्श्व जो पृथ्वी का अंत देखने गए थे, अभी तक वापस नहीं आए हैं। दक्ष नारद से क्रोधित हो गए और उन्हें इस प्रकार श्राप दियारू ष्तुम भी मेरे बच्चों की तरह पृथ्वी पर जगह-जगह भटकते रहोगेष्। उस सूखे के बाद से नारद एक निश्चित निवास स्थान के बिना भटकने लगे। बुद्धिमान प्रजापति दक्ष ने फिर से असिक्नी से साठ लड़कियों को जन्म दिया। दस लड़कियाँ धर्मदेव को, तेरह कश्यप को, सत्ताईस सोम को और चार अरिष्टनेमि को दी गईं। बाकी में से दो बाहुपुत्र को, दो अंगिरस को और दो बुद्धिमान कृष्णर्श्व को दी गईं। बालशुक महाराज ने भक्त प्रह्लाद चरित्र, भरत चरित्र, पृथु चरित्र व हिरणकश्यप बध, नरसिंह अवतार व समुद्र मंथन का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि हिरणकश्यप नामक दैत्य ने घोर तप किया, तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी प्रकट हुए व कहा कि मांगों जो मांगना है। यह सुनकर हिरनयाक्ष ने अपनी आंखें खोली और ब्रह्माजी को अपने समक्ष खड़ा देखकर कहा-प्रभु मुझे केवल यही वर चाहिए कि मैं न दिन में मरूं, न रात को, न अंदर, न बाहर, न कोई हथियार काट सके, न आग जला सके, न ही मैं पानी में डूबकर मरूं, सदैव जीवित रहूं। उन्होंने उसे वरदान दिया। हिरणकश्यप के पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु के परम भक्त थे। हिरणकश्यप भागवत विष्णु को शत्रु मानते थे। उन्होंने अपने पुत्र को मारने के लिए तलवार उठाया था कि खंभा फट गया उस खंभे में से विष्णु भगवान नरसिंह का रूप धारण करके जिसका मुख शेर का व धड़ मनुष्य का था। प्रगट हुए भगवान नरसिंह अत्याचारी दैत्य हिरनयाक्ष को पकड़ कर उदर चीर कर बध किया। इस धार्मिक प्रसंग को आत्मसात करने के लिए भक्त देर रात तक भक्ति के सागर में गोते लगाते रहे।

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कथावाचक ने बताया कि वामन अवतार के रूप में भगवान विष्णु ने राजा बलि को यह शिक्षा दी कि दंभ और अंहकार से जीवन में कुछ भी हासिल नहीं होता और यह धन संपदा क्षण भंगुर होती है। इसलिए इस जीवन में परोपकार करों। उन्होंने बताया कि अहंकार, गर्व, घृणा और ईषर्या से मुक्त होने पर ही मनुष्य को ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है। इसके पश्चात सूर्य वंश और चंद्र वंश की संक्षिप्त कथा का व्याख्यान करते हुए श्रीकृष्ण के जन्म की कथा सुनाई। कथा आयोजक द्वारा भगवान श्रीकृष्ण की मनमोहक झांकी निकाली गई। उपस्थित माताओं और बहनों ने खुशी के अवसर पर नृत्य किया।

वरिष्ठ भाजपा नेता ईंजी. उमाशंकर तिवारी उर्फ गांधी, पूर्व प्रधान केशव प्रसाद शुक्ल, पूर्व प्रधान नागेश्वर प्रसाद शुक्ल, पूर्व उपप्रधान नागेश्वर प्रसाद उर्फ कलट्टर शुक्ल, श्याम नारायण उर्फ लोलारक शुक्ल, श्रीकांत द्विवेदी उर्फ लल्लन, लालजी द्विवेदी, संतोष शुक्ल, कृष्णा कांत शुक्ल, प्रेम शंकर मिश्र, रामेश्वर शुक्ल, बालमुकुंद शुक्ल, विनय शुक्ल, अवधेश शुक्ल, विजय शंकर दुबे, कृष्ण कुमार उर्फ नंघेसर शुक्ल, द्वारिका प्रसाद शुक्ल, विंध्यवासिनी शुक्ल, राकेश शुक्ल उर्फ दादा, चंदू शुक्ल, रविशंकर शुक्ल,  योगेश द्विवेदी, धीरज शुक्ल, धीरज दुबे, अवधेश शुक्ल, नारायण शुक्ल, पुष्कर तिवारी, शंभू प्रजापति, झल्लू राम प्रजापति सहित भारी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।

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